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शनिवार, 7 नवंबर 2015

रेलवे टिकट रिफंड के नए नियम


                                                               लगता है कि रेलवे बोर्ड ने रेल यात्रियों के लिए नए सिरे से मुसीबतें बढ़ाने का काम करने में कोई कसर नहीं रखने का पूरा मन ही बना लिया है क्योंकि १२ नवम्बर से लागू होने वाले नए रिफंड नियमों के चलते जहाँ आम यात्रियों के लिए परेशानियां और आर्थिक दिक्कतें बढ़ने वाली हैं वहीं जिन लोगों द्वारा इस सिस्टम के दुरूपयोग को रोकने के लिए यह पूरी कवायद की जा रही है उनको इससे किस हद तक रोका जा सकेगा यह तो समय ही बताएगा. टिकट कैंसल कराने के नए नियमों से जहाँ यात्रियों की जेब पर खुला डाका पड़ना शुरू हो जायेगा वहीं रेलवे को इससे आय में भी वृद्धि करने का अवसर मिलने वाला है. पहले भी हर स्पेशल ट्रेन में विशेष शुल्क लगाकर रेलवे ने अपनी मंशा जाहिर कर दी थी जिसके तहत ३०० रूपये तक का अतिरिक्त शुल्क भी वसूला जाना शुरू कर दिया गया है और उसके दुष्प्रभाव भी सामने आ चुके हैं क्योंकि इन विशेष गाड़ियों में जहाँ पहले एक भी सीट खाली नहीं जाती थी अब उनमें भी रेलवे के अनुसार बुकिंग फुल नहीं हो पा रही है. ऐसी स्थिति में क्या रेलवे इसी तरह के तुगलकी आदेशों के साथ अपनी मनमानी करने में लगी रहने वाली है और सरकार की तरफ से इस पर कुछ भी कहने की क्या कोई संभावनाएं नहीं हैं ?
                          जिस तरह से गाड़ी छूटने के बाद किराये में कुछ भी वापस नहीं मिलने की बात कही जा रही है तो उस परिस्थिति में तो कोई यदि सपरिवार यात्रा कर रहा है उसके लिए हज़ारों रुपयों का नुकसान होना पक्का ही है क्योंकि कई बार अंतिम समय में यात्रा को निरस्त किया जाना भी एक मजबूरी हो जाती है और रेलवे बोर्ड यात्रियों की इस मजबूरी को न समझते हुए केवल अपने आर्थिक हितों के बारे में ही सोचने में लगा हुआ है. निश्चित तौर पर रेलवे को यह अधिकार है कि वह अपने अनुसार नियमों में परिवर्तन करे पर इस तरह से खुलेआम मनमानी करने को किस तरह से सही ठहराया जा सकता है ? इसके स्थान पर दलालों से बचने के लिए रेलवे को अपने सिस्टम की कमज़ोरी को दूर करने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए जिससे उसका और यात्रियों दोनों का भला हो सके. पर बोर्ड के अधिकारियों की जानकारी में यह सब खेल खुलेआम चलता रहता है और उन पर रोक लगाने के स्थान पर केवल यात्रियों को ही लूटने का काम रेलवे द्वारा किया जा रहा है. क्या आज के इस डिजिटल युग में भी आरक्षण चार्ट ४ घंटे पहले बनाये जाने की आवश्यकता है और इससे रेलवे को क्या हासिल होता है यह कोई बताने वाला नहीं है क्योंकि पर्दे के पीछे का सारा खेल बस इन चार घंटों में खेला जाता है जिसमें रेलवे के अधिकारी भी शामिल रहा करते हैं.
                                                           रेलवे के कुछ नियमों के चलते यदि दलालों को काम करने की खुली छूट मिलती है तो केवल उन पर रोक लगाये जाने के बारे में सोचना चाहिए जबकि लगता यह है कि मोदी सरकार और रेल मंत्रालय रेल से सफर करने वाले हर यात्री को ही दलाल मानकर काम करना शुरू कर चुकी है. क्या दुनिया भर में डिजिटल तराने रोज़ ही गाने वाली मोदी सरकार का रेल मंत्रालय अपने उन वास्तविक यात्रियों और दलालों में तकनीक के माध्यम से कोई अंतर नहीं कर सकता है जिससे यह पहचाना जा सके कि कौन वास्तविक यात्री है और कौन इस सुविधा का दुरुपयोग करने में लगा हुआ है ? जिस तरह से हर श्रेणी के टिकट कैंसल करने का शुल्क दोगुना कर दिया गया है उससे स्लीपर श्रेणी के कम दूरी के टिकटों में यात्रियों को कुछ भी हासिल नहीं होगा तो यात्रा निरस्त होने के बाद कुछ रुपयों के लिए कोई क्यों घंटों लाइन में खड़ा रहना चाहेगा ? ३० रूपये से कम के टिकट पर कुछ भी वापस नहीं मिलने वाला है जबकि कम दूरी की यात्रा करने वालों के लिए कई बार कई कारणों से टिकट वापस करना एक मजबूरी ही हो जाता है. ऐसी किसी भी परिस्थिति में रेलवे को प्रतिदिन जो करोड़ों की आय होगी क्या उसके माध्यम से ही रेलवे अपने घाटे को पूरा करने की मंशा पाले हुए है ? यदि यह सब ही होना है तो निश्चित रूप से रेल यात्रियों के तो बहुत अच्छे दिन भी आ ही गए हैं जहाँ पर कुछ भी मनमानी करने और यात्रियों को लूटने की खुली छूट सरकार की तरफ से रेलवे बोर्ड को दे दी गयी है.
                                                       आईआरसीटीसी के माध्यम से टिकट बुक कराने वाले वास्तविक यात्रियों के लिए इस नए नियम में कुछ भी शेष नहीं छोड़ा गया है जबकि होना तो यह चाहिए ता कि जो भी लोग आईआरसीटीसी पर पंजीकृत हैं उनको आधार से जोड़ दिया जाये और उनके माध्यम से सही गलत की पहचान की जा सके साथ ही नयी आईडी से अलग अलग तरह एक लोगों के टिकट लगातार बनाये जाने की स्थिति में उस खाते के सञ्चालन पर रोक लगाये जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए. आपात स्थिति में यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए भी हर गाड़ी में कुछ सीटें उपलब्ध करायी जानी चाहिए भले ही वे केवल बैठने वाली व्यवस्था में ही हों. रेल कोच की डिज़ायन कुछ इस तरह से की जाने के बारे में भी सोचा जाना जिसमें एक कोच में सभी श्रेणी की बैठने वाली सीटें उपलब्ध करायी जा सकें और इसके लिए आरक्षण गाड़ी जाने के आधे घंटे पहले ही बंद हो जिससे आपातकाल में यात्रा करने वाले लोगों के लिए भी रेलवे की तरफ से कुछ सुविधाजनक किया जा सके. फिलहाल तो केवल विशुद्ध आर्थिक रूप से सोचने वाले रेलमंत्री प्रभु के चलते यात्रियों को किसी भी तरह के आर्थिक लाभ के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए क्योंकि वे रेलवे को संचालन के दम पर नहीं संभवतः यात्रियों पर अनावश्यक बोझ डालकर सञ्चालन लायक बने में विश्वास रखते हैं और यह भी संभव है कि इस तरह के प्रयासों के बाद रेलवे के आंशिक निजीकरण की तरफ भी मोदी सरकार शुरुवाती कदम बढ़ाना चाह रही हो ?                

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