मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

निर्भया- कानून से सामाजिकता तक

                                                     तीन साल पहले जब सुनहरे सपनों को अपनी आँखों में पाले हुए एक आम भारतीय लड़की के साथ जघन्यता की सारी हदें पार कर देश की राजधानी में जानलेवा यौन उत्पीड़न किया जाता है तो समूचा देश उसके लिए खड़ा हो जाता है पर आज जब उसमें से एक दोषी पाये गए अपराधी को सिर्फ इसलिए छोड़ा जा रहा है कि अपराध के समय वह नाबालिग था तो निर्भया की माँ आशा देवी का कथन बिलकुल सत्य लगता है कि अपराध करते समय उसकी उम्र देखी जा रही पर उसने जो अपराध किया है उसकी तरफ कोई भी नहीं देखना चाहता है. देश का कानून नाबालिगों को एक बार सुधरने के अवसर के साथ एक मौका देने की बात करता है पर जिन नाबालिगों द्वारा इस तरह के कृत्य किये जाते हैं उनके लिए समाज, कानून और सरकारें कुछ क्यों नहीं सोच पाती है ? एक माँ के रूप में आशा देवी के पास निराशा के सिवाय आज कुछ नहीं है क्योंकि अधिकतम तीन साल की सजा पाने के बाद इस वर्ष नाबालिग बताये जा रहे दोषी की सजा पूरी होने वाली है और वह आने वाले समय में एक बार फिर से समाज में खुले तौर पर घूमने ही वाला है.
                        इस लड़के के विरुद्ध एक बार सजा के दौरान ही एक कश्मीरी अलगाववादी के साथ बातचीत और उसके अधिक निकट जाकर जिहाद की अवधारणा पर कुछ सबूत मिले थे जिसके बाद उसे अलग रखने की व्यवस्था भी की गयी पर क्या उसे छोड़ना आज के युग में सही साबित हो सकता है जब अलगाववादी संगठन देश के युवाओं पर डोरे डालने में लगे हुए हैं क्योंकि उसके अपराधी मस्तिष्क में अपराध का अंकुरण कब हो जाये इस बात को कोई नहीं बता सकता है. आज इस मामले पर केंद्र और दिल्ली सरकार भी एक बार फिर आमने सामने हैं क्योंकि दिल्ली सरकार ने उसकी सजा पूरी होने पर उसके लिए एक सिलाई मशीन और दस हज़ार रूपये देने की घोषणा की है जिससे वह अपनी ज़िंदगी को नये सिरे से शुरू कर सके पर कश्मीरी अलगाववादी के साथ उसके पुराने संबधों को देखते हुए केंद्र सरकार अभी उसे रिहाई नहीं देना चाहती है और उसे फिलहाल सुधार गृह में ही रखना चाहती है. इस मामले में केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट में मामला दायर कर रखा है जिस पर निर्णय भी सुरक्षित कर लिया गया है. ऐसी परिस्थिति में यदि इस युवक को खुलेआम दिल्ली में घूमने के लिए छोड़ा जाता है तो क्या आने वाले समय में वह कश्मीरी अलगाववादियों से संपर्क नहीं करेगा इस बात पर सभी दुविधा में हैं और यही बात कानूनी रूप से उसके खिलाफ भी जा सकती है.
                         आज नाबालिग बच्चों को जिस तरह से विभिन्न सूत्रों से हर बात का पता होता है और वे अपनी उम्र से पहले ही वयस्कों जैसा व्यवहार करने लगते हैं तो उस परिस्थिति में कानून द्वारा उन्हें समान दोष के लिए अलग श्रेणी में रखना कहाँ तक उचित कहा जा सकता है ? यदि केंद्र सरकार को लगता है कि अब इस उम्र की सीमा में सुधार होना चाहिए या फिर जघन्य अपराधों में शामिल नाबालिगों की सजा के बारे में यदि परिवर्तन करने की आवश्यकता है तो उसे अविलम्ब बदलना ही चाहिए. आज केंद्र और दिल्ली में सरकारें बदल चुकी है पर कहीं से भी यह नहीं लगता है कि नेताओं की मानसिकता भी बदल पायी है क्योंकि उस घटना के समय दोनों जगहों पर कांग्रेस की सरकार के खिलाफ आप और भाजपा ने प्रदर्शन किये थे पर आज भी महिलाओं के खिलाफ इस तरह के अपराध लगातार हो रहे हैं पर दोनों सरकारों में बैठे इन दलों के लोगों को उस बात से कोई अंतर नहीं पड़ रहा है. परमाणु संशोधन बिल २०१५ पर संसद में एक चर्चा में भाग लेते हुए बीजेडी के सांसद तथागत सत्पथी ने बहुत ही अच्छी बात कही थी कि हम बीच की बेंचों पर बैठकर सत्ता के चरित्र को देखते रहते हैं भले ही कोई दल सत्ता में हो पर सत्ता का चरित्र कभी भी नहीं बदलता है. आज संसद के साथ न्यायपालिका और समाज की भी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि इस तरह के संवेदनशील मामलों से निपटने के लिए देश के कानून को और भी कड़ा, सक्षम तथा प्रभावी बनाने के बारे में सोचना शुरू किया जाये.       
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