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मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

गर्मी - आग और सुरक्षा

                                                                      पूरे देश में बढ़ते हुए तापमान के कारण जहाँ छोटे से बड़े स्तरों पर आग लगने की घटनाएं निरन्तर होती जा रही हैं वहीं उसमें जान-माल का नुकसान भी लगातार होता है. ऐसा नहीं है कि देश में पहले इस तरह से गर्मी नहीं पड़ती थी और कभी आग नहीं लगती थी पर आज के समय में आग लगने पर फायर सेवा से लगाकर पुलिस-प्रशासन और आम लोग जिस तरह से मजबूर होकर आग की विनाशलीला को देखने के लिए मजबूर होते रहते हैं वैसा पहले नहीं होता था क्योंकि गांवों के साथ शहरों में भी तालाब आदि जीवित प्राकृतिक जल-स्रोत हुआ करते थे जिससे आवश्यकता पड़ने पर जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो जाती थी और आग को भडकने से पहले ही काबू कर लिया जाता था. आज पूरे देश में लगभग हर राज्य में पुराने प्राकृतिक जल संशाधन के स्रोतों को हमारे लालच ने पूरी तरह से निगल लिया है और उनकी जगह आवासीय से लगाकर व्यवसायिक संपत्तियों ने अपना स्थान बना लिया है जिससे एक तरफ से ये स्रोत सदैव के लिए समाप्त हो गए हैं वहीं दूसरी तरफ इनके माध्यम से भूगर्भीय जलस्रोतों तक बारिश का पानी पहुंचना भी असम्भव हो गया है.
                               पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से मनरेगा के अंतर्गत गांवों में तालाब आदि को फिर से खोदने और गहरा करने का अभियान चलाया गया है उससे भूगर्भीय जल स्रोतों को एक बार फिर से जीवित करने में सफलता मिल सकती है क्योंकि वर्षा के जल को इनमें भरने से जहाँ स्थानीय रूप से भूगर्भीय जल के स्तर को बढ़ाने में सफलता मिलती है वहीं गर्मी के दिनों में इसी जल से सिंचाई से लगाकर अन्य काम आसानी से किये जा सकते हैं. पिछले दो वर्षों से औसत से कम होने वाली वर्षा ने भी इस जल स्तर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. सवाल एक बार फिर से वहीं पहुँच जाता है कि आग लगने की स्थिति में हमारे फायर विभाग कितनी मुस्तैदी से काम कर सकते हैं क्योंकि आग लगने से बचने के सारे उपाय करने के बाद भी हम कभी भी पूरी तरह से अपने को सुरक्षित नहीं मान सकते हैं. फायर विभाग को आग बुझाने के लिए स्थानीय स्तर पर पानी की आवश्यकता होती है क्योंकि उनके पास जितना पानी होता है वह केवल शुरुवात करने के लिए ही काफी होता है फिर उनको लगातार तब तक पानी की आपूर्ति चाहिए होती है जब तक आग पूरी तरह से बुझा न ली जाये तो वर्तमान परिस्थिति में क्या हमारे गांवों और शहरों में इस तरह की कोई व्यवस्था बनायीं जा सकी है जो इस तरह की परिस्थिति में पानी की आपूर्ति को सुनिश्चित कर सके ?
                           इस सबके पीछे असली मुद्दा भ्रष्ट लोगों से शुरू होता है क्योंकि उनके लालच के चक्कर में हमारे प्राकृतिक जलस्रोत बंद हो चुके हैं और नगरीय संस्थाओं के पास कमज़ोर इच्छाशक्ति, अनियंत्रित विकास और सीमित बजट के कारण इस दिशा में कुछ भी नहीं किया जा रहा है. पहले शहरों में नगर निगमों / पालिकाओं की तरफ से मुख्य स्थानों पर हाईड्रेन्ट लगाए जाते थे जिनसे आवश्यकता पड़ने पर फायर विभाग को आवश्यकता के अनुरूप पानी मिल जाया करता था पर अब जिस तरह से पीने के पानी का ही गम्भीर संकट है तो इन संस्थाओं द्वारा इस मुद्दे पर विचार ही नहीं किया जाता है और देश के अधिकांश हिस्सों में हाईड्रेन्ट नहीं लगाए जाते हैं तथा जिन स्थानों पर ये लगे भी हैं उनसे फायर विभाग को कितनी मदद मिल पाती है इसका भी कोई आंकड़ा किसी के पास नहीं है. आखिर देश में हम सरकारें क्यों चुनते हैं क्या हर काम के लिए अब अदालतों का दरवाज़ा खटखटाए जाने की आवश्यकता है और यदि ऐसा ही है तो विधायिका पर इतना भारी भरकम खर्च करने की क्या आवश्यकता है ? आज इस गम्भीर मुद्दे पर सभी लोगों को उचित तरीके से विचार करते हुए आगे के लिए तैयार होने की आवश्यकता है क्योंकि किसी भी परिस्थिति में आग की तबाही को कम करने के लिए सभी उपाय करने से ही हमारी सुरक्षा सही रह सकती है.       
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