देश के हर भाग से आती मजदूरों की मजबूरी भरी सच्चाई देखने के बाद भी क्या केंद्र और राज्य सरकारों के साथ स्थानीय प्रशासन की संवेदनाएं पूरी तरह से समाप्त हो गयी हैं कि उनके लिए इतने दिनों बाद भी कोई सुधारात्मक विकल्प तलाशा नहीं जा सका है ? क्या कारण है कि इन लाचार मजदूरों को अपने परिवार के साथ चिलचिलाती धुप में अपने घरों की तरफ निर्बाध रूप से जाने दिया जा रहा है जिस क्रम में कुछ की मार्ग दुर्घटनाओं और बीमारी के कारण दुखद मृत्यु भी हुई जा रही है फिर भी कहीं से शासन प्रशासन की संवेदनाएं जगती हुई नहीं दिखाई दे रही हैं ? क्यों हमारा तंत्र इतना अंधा और बहरा साबित हो रहा है जो करोड़ों प्रवासियों में से केवल कुछ लाख के बारे में प्रयास कर अपने कर्तव्य को पूरा मान कर बैठा हुआ है ? आखिर इन सब को किस बात की प्रतीक्षा है जिसके बाद इन मजदूरों के हालात पर सोचने का समय मिलने वाला है ?
इतने बड़े पलायन पर बेरुखी दिखाने वाली सरकारें किस तरह से चुनाव के समय इनके लिए कुछ भी करने की कसमें खाती रहती हैं पर आज जब इस भीड़ को अपने द्वारा चुने हुए नेताओं की अधिकांश बातें खोखली ही लग रही हैं तो वह कितने भी बड़े नेता की कोई भी बात मान कर उस पर अमल करने के लिए तैयार नहीं हो पाता है ? आज जिलों के अधिकारियों राज्यों के मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को सिर्फ इस बात पर सोचने की आवश्यकता है कि प्राथमिकता के आधार पर इन मजदूरों को यह आश्वासन दिलाया जा सके कि आप अब जहाँ पर भी हो वहीं पर रूककर स्थानीय प्रशासन की मदद कीजिये जिससे आप लोगों को समुचित व्यवस्था कर यात्रा के कष्टों को कम करने का प्रयास किया जा सके. परन्तु पिछले कुछ समय से देश के राजनैतिक नेतृत्व की सोच के चलते आज कोई भी उस पर यकीन नहीं करना चाहता वही इस गंभीर समस्या की जड़ है.
हर राज्य के पास पर्याप्त संख्या में राज्य परिवहन की बसें उपलब्ध हैं और आवश्यकता पड़ने पर निजी क्षेत्र की बसों को भी इस काम में लगाया जा सकता है. एक नीति के तहत सड़क पर चलने वाले लोगों को विभिन्न श्रेणियों में बाँट कर उनको दूरी के अनुसार घरों तक पहुँचाने का काम अविलम्ब शुरू किया जाना चाहिए। ५०० किमी के दायरे या राज्य परिवहन के क्षेत्र में आने वाले और अधिक दूरी के मजदूरों को बसों द्वारा भेजने की व्यवस्था की जानी चाहिए। जो इससे अधिक दूरी के लोग हैं उनको बसों द्वारा पास के बड़े शहरों पर पहुँचाया जाये और वहां से उनको अपने गृह जनपद तक जाने के लिए ट्रेन उपलब्ध कराई जाये। जब तक इस दिशा में समन्वित और एकीकृत प्रयास नहीं किए जायेंगे तब तक इन मजदूरों की पीड़ा को कम नहीं किया जा सकता है. इस बारे में केंद्र सरकार को राज्यों से अविलम्ब चर्चा करके ठोस समाधान करने की आवश्यकता है जिससे देश के इन कामगारों को इस विषम परिस्थिति में कम से कम सुरक्षित रूप से उनके घरों तक पहुँचाया जा सके.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इतने बड़े पलायन पर बेरुखी दिखाने वाली सरकारें किस तरह से चुनाव के समय इनके लिए कुछ भी करने की कसमें खाती रहती हैं पर आज जब इस भीड़ को अपने द्वारा चुने हुए नेताओं की अधिकांश बातें खोखली ही लग रही हैं तो वह कितने भी बड़े नेता की कोई भी बात मान कर उस पर अमल करने के लिए तैयार नहीं हो पाता है ? आज जिलों के अधिकारियों राज्यों के मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को सिर्फ इस बात पर सोचने की आवश्यकता है कि प्राथमिकता के आधार पर इन मजदूरों को यह आश्वासन दिलाया जा सके कि आप अब जहाँ पर भी हो वहीं पर रूककर स्थानीय प्रशासन की मदद कीजिये जिससे आप लोगों को समुचित व्यवस्था कर यात्रा के कष्टों को कम करने का प्रयास किया जा सके. परन्तु पिछले कुछ समय से देश के राजनैतिक नेतृत्व की सोच के चलते आज कोई भी उस पर यकीन नहीं करना चाहता वही इस गंभीर समस्या की जड़ है.
हर राज्य के पास पर्याप्त संख्या में राज्य परिवहन की बसें उपलब्ध हैं और आवश्यकता पड़ने पर निजी क्षेत्र की बसों को भी इस काम में लगाया जा सकता है. एक नीति के तहत सड़क पर चलने वाले लोगों को विभिन्न श्रेणियों में बाँट कर उनको दूरी के अनुसार घरों तक पहुँचाने का काम अविलम्ब शुरू किया जाना चाहिए। ५०० किमी के दायरे या राज्य परिवहन के क्षेत्र में आने वाले और अधिक दूरी के मजदूरों को बसों द्वारा भेजने की व्यवस्था की जानी चाहिए। जो इससे अधिक दूरी के लोग हैं उनको बसों द्वारा पास के बड़े शहरों पर पहुँचाया जाये और वहां से उनको अपने गृह जनपद तक जाने के लिए ट्रेन उपलब्ध कराई जाये। जब तक इस दिशा में समन्वित और एकीकृत प्रयास नहीं किए जायेंगे तब तक इन मजदूरों की पीड़ा को कम नहीं किया जा सकता है. इस बारे में केंद्र सरकार को राज्यों से अविलम्ब चर्चा करके ठोस समाधान करने की आवश्यकता है जिससे देश के इन कामगारों को इस विषम परिस्थिति में कम से कम सुरक्षित रूप से उनके घरों तक पहुँचाया जा सके.
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