मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 19 मई 2011

पाक पर अमेरिकी नाटक

    पाक में घुसकर ओसामा को मरने के बाद भी लगता है कि अमेरिका की आँखों से अभी भी पाक का चश्मा उतरा नहीं है क्योंकि वहां के रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी आज भी पाक को दी जाने वाली सहायता में किसी भी तरह की कटौती के ख़िलाफ़ फिर से बोले हैं. अभी तक जो कुछ भी हो रहा था उसको देखते हुए कहीं से भी यह नहीं कहा जा सकता है कि पाक पर अमेरिका वास्तव में कोई दबाव बनाना चाहता है. सभी जानते हैं कि अमेरिका में लोकतंत्र है और इसी दबाव के चलते आज खुद अमेरिका पर अमेरिका के ही लोगों का दबाव बहुत बढ़ गया है कि वे यह पता लगायें कि आख़िर पाक को ओसामा के बारे में इतने दिनों तक कैसे पता नहीं चला था ? पाक में बहुत सारी बातें केवल इस्लाम और भारत विरोध के नाम पर मान ली जाती हैं पर अमेरिका में ऐसा कुछ भी नहीं है और आने वाल समय अमेरिका के लिए बहुत कठिन साबित होने वाला है. फिर भी पाक के लिए अमेरिका को डराने के लिए अब मतलब भर का मसाला है वह यह कहने से नहीं चूकेगा कि अब अगर कुछ हुआ तो यहाँ पर जनता विद्रोह कर देगी और आतंकी यहाँ की सत्ता पर कब्ज़ा कर सकते हैं.
    आज आम अमेरिकी नागरिक यह मानता है कि ओसामा के बारे में पाक को सब पता था और उसने जान बूझकर अमेरिका से यह सारी जानकारी छिपाए रखी क्योंकि उसे पता था कि पाक में ओसामा के अमेरिका के हाथों मरने से बहुत बड़ा संकट सामने आने वाला है. फिर भी पाक की मंशा पर पानी फिर गया और अमेरिका कि सेना ने अपने अभियान में पाक की सरकार और सेना की नाक के नीचे ही इस तरह के अभियान को अंजाम तक पहुंचा कर उन्हें बहुत ज़ोर का तमाचा मारा. अब पाक के पास अपने अस्तित्व को बचाने के लिए दोहरा संकट है एक तरफ उस पर अपनी जनता का दबाव है कि अमेरिका ने ओसामा को मारा है इसलिए उसको दुश्मन माना जाये तो दूसरी तरफ अभी तक आतंक के ख़िलाफ़ अमेरिका की तथाकथित लड़ाई में उसका सहयोगी बनने का नाटक करने वाले पाक को अमेरिका के लोग अब दोस्त के रूप में नहीं देखना चाहते हैं. पाक के इस तरह के नापाक इरादों के बारे में भारत हमेशा से ही कहता रहा है पर अमेरिका ने केवल अपने संतुलन को बनाये रखने में ही दिलचस्पी ली और भारत की हर बात की अनदेखी भी की. आज भी इस तरह की अनदेखी आने वाले समय में अमेरिका का बहुत बड़ा नुकसान करने वाली है.
    अब अमेरिका के लिए यह सोचने का समय आ गया है कि वह दोहरी नीति पर चलने वाले पाक के साथ अपनी आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई आगे बढ़ाना चाहता है या फिर उसे वास्तव में यह बताना चाहता है कि अब समय आ गया है और अब पाक को दोनों में से किसी एक को चुनना ही होगा क्योंकि अब दोनों नावों पर पाक की सवारी से आने वाले समय में पाक पूरी दुनिया के लिए बहुत बड़ा ख़तरा बनने जा रहा है. यह सही है कि पाक अपने यहाँ जिसे चाहे आने दे और जिसे चाहे रोक दे पर जिस तरह से उसने अपने को पूरी दुनिया से काटना शुरू कर दिया है उससे लगता है कि आने वाले समय में वहां पर चरमपंथियों का प्रभाव बढ़ने वाला है. वहां की जनता को अब आने वाले समय में तालिबान जैसी किसी हुकूमत के लिए तैयार होना ही होगा क्योंकि चुनी हुई सरकारें अब अपनी ज़िम्मेदारी को निभाने में असफल होती जा रही है और ऐसे में पाक सेना को एक बार फिर से सत्ता का सुख भोगने का अवसर मिल सकता है. सभी जानते हैं कि पाक में सैन्य हुकूमत विश्व में लोकतंत्र के सबसे बड़े रखवाले अमेरिका को बहुत अच्छी लगती है क्योंकि तब केवल सेना के चुने हुए अधिकारीयों को ही समझना पड़ता है और काम बन जाता है.  

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. जो लोग भारतीय राष्ट्रवाद का दंभ भरते हैं और पाखंड रचते हैं, वे भी आज वृहत्तर भारत और अखंड भारत की हितचिंता से कोई सरोकार नहीं रखते और विदेशियों का साथ देते आसानी से देखे जा सकते हैं The main problem


    डा. आशुतोष शुक्ला जी पूछ रहे हैं कि ‘ पाक में घुसकर ओसामा को मारने के बाद भी लगता है कि अमेरिका की आँखों से अभी भी पाक का चश्मा उतरा नहीं है क्योंकि वहां के रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी आज भी पाक को दी जाने वाली सहायता में किसी भी तरह की कटौती के ख़िलाफ़ फिर से बोले हैं।‘
    भाई अमेरिका की आंखों से कोई चश्मा तो तब उतरेगा जब कोई चश्मा उन पर चढ़ा हो। पाकिस्तान में जो कुछ हो रहा है वह अमेरिकी डालर की मदद से और उसकी योजना के अनुसार ही हो रहा है। अमेरिका दरअस्ल पाकिस्तान की मदद नहीं कर रहा है बल्कि वह अपनी योजनाओं को पूरा कर रहा है।
    सऊदी अरब या पाकिस्तान, इनमें से अमेरिका किसी का भी दोस्त नहीं है। वह केवल अपना दोस्त है और अपना मतलब भी अपने नागरिकों की बहुसंख्या का नहीं बल्कि अमेरिकी पूंजीपति कंपनियों का, अमेरिका इन्हीं कंपनियों का हित साधने के लिए पूरे विश्व में धमाचैकड़ी मचाए हुए है और किसी भी कमज़ोर देश को उसके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नहीं करने देना चाहता।
    अपनी कंपनियों के हितों के लिए जो तबाही वह दुनिया में मचाए हुए है उसका विरोध विश्व बिरादरी के साथ ख़ुद उसके देश की जनता भी कर रही है लेकिन वह सुनता ही नहीं है। अमेरिका पर शासन करने वाले पब्लिक के वोटों से चुने जाते हैं लेकिन वे पूंजीपती कंपनियों के हितों के लिए ही अपनी अंतर्राष्ट्रीय नीतियां बनाते हैं और ‘शांति और न्याय‘ के नाम पर मुल्कों पर बम बरसाते हैं।
    अमेरिका ने आज तक जिस देश को भी अपना दोस्त बनाया, उसे या तो ग़ुलाम बनाया या अगर उसने आज़ादी की कोशिश की तो उसे तबाह कर डाला। पाकिस्तान आज तबाह हो रहा है तो यह अमेरिका की दोस्ती का अंजाम ही है।
    अमेरिका भी यह बात जानता है कि धीरे-धीरे पाकिस्तान ख़ुद ही तबाह हो जाएगा लेकिन तब तक उसे अपने हित भी साधने हैं।
    हालांकि सोवियत संघ का विखंडन होने के बाद हमारे नेता भी अमेरिका के दोस्त बन गए हैं और बार-बार कह रहे हैं कि ‘अजी, आप पाकिस्तान को छोड़िए, हमें मदद दीजिए और हमारे अड्डों को इस्तेमाल कीजिए‘
    अमेरिका की दोस्ती में तबाह होते हुए पाकिस्तान को देखकर भी यह कहा जा रहा है ?
    हैरत है!
    मामूली सी बातें लोग समझते नहीं या फिर पाकिस्तान की नफ़रत में समझना नहीं चाहते। अमेरिका और इस्राईल की दोस्ती में आज तक किसी एशियाई देश को कुछ तरक्की नसीब हुई हो तो वह हमें बताए ?
    चश्मा अमेरिका की आंखों पर नहीं है बल्कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान के लोगों और उनके नेताओं की आंखों पर है, नफ़रत का।
    इसी नफ़रत के कारण आज विदेशी ताक़तें ठीक उसी तरह वृहत्तर भारत को तबाह कर रही हैं जैसे कि पूर्व में बार-बार कर चुकी हैं।
    जो लोग भारतीय राष्ट्रवाद का दंभ भरते हैं और पाखंड रचते हैं, वे भी आज वृहत्तर भारत और अखंड भारत की हितचिंता से कोई सरोकार नहीं रखते और विदेशियों का साथ देते आसानी से देखे जा सकते हैं।
    दुःखद है यह सब होते देखना।
    आप भी देखिए यह सब अपना चश्मा उतारकर।

    http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/main-problem.html

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