मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

राम मंदिर और कानून

                                              किसी भी गंभीर मुद्दे पर देश के लोकतंत्र के चारों मुख्य स्तम्भों को किस तरह से कार्य करते हुए संविधान की रक्षा की तरफ कदम बढ़ाने चाहिए इस पर कोई एक राय अभी तक नहीं बन पायी है क्योंकि देश के सामने समय समय पर आने वाले विभिन्न मुद्दों पर जिस तरह की विभक्त राय सामने आती है उसमें कोई सर्वसम्मत हल निकाल पाना आसान भी नहीं है फिर भी इन मुख्य स्तम्भों की तरफ से किये जाने वाले प्रयासों को भी सही नहीं कहा जा सकता है. आज़ादी के बाद से देश में जिस तरह से विधायिका का क्षरण हुआ उसे कोई भी नकार नहीं सकता है जिससे उसका दुष्प्रभाव हर उस क्षेत्र पर भी पड़ा जहाँ उसका किसी तरह का दबाव संभव था. लोकतंत्र में भी देश को आखिर में नागरिकों के द्वारा ही चलाया जाना है और समाज में हर तरह के लोग मौजूद रहते हैं जिससे समय के साथ कार्यपालिका और न्यायपालिका में भी यह परिलक्षित होता दिखाई दिया।
                   इस कड़ी में ताज़ा मुद्दा राममंदिर भूमि के स्वामित्व को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सामने आने वाली सुनवाई है जिस पर हर स्तर पर राजनीति चालू है और जिस भी दल को जो कुछ अपने हित में लग रहा है सभी बिना कुछ सोचे समझे अपनी राजनीति चमकाने की कोशिशों में लगे हुए हैं. क्या किसी दल की राजनीति को देश से ऊपर समझा जा सकता है और यदि किसी विवादित मुद्दे पर जो कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित भी हो उस पर किसी को बयानबाज़ी करने से रोकने का कितना अधिकार खुद कोर्ट के पास है ? आज जिस स्तर पर राममंदिर को लेकर माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है उसका एक बार फिर से देश की उग्र राजनीति पर ही प्रभाव पड़ने वाला है और चुनावी वर्ष में आम लोगों से जुड़े मुद्दों को पीछे रखने का काम शुरू किया जा चुका है. क्या किसी दल को राजनैतिक लाभ मिलने या किसी दल को हानि होने की सम्भावना के बीच सुप्रीम कोर्ट के पास यह अधिकार उपयोग करने की शक्ति नहीं है कि वह किसी भी मामले को देश के माहौल के अनुरूप सुनवाई करने के लिए ले सके ?
                                    बीते तीन दशकों में राममंदिर को लेकर जिस स्तर पर राजनीति हो चुकी है क्या हमारा सुप्रीम कोर्ट उसे नहीं समझता है? आज एक बार फिर से कोर्ट के बाहर इस मुद्दे को गर्माने की कोशिशें शुरू की जा चुकी हैं क्योंकि चुनावी वर्ष में जनता के बीच आज देश चला रही भाजपा और उसके पीएम मोदी का प्रभाव कम हुआ है. वैसे पीएम मोदी ने बहुत कुछ किया है पर पिछले आम चुनावों से पहले उन्होंने जनता की आकांक्षाओं को जिस हद तक बढ़ाया था उसे पूरा करने में आज वे खुद को विफल पा रहे हैं जिससे विपक्षी दल भी इस मसले को लेकर उन पर हमलावर हैं. राममंदिर के मुद्दे को पूरी तरह से कोर्ट के निर्णय आने तक स्थगित रखना चाहिए क्योंकि इस मुद्दे पर देश में पहले ही बहुत कुछ हो चुका है और तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था यदि आज इस तरह के मामलों में उलझती है तो आने वालेसमय में देश के लिए अपने विकास की गति को बनाये रखना मुश्किल ही होने वाला है.
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