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शनिवार, 5 जनवरी 2019

बेरोजगारी भत्ता या श्रम सृजन

                                               देश में भले ही आगामी लोकसभा की चुनावी महाभारत से पहले कांग्रेस के तीन राज्यों में किसानों की कर्जमाफी की घोषणा से स्थितियां कुछ हद तक उसके पक्ष में हुई हो पर उससे किसानों की दशा पूरी तरह सुधारी नहीं जा सकती है ठीक उसी तरह से आज देश के युवाओं के सामने जिस तरह से रोजगार का संकट आ गया है उससे निपटने के लिए भी कांग्रेस ने अस्थायी रूप से युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने की बात कही है. किसी भी परिस्थिति में युवाओं के ऊर्जावान हाथों में काम हो इससे किसी भी राजनैतिक दल को इंकार नहीं है पर चिंता की बात यह है कि यह सब केवल चुनावों में ही सामने आता है और जब सरकारें बन जाती हैं तो इन समस्याओं को ठन्डे बस्ते में डालने का काम शुरू कर दिया जाता है. आज भारत के पास युवाओं की बड़ी संख्या मौजूद है जिसमें कुशल कामगारों और वर्तमान तथा भविष्य की आवश्यकता के अनुसार रोजगार होने पर उनके लिए उचित मानव संसाधन के रूप में विकसित करने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास नहीं किये जा रहे हैं. इस नीतिगत उपेक्षा के चलते आज युवाओं में आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है जिसका दुष्प्रभाव किसी भी सत्ताधारी दल के लिए घातक हो सकता है.
                     आखिर क्या कारण है कि सरकारें और राजनैतिक दल इस दिशा में सार्थक पहल करने में कहीं बहुत पीछे दिखाई देते हैं और युवाओं की समस्या वहीं पर रह जाती है ? यदि युवाओं को उनके अनुसार बेरोजगारी भत्ता देने की कोई मंशा कांग्रेस की है तो उसे इसके लिए ठोस प्रारूप तैयार करना चाहिए जिसमें युवाओं की रूचि के अनुरूप और विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए आवश्यक मानव संसाधन के स्थानीय विकास की नीति बनानी चाहिए. यह सही है कि कोई भी सरकार सभी को रोजगार नहीं दे सकती है पर यह भी उतना ही सही है कि सरकार युवाओं को समर्थन तो दे ही सकती है जिससे वे अपने खर्चों के लिए परिवार पर कम आश्रित रहे. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आवश्यकता के अनुरूप कौशल विकास योजना जैसे कार्यक्रम से सीमित संख्या में युवाओं को विभिन्न कार्यों के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए जिससे वे अपने आसपास ही कुछ दिनों के लिए रोजगार पाने में सफल हो सकें। इसके लिए मनरेगा का उदाहरण लिया जा सकता है जिसके माध्यम से ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था को उस समय भी गतिमान रखने में सफलता मिली थी जब पूरी दुनिया आर्थिक संकट में उलझी हुई थी.
                      इस नीति में डाक, बैंक, रोडवेज, यातायात, नगर विकास, स्वच्छता आदि क्षेत्रों में काम करने के लिए युवाओं को कुशल बनाया जा सकता है. मान लीजिये कि सरकार किसी स्थान के ५० युवाओं का चयन बेरोजगारी भत्ते के लिए करती है तो उनको ३००० रूपये प्रति मास देने के एवज में उनसे विभिन्न विभागों के सहयोगियों के रूप में कम से कम १० दिन काम भी लिया जाना चाहिए जिससे वे उस क्षेत्र की बारीकियों को समझ सकेंगे और सरकार के विभिन्न विभागों को भी स्थानीय स्तर पर काम करने वाले युवा उपलब्ध हो जायेंगें. इससे जहाँ समाज में कार्यकुशलता बढ़ेगी वहीं स्थानीय प्रशासन के पास अधिक सख्या में सहयोगी भी उपलब्ध हो जायेंगें। इस योजना के अंतर्गत काम करने वाले युवाओं के सामने सम्मान से जीने के रास्ते भी खुल सकेंगें और वे भी भत्ते के एवज में देश के लिए अपने कुछ दिन लगाकर ख़ुशी महसूस करेंगें। पहले प्रशिक्षण और फिर काम करने की बाध्यता होने से जहाँ इसमें भ्रष्टाचार की संभावनाएं खुद ही कम हो जाएँगी वहीं युवाओं को भी सही दिशा में आगे बढ़ाने में सफलता मिल सकेगी। पर देश का दुर्भाग्य है कि अधिकांश सरकारें केवल तात्कालिक चुनावी लाभों को देखते हुए ही निर्णय लेती हैं जिससे समाज को उसका वह लाभ नहीं मिल पाता जो एक सुनियोजित नीति के माध्यम से मिल सकता है.         
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