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शनिवार, 12 जनवरी 2019

सीबीआई विवाद और न्याय

                                   आज सिर्फ अपनी साख बचाने के लिए जिस तरह से मोदी सरकार ने सीबीआई वाले मामले में अनावश्यक दखलंदाज़ी की इससे यही पता चलता है कि इस सरकार के लिए संस्थाओं की साख कोई मायने नहीं रखती है क्योंकि जब सीबीआई का झगड़ा सतह पर आकर पूरे देश के लिए चिंता का विषय बना हुआ है उस समय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी किनारे करते हुए सरकार द्वारा एक दिन पहले ही पद पर पुनर्स्थापित किए गए अलोक वर्मा को इस तरह से हटाना किस संकेत की तरफ ले जाता है ? आज जो भी समस्या है उसके लिए कहीं न कहीं सरकार के स्तर पर बरती गयी हद दर्ज़े की लापरवाही भी है जिसके चलते पूरे देश के सामने सरकार अपने तोते की गर्दन उमेठती हुई दिखाई दे रही है और अपने साथ देश के सर्वोच्च संस्थाओं की गरिमा को भी धूल में मिलाने में लगी हुई है जिसका दूरगामी परिणाम आने वाले समय में दिखाई देने वाला है क्योंकि अभी तक मोदी से सहमत लोग भी इस मामले में वर्मा के साथ हुए अन्याय को स्वीकार करने लगे हैं.
                     अस्थाना की शिकायत पर जस्टिस पटनायक की सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत रिपोर्ट में आलोक वर्मा के खिलाफ लगाए गए आरोपों को किसी भी स्तर पर सही नहीं पाया गया है और इस बात के बारे में खुद जस्टिस पटनायक ने इंडियन एक्सप्रेस से जो कुछ कहा है वह अपने आप में चिंताजनक ही लगता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पद पर स्थापित किये गए आलोक वर्मा की बात सुने बिना ही उनको एकतरफा तरीके से पद से हटा दिया गया अब मोदी सरकार इस निर्णय को किस तरह से सही ठहरा पायेगी यह देखने की बात होगी। हो सकता है कि आलोक वर्मा की तरफ से सेवा के दौरान कुछ अनियमितताएं भी की गई हों पर उनका पक्ष सुने बिना ही इस तरह से निर्णय करना क्या सरकार और चयन समिति के हल्केपन को नहीं दिखाता है ? यह अधिक चिंतनीय इसलिए भी हो जाता है कि इस समिति में सुप्रीम कोर्ट का प्रतिनिधित्व भी था जिसके बाद भी बिना पक्ष सुने इस तरह का निर्णय किया गया।
                     संवैधानिक मामलों के जानकारों के साथ विपक्ष भी मोदी सरकार पर देश के संवैधानिक ढांचे परम्पराओं और मूल्यों से खिलवाड़ करने के आरोप २०१४ से लगा रहे हैं फिर भी मोदी सरकार इन सारे आरोपों की अनदेखी करती चली आयी है और अब इस मामले को कांग्रेस द्वारा जिस तरह से राफेल खरीद से जोड़ना शुरू कर दिया गया है उसको देखते हुए आने वाले समय में मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ने ही वाली हैं. अच्छा होता कि एक बार में निर्णय लेने के स्थान पर अलोक वर्मा को भी अपना पक्ष समिति के सामने भी रखने का मौका दिया जाता और उसके बाद ही कोई निर्णय लिया जाता पर सरकार की हड़बड़ी ने पूरे माहौल में संदेह पैदा करने की गुंजाइश छोड़ दी है. कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने समिति के निर्णय से असहमति जताकर यह सन्देश देने में भी सफलता पाई है कि इस मामले का राफेल खरीद से जुड़ाव हो सकता है और आगामी चुनावों में यह कांग्रेस के लिए एक हथियार के रूप में प्रयोग किया जाने वाला है.       
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