पिछले कुछ वर्षों में देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न कारणों से इकठ्ठा हुई भीड़ द्वारा जिस तरह से किसी को भी दोषी बताकर मौके पर ही क़ानून हाथ में लेते हुए फैसले लेने की बढ़ती हुई प्रवृत्ति दिखाई देने लगी है वह निश्चित तौर पर किसी सभ्य समाज का हिस्सा नहीं हो सकता है. पहले डायन के नाम पर फिर बच्चे चुराने वाले के नाम पर फिर धर्म के नाम पर फिर गाय के नाम पर और अब केवल मनमानी के नाम पर जिस तरह से देश के सामने नयी तरह की समस्या आ रही है उससे यदि समय रहते बचने और निपटने की राह नहीं निकाली गयी तो आने वाले समय में हम एक हिंसक समाज से अधिक कुछ भी नहीं बनने वाले हैं ? आखिर वे कौन से कारण हैं जिनके चलते किसी समस्या कोलेकर इकठ्ठा हुए कुछ सैकड़ा लोग किसी अन्य इंसान की हत्या करने से भी नहीं चूकते हैं जबकि उन्हें इस बात का अंदाज़ा भी होता है कि मामला आगे बढ़ने पर उनके व उनके परिवार के लिए बड़े स्तर पर मुश्किलें खडी हो सकती हैं ?
निश्चित तौर पर पिछले कुछ वर्षों में बदले राजनैतिक विमर्श और विचारधारा विशेष से असहमत होने वाले किसी भी व्यक्ति से इस तरह से निपट लेने की जो प्रवृत्ति सामने आ रही है उसके पीछे उन विचारधाराओं का भी हाथ है जो इस तरह की सामूहिक अराजकता में भी अपने लिए राजनैतिक अवसरों को खोजकर उनका लाभ उठाने से नहीं चूकती हैं. क्या आज जिस तरह से कुछ लोगों द्वारा अपना जनाधार मज़बूत किये जाने के लिए किये जाने वाले इस तरह के कामों को करने में जुटे हुए हैं तो उनको सही कहा जा सकता है ? आखिर वे कौन से कारण हैं जिनके चलते हमारे राजनेता भी जनता से जुड़कर काम करने और उनकी समस्याओं में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करके उन्हें दूर करने के स्थान पर विद्वेष पैदा करके अपने हितों को साधने में लगे हुए हैं ? इस मामले में लगभग सभी दलों की स्थिति एक जैसी ही कही जा सकती हैं पर आज यह प्रवृत्ति जितने बड़े पैमाने पर शुरू हो रही है वह चिंता का विषय है क्योंकि इस अराजक भीड़ ने अब कानून के रखवालों पर भी हाथ साफ़ करना शुरू कर दिया है जिससे आने वाले समय में कोई भी सुरक्षित नहीं रहने वाला है.
भीड़ की हिंसा के लाभ उठाने के चक्कर में जिस तरह से राजनेताओं की तरफ से भी केवल आवश्यकतानुसार बयान दिए जाते हैं और उनमें से कई बयान तो इतने शर्मनाक होते हैं कि उनका ज़िक्र करना भी उचित नहीं है फिर सुधार की गुंजाईश कहाँ बचती है ? आज तक जो प्रश्न जनता के सामने थे वे पुलिस और प्रशासन के सामने आ चुके हैं और स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि किसी दिन किसी नेता के भीड़ में फँस जाने पर उनकी हत्या की आशंका से भी नकारा नहीं जा सकता है ? इतना सब देखने के बाद भी यदि सिर्फ तात्कालिक लाभों के लिए देश की युवा पीढ़ी के मन में नफरत की दीवारों को ऊंचा कर वैमनस्यता की खाई को केवल गहरा करने में ही कुछ लोगों को अपना लाभ दिखाई दे रहा है तो अब आम भारतीय के जागने का समय आ चुका है क्योंकि यदि हमारे बच्चे इसी तरह से अराजक माहौल का हिस्सा बनते रहे तो किसी दिन वे या तो किसी भीड़ का शिकार हो सकते हैं या खुद भीड़ में शिकारी की भूमिका में भी दिखाई दे सकते हैं जिससे अंत में हमारे परिवार, समाज और राष्ट्र को ही नुकसान होने वाला है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
निश्चित तौर पर पिछले कुछ वर्षों में बदले राजनैतिक विमर्श और विचारधारा विशेष से असहमत होने वाले किसी भी व्यक्ति से इस तरह से निपट लेने की जो प्रवृत्ति सामने आ रही है उसके पीछे उन विचारधाराओं का भी हाथ है जो इस तरह की सामूहिक अराजकता में भी अपने लिए राजनैतिक अवसरों को खोजकर उनका लाभ उठाने से नहीं चूकती हैं. क्या आज जिस तरह से कुछ लोगों द्वारा अपना जनाधार मज़बूत किये जाने के लिए किये जाने वाले इस तरह के कामों को करने में जुटे हुए हैं तो उनको सही कहा जा सकता है ? आखिर वे कौन से कारण हैं जिनके चलते हमारे राजनेता भी जनता से जुड़कर काम करने और उनकी समस्याओं में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करके उन्हें दूर करने के स्थान पर विद्वेष पैदा करके अपने हितों को साधने में लगे हुए हैं ? इस मामले में लगभग सभी दलों की स्थिति एक जैसी ही कही जा सकती हैं पर आज यह प्रवृत्ति जितने बड़े पैमाने पर शुरू हो रही है वह चिंता का विषय है क्योंकि इस अराजक भीड़ ने अब कानून के रखवालों पर भी हाथ साफ़ करना शुरू कर दिया है जिससे आने वाले समय में कोई भी सुरक्षित नहीं रहने वाला है.
भीड़ की हिंसा के लाभ उठाने के चक्कर में जिस तरह से राजनेताओं की तरफ से भी केवल आवश्यकतानुसार बयान दिए जाते हैं और उनमें से कई बयान तो इतने शर्मनाक होते हैं कि उनका ज़िक्र करना भी उचित नहीं है फिर सुधार की गुंजाईश कहाँ बचती है ? आज तक जो प्रश्न जनता के सामने थे वे पुलिस और प्रशासन के सामने आ चुके हैं और स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि किसी दिन किसी नेता के भीड़ में फँस जाने पर उनकी हत्या की आशंका से भी नकारा नहीं जा सकता है ? इतना सब देखने के बाद भी यदि सिर्फ तात्कालिक लाभों के लिए देश की युवा पीढ़ी के मन में नफरत की दीवारों को ऊंचा कर वैमनस्यता की खाई को केवल गहरा करने में ही कुछ लोगों को अपना लाभ दिखाई दे रहा है तो अब आम भारतीय के जागने का समय आ चुका है क्योंकि यदि हमारे बच्चे इसी तरह से अराजक माहौल का हिस्सा बनते रहे तो किसी दिन वे या तो किसी भीड़ का शिकार हो सकते हैं या खुद भीड़ में शिकारी की भूमिका में भी दिखाई दे सकते हैं जिससे अंत में हमारे परिवार, समाज और राष्ट्र को ही नुकसान होने वाला है.
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