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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

टी-१८ परिचालन की राजनीति

                                                  देश में निर्मित सबसे तेज़ चलने वाली ट्रेन रैक टी-१८ के सफल परीक्षण के बाद इसके मार्ग और परिचालन के बारे में रेलवे द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है. आमतौर पर इस तरह की नई सेवा शुरू होने पर रेल मंत्री या पीएम के क्षेत्र को प्राथमिकता दी जाती है जबकि इतनी महत्वपूर्ण शुरुवात के लिए इसके परिचालन की लागत के निकलने और विशेष सेवा होने के कारण इसके मंहगे होने के कारण इसे उस मार्ग पर चलाने का प्रयास किया जाना चाहिए जहाँ इसकी सेवा का मूल्य चुका यात्री इसका सही तरह से लाभ लेने की स्थिति में हों. निश्चित तौर पर पीएम का संसदीय क्षेत्र होने के चलते वाराणसी को विशेष अधिकार प्राप्त है पर क्या महामना एक्सप्रेस की हालत देखकर रेलवे को इस अपनी नई सेवा की शुरुवात पीएम के क्षेत्र से करनी चाहिए ? राजनैतिक लाभ के लिए देश में आज़ादी के बाद से ही इस तरह की गतिविधियों को किया जाता रहा है और मोदी सरकार में भी यही सब जारी भी है। 
                                          अच्छा होता कि इस सेवा को दिल्ली /झाँसी या भोपाल के बीच चलाया जाता जिससे परिचालन की दृष्टि से उपलब्ध सुगम मार्ग पर इसे चलाया जा सकता और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण मथुरा आगरा झाँसी और भोपाल आने जाने वाले यात्रियों को इस तीव्र सेवा का सही लाभ मिल पाता। यह भी सही है कि देश विदेशी पर्यटकों के लिए दिल्ली आगरा के बीच चल रही गतिमान एक्सप्रेस के स्थान पर यदि इस टी-१८ को चलाया जाये तो इन स्थानों पर आने जाने वालों की यात्रा को और भी सुखद बनाया जा सकता है साथ ही दिल्ली आगरा मार्ग पर चल रही गतिमान एक्सप्रेस को वाराणसी की तरफ शिफ्ट किया जा सकता है जिससे वाराणसी के लोगों को भी नयी ट्रेन मिल जाएगी साथ ही पर्यटन स्थलों के यात्रियों को भी अपनी यात्रा का और भी लाभ मिल सकेगा। दिल्ली वाराणसी जैसे व्यस्ततम मार्ग पर टी-१८ को चलाने के लिए रेलवे को बहुत कुछ करना पड़ेगा तभी तभी यह अपनी रफ़्तार के साथ न्याय  कर पाए वर्ना यूपी में फंसती हुई ट्रेनों के बीच एक और नई गाड़ी भी विभिन्न स्टेशनों पर खडी दिखाई देने वाली है.     
                                रेल मंत्री को पहले से ही अपनी महत्वपूर्ण गाड़ियों के संचालन में आ रही बाधाओं को देखते हुए टी-१८ को वाराणसी दिल्ली के बीच चलाने से पहले आर्थिक पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए जिससे यह कम से कम अपनी परिचालन लागत को निकाल कर रेलवे को आर्थिक सहयोग भी करने की स्थिति में रहे. वैसे भी रेलवे की गलत नीतियों के चलते आज प्रीमियम किराये के कारण अधिकांश गाड़ियों में वे सीटें खाली ही रह जाती हैं जिनके लिए कभी कभी बहुत मारामारी रहा करती थी. रेलवे को पीएम के ससदीय क्षेत्र का ख्याल रखने का पूरा अधिकार है पर साथ ही क्या आज रेलवे इस स्थिति में है कि वह अपनी उन नई महत्वपूर्ण गाड़ियों को आर्थिक पहलू के स्थान पर राजनैतिक लाभ के रूप में चलाने के बारे में सोच सके ? निश्चित तौर पर यह निर्णय रेलवे बोर्ड का ही होगा पर क्या बोर्ड सरकार और मंत्री की मंशा के खिलाफ जाकर इस तरह के किसी कदम का विरोध करने की स्थिति में होता भी है ?     

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