मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 26 दिसंबर 2018

औद्योगिक विकास की चुनौतियाँ

                                               छत्तीसगढ़ की नवनिर्वाचित कांग्रेस सरकार ने चुनाव में किये गए अपने वायदे को पूरा करते हुए बस्तर संभाग में लगने वाले टाटा स्टील प्लांट को आवंटित की गयी १७०० एकड़ जमीन कम्पनी से वापस लेकर किसानों को वापस करने के लिए आदेश जारी कर दिया है जिसके बाद स्थानीय किसानों में तो हर्ष का माहौल है पर इससे राज्य में औद्योगिक विकास को बड़ा झटका लगने की संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता है. यह भी सही है कि इस मामले में टाटा समूह द्वारा भूमि आवंटन के नियमों के अनुरूप प्लांट लगाने का काम आगे नहीं बढ़ाया गया जिससे स्थानीय लोगों में रोष भी था जिसे समझते हुए कांग्रेस ने वहां पर इसे एक मुद्दा बना लिया और जनता में अपनी विश्वसनीयता साबित करने के लिए आवंटन को रद्द भी कर दिया है. इस मामले में कहीं न कहीं कुछ ऐसी कमी अवश्य ही रही होगी जिससे टाटा जैसा समूह भी अपनी कही गयी बातों को पूरा नहीं पाया।
                                    भूपेश बघेल सरकार ने किसानों की मांग और समस्या को देखते हुए अपने वायदे को पूरा किया उसे गलत नहीं कहा जा सकता है पर जिस तरह से यह पूरा मामला बिगड़ा अब उस पर  विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि खनिज सम्पदा से भरपूर राज्य से पूरे देश और दुनिया के औद्यौगिक समूहों में यह सन्देश भी नहीं जाना चाहिए कि यह सरकार पूरी तरह से उद्योगों की विरोधी है ? टाटा समूह के सामने आखिर वे कौन सी परिथितियाँ उत्पन्न हुईं जिसके चलते इस प्लांट का काम आगे नहीं बढ़ सका भूपेश सरकार को इस बारे में भी गंभीर विचार कर नीतियों के निर्धारण में उद्योगों का भी ख्याल रखना होगा जिससे आने वाले समय में राज्य के औद्यौगिक माहौल को सुधारा जा सके. रमन सरकार की तरफ से आखिर किन स्तरों पर क्या चूक हुई जिससे यह प्लांट मूर्त रूप नहीं ले सका और सरकार के पास क्या विकल्प थे जिसके चलते वह नियमों में सुधार कर टाटा समूह और किसानों के बीच समन्वय स्थापित कर सकती थी ?
                                  बंगाल के बाद टाटा को संभवतः दूसरी बार इस तरह की परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा जब वह अपनी योजना को मूर्त रूप देने में खुद को असमर्थ पा रहा होगा ? आज टाटा समूह ही नहीं बल्कि सभी औद्यौगिक समूहों के साथ केंद्र तथा राज्य सरकारों को बेहतर समन्वय करने की आवश्यकता है जिससे आने वाले समय में कोई भी परियोजना इस तरह से बीच में न लटक जाये। चिंता की बात यह भी है कि औद्यौगिक माहौल सुधारने की बातें करने वाली मोदी सरकार के कार्यकाल में भी इस समस्या का सही हल नहीं खोजा जा सका ? यदि समय रहते केंद्र सरकार का दखल होता या रमन सरकार खुद ही केंद्र की सहायता मांगती तो संभवतः किसानों के आंदोलन से टाटा समूह को दिक्कत न होती और मामला इतना बिगड़ने भी नहीं पाता। बात यहाँ पर किसानों के हितों का ध्यान रखते हुए समग्र औद्यौगिक विकास की संभावनाएं बढाने की है जिसमें रमन सरकार पूरी तरह से चूक गयी थी पर मामले को अतिवादी होकर एकतरफा निपटने से भूपेश सरकार भी राज्य और देश का भला नहीं कर पायेगी। इसलिए राजनैतिक कारणों को दूर रखते हुए अब राज्य सरकार को नीतियों की कमियों पर ध्यान देकर उन्हें दूर करने की आवश्यकता है।       
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें