देश में बढ़ती बेरोजगारी और घटते रोजगार के अवसरों के बीच युवाओं के लिए उनकी प्रगति के साथ उम्मीदों को पूरा करना आज हर राजनैतिक दल के लिए एक समस्या बनता जा रहा है. आज जिस तरह से देश की अधिकांश आबादी युवा होती दिख रही है उसके बीच इस बड़े वोट समूह की अनदेखी करना किसी भी दल के लिए आसान नहीं रह गया है. इस तरह की परिस्थिति के बीच ही राजनैतिक दलों की तरफ से युवाओं को बेरोजगारी भत्ता दिए जाने की विभिन्न तरह की घोषणाएं की जाती रहती हैं पर उससे धरातल पर युवाओं की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आता है वरन सभी राजनैतिक दलों पर इस तरह की घोषणाएं अपने चुनाव घोषणा पत्रों में किये जाने की मजबूरी सामने आती है. इस परिस्थिति से निपटने के लिए क्या केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक नए तरह की सोच के साथ सामने नहीं आना चाहिए ?
युवा बेकार न रहे उसे अपने घर के आस पास ही काम करने के अवसर मिलें इससे सभी का भला हो सकता है यूपी में आदित्यनाथ सरकार ने जिस तरह से एक जिला एक उत्पाद की अवधारणा को मज़बूती के साथ आगे बढ़ाया है यदि उसे नौकरशाही से बचाया जा सका तो निश्चित तौर पर उसके सार्थक परिणाम सामने आयेंगें जिससे युवा खुद का काम शुरू करने के साथ कुछ लोगों के लिए रोजगार का सृजन करने की स्थिति में भी आ सकते हैं. यूपी जैसे राज्य में जिस तरह से हर स्तर पर आज भी भ्रष्टाचार पूरी तरह से व्याप्त है उस पर कडा प्रहार किए बिना स्थिति को सुधारा नहीं जा सकता है और यह योजना भी एक भ्रष्टाचार करने के अड्डे के रूप में विकसित हो सकती है जिससे किसी का लाभ नहीं होने वाला और बैंकों का क़र्ज़ एक बार फिर से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने की तरफ बढ़ सकता है.
क्या केंद्र सरकार अपने सफ़ेद हाथी बन चुके कौशल विकास कार्यक्रम की समीक्षा करने को तैयार है जिसके माध्यम से जितने कुशल श्रमिकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की तरफ कदम बढ़ाये जाने थे आज वे कहीं ठिठके हुए ही अधिक नज़र आते हैं ? अच्छा हो कि युवाओं को सीमित संख्या में चिकित्सा, यातायात, सामान्य प्रशासन, कृषि, शिक्षा, समाज कल्याण, बाल एवं महिला कल्याण के कार्यक्रमों में कार्य करने के लिए प्रशिक्षित किया जाये जिससे समय आने पर आवश्यकतानुसार विभिन्न विभागों के कामों में कर्मचारियों के सहयोग के लिए उनका सीमित दिनों के लिए उपयोग किया जा सके। मनरेगा की तरह ही शिक्षित और प्रशिक्षित युवाओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा कार्यक्रम शुरू किया जा सकता है जिससे इनको घर बैठे बेरोजगारी भत्ता देने के स्थान पर माह में १० दिन या आवश्यकता पड़ने पर उससे अधिक दिन भी काम कराया जा सके. इस तरह से प्रशिक्षण और विभागों के साथ काम कर चुके युवाओं को समय पड़ने पर सम्बंधित विभागों में नौकरियों निकलने पर उनकी शैक्षणिक योग्यता के अनुरूप प्राथमिकता के आधार पर चयनित करने के बारे में भी सोचा जा सकता है। अच्छा हो कि इन सभी प्रयासों को केवल तात्कालिक उपायों के स्थान पर दीर्घकालिक योजना के अनुरूप देखा जाये जिससे समय आने पर युवाओं के साथ न्याय किया जा सके।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
युवा बेकार न रहे उसे अपने घर के आस पास ही काम करने के अवसर मिलें इससे सभी का भला हो सकता है यूपी में आदित्यनाथ सरकार ने जिस तरह से एक जिला एक उत्पाद की अवधारणा को मज़बूती के साथ आगे बढ़ाया है यदि उसे नौकरशाही से बचाया जा सका तो निश्चित तौर पर उसके सार्थक परिणाम सामने आयेंगें जिससे युवा खुद का काम शुरू करने के साथ कुछ लोगों के लिए रोजगार का सृजन करने की स्थिति में भी आ सकते हैं. यूपी जैसे राज्य में जिस तरह से हर स्तर पर आज भी भ्रष्टाचार पूरी तरह से व्याप्त है उस पर कडा प्रहार किए बिना स्थिति को सुधारा नहीं जा सकता है और यह योजना भी एक भ्रष्टाचार करने के अड्डे के रूप में विकसित हो सकती है जिससे किसी का लाभ नहीं होने वाला और बैंकों का क़र्ज़ एक बार फिर से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने की तरफ बढ़ सकता है.
क्या केंद्र सरकार अपने सफ़ेद हाथी बन चुके कौशल विकास कार्यक्रम की समीक्षा करने को तैयार है जिसके माध्यम से जितने कुशल श्रमिकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की तरफ कदम बढ़ाये जाने थे आज वे कहीं ठिठके हुए ही अधिक नज़र आते हैं ? अच्छा हो कि युवाओं को सीमित संख्या में चिकित्सा, यातायात, सामान्य प्रशासन, कृषि, शिक्षा, समाज कल्याण, बाल एवं महिला कल्याण के कार्यक्रमों में कार्य करने के लिए प्रशिक्षित किया जाये जिससे समय आने पर आवश्यकतानुसार विभिन्न विभागों के कामों में कर्मचारियों के सहयोग के लिए उनका सीमित दिनों के लिए उपयोग किया जा सके। मनरेगा की तरह ही शिक्षित और प्रशिक्षित युवाओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा कार्यक्रम शुरू किया जा सकता है जिससे इनको घर बैठे बेरोजगारी भत्ता देने के स्थान पर माह में १० दिन या आवश्यकता पड़ने पर उससे अधिक दिन भी काम कराया जा सके. इस तरह से प्रशिक्षण और विभागों के साथ काम कर चुके युवाओं को समय पड़ने पर सम्बंधित विभागों में नौकरियों निकलने पर उनकी शैक्षणिक योग्यता के अनुरूप प्राथमिकता के आधार पर चयनित करने के बारे में भी सोचा जा सकता है। अच्छा हो कि इन सभी प्रयासों को केवल तात्कालिक उपायों के स्थान पर दीर्घकालिक योजना के अनुरूप देखा जाये जिससे समय आने पर युवाओं के साथ न्याय किया जा सके।
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