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गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

राज्यों की स्थानीय नौकरियां

                                                               एमपी के सीएम कमलनाथ ने जिस तरह से राज्य में लगाए जाने वाले नए उद्योगों के लिए विभिन्न स्तरों पर छूट पाने के लिए राज्य के स्थानीय नागरिकों की शर्त लगायी है वह अपने आप में सम्पूर्ण देश के कानून और परिस्थितियों को देखते हुए सही नहीं कही जा सकती है पर विभिन्न राज्यों में इस तरह की नीति पहले सही चल रही है और आने वाले समय में इसके राजनैतिक लाभ लेने की कोशिशों के चलते अन्य राज्यों द्वारा भी इस तरह का मॉडल अपनाये जाने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. इस मामले में पहल करने और दूसरे राज्यों के लोगों को अक्सर निशाने पर लेने वाले महाराष्ट्र में  १९६८ से ही इस तरह की नीति लागू है जिसमें स्थानीय लोगों के लिए ८०% नौकरियों को आरक्षित किया गया था और आज भी स्थानीय दबाव के चलते प्रवासी कामगारों को नियमानुसार होने के बाद भी नौकरियों से बिना कारण बताये निकाला भी जाता है. इस मामले में तेलंगाना के कानून सबसे कड़े हैं क्योंकि वहां दूसरे राज्य के ही नहीं बल्कि राज्य के अंदर के लोग भी दूसरे क्षेत्र में नौकरी नहीं पा सकते हैं. हिमाचल, कर्णाटक ओडिशा में भी कम वेतन वाली नौकरियों को इसी तरह से स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित किया गया है।
                          ऐसी स्थिति का स्थानीय लोगों के लिए कुछ लाभ भी होता है पर उद्योगों के लिए दूसरे तरह की समस्याएं सामने आ जाती हैं जिसके चलते उनको प्रतिस्पर्धा पर सस्ता श्रम नहीं मिल पाता है और स्थानीय लोगों की अधिकता के कारण अनावश्यक श्रमिक राजनीति होने से उत्पादन आदि पर भी दुष्प्रभाव पड़ने की संभावनाएं अधिक हो जाती हैं. इस मामले को दूसरी तरह से देखने की आवश्यकता है जिससे उद्योगों के उत्पादन और उनके स्थापित होने की संख्या पर असर न पड़े साथ ही स्थानीय नागरिकों को भी अपने आस पास श्रम उपलब्ध हो जाये. आज वैसे भी नोटबंदी के बाद जिस तरह से निचले स्तर पर काम करने वाले श्रमिकों का अपने राज्यों में उल्टा पलायन हुआ है उससे भी समस्याएं नए स्तर पर सामने आ रही हैं. ऐसी परिस्थिति में केंद्र मनरेगा के धन आवंटन को बढ़ाकर स्थानीय स्तर पर श्रम दिवस बढ़ाये जाने का प्रयास कर सकती है जिसमें उसे राज्यों के भरपूर सहयोग की आवश्यकता पड़ने वाली है.
                         कौशल विकास योजना अपने आप में जितनी अनूठी थी उसे उतनी ही मक्कारी से भ्रष्ट तंत्र में बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी है क्योंकि जिस तरह से बिना सुविधाओं के लोगों ने ऐसे केंद्र खोले और सरकार से प्राप्त अनुदान में बंदरबांट की वह किसी से भी छिपी नहीं है जिससे सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना जो हर स्तर पर नागरिकों के जीवन यापन में सहयोग कर सकती थी केवल भ्रष्टाचार का स्तम्भ बनकर ही रह गयी है. यदि इसको योजना को छोटे स्तर पर चलाकर उसकी प्रगति देखी जाती साथ ही बहुत बड़ी संख्या में केंद्र खोलने के स्थान पर उनमें दी जाने वाली ट्रेनिंग की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाता तो आने वाले समय में उद्योगों के लिए आवश्यकतानुसार स्थानीय श्रम भी उपलब्ध हो जाता। अब भी समय है कि स्थानीय स्तर पर पनप सकने वाले उद्योगों की पहचान कर उनके अनुरूप कार्य शुरू किया  भविष्य के लिए ऐसी समस्या से निपटा जा सके. यदि स्थानीय नागरिकों को अपने आस पास ही अच्छी सुविधा से युक्त रोज़गार मिल जायेगा तो कोई भी अपने पैतृक शहर को छोड़कर कहीं और जाने की बातें भी नहीं सोचेगा।
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