एमपी में सत्ता सँभालने के साथ ही अपने पहले आदेश में सीएम कमलनाथ ने २ लाख रुपयों तक के कृषि ऋण के बारे में जो फैसला लिया है वह कांग्रेस के वचन पत्र के अनुरूप ही है पर इसके सही ढंग से क्रियान्वयन के लिए अब पूरा दबाव सीएम कमलनाथ पर ही आने वाला है क्योंकि कई राज्यों ने इस तरह की क़र्ज़ माफ़ी की घोषणा की पर बाद में आंकड़ों की बाज़ीगरी से अधिकारियों ने किसानों का बहुत कम ऋण ही माफ़ होने दिया. कमलनाथ को जनता की समस्याओं के बारे में अच्छे से पता है और वे सरकारी मशीनरी से अच्छे से काम लेना भी जानते हैं तो उनके लिए इस दिशा में आगे बढ़ने में कठिनाइयां कम होने की संभावनाएं भी हैं. फिर भी इस काम के लिए यदि एक राज्यमंत्री की अलग से नियुक्ति कर दी जाये तो संभवतः इस निर्णय को सही तरीके से लागू किया जा सकेगा। ऋण माफ़ी का कार्य पूरा होने के बाद उस राज्यमंत्री को अलग से किसी विभाग में स्थानांतरित किया जा सकता है। इस कार्य में सही और लाभार्थियों की सूची बनाये जाने का काम सबसे कठिन होता है इसलिए इसे दो स्तरों में किया जाना चाहिए पहले स्तर में बैंकों से सीधे किसानों के ऋण की स्थिति जानी जा सकती है वहीं दूसरे स्तर पर कांग्रेस के कार्यकर्तों को भी इस कार्य में लगाया जा सकता है जो किसी भी किसान को इस लाभ से वंचित होने की स्थिति पर कड़ी नज़र रखने का काम कर सके.
इसके अतिरिक्त यदि सरकार बेरोज़गारी भत्ते के मामले में आगे बढ़ती है तो वह इन युवाओं से ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वे भी करवा सकती है जिससे सरकार को दोहरा लाभ भी हो सकता है। बेरोज़गारों को रोज़गार देने के साथ सरकार इन युवाओं से महीने में कुछ दिन काम भी ले सकती है जिससे युवाओं में काम करने की भावना के साथ सरकार को काम करने वाले युवा हाथों का सम्बल भी मिल जायेगा। जिस तरह से सीएम कमलनाथ ने जनता से जुड़े मुद्दों को लोकसभा चुनावों को देखते हुए प्राथमिकता में लिया है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि खुद सीम और कांग्रेस पार्टी इसे पीएम मोदी के बड़े खोखले बयानों के सामने काम करने की संस्कृति के रूप में प्रस्तुत करने को तैयार दिखाई देते हैं। बेशक यह राजनैतिक लाभ के लिए लिया गया निर्णय है पर इसके दूरगामी परिणाम पूरे देश पर आने वाले समय में पड़ने से इंकार भी नहीं किया जा सकता है।
स्थानीय युवकों के लिए ७०% रोज़गार देने वाले उद्योगों को सरकारी छूट देने का निर्णय सही कहा जा सकता है पर जिस तरह से सीएम कमलनाथ ने इसके लिए यूपी-बिहार के लोगों द्वारा नौकरियाँ हथियाये जाने की बात की उससे कोई भी सहमत नहीं हो सकता है क्योंकि यह क्षेत्रीय पार्टियों की स्थानीय सोच जैसी बात है और यह भी सोचा जाना चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों होता है कि स्थानीय लोगों के रोज़गार को किस तरह से बाहर से आने वाले अन्य राज्यों के लोग पा जाते हैं ? सरकार को एमपी के युवकों में कुशलता के साथ कोई भी काम करने की इच्छाशक्ति बढ़ानी होगी तभी उद्योगों के साथ राज्य के युवाओं का विकास भी हो सकता है। .शिवसेना की तरह जय महाराष्ट्र और मराठी मानुष जैसी सोच का किसी भी अन्य राज्य में समर्थन नहीं किया जा सकता क्योंकि यह संविधान की मूल भावनाओं के विपरीत जाता है। खुद उद्योगपति होने के कारण कमलनाथ इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि सभी को कुशल कामगारों की आवश्यकता होती है और जब तक कुशलता बढ़ाई नहीं जाएगी तब तक हवाई सपने देखने से कुछ भी संभव नहीं है।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इसके अतिरिक्त यदि सरकार बेरोज़गारी भत्ते के मामले में आगे बढ़ती है तो वह इन युवाओं से ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वे भी करवा सकती है जिससे सरकार को दोहरा लाभ भी हो सकता है। बेरोज़गारों को रोज़गार देने के साथ सरकार इन युवाओं से महीने में कुछ दिन काम भी ले सकती है जिससे युवाओं में काम करने की भावना के साथ सरकार को काम करने वाले युवा हाथों का सम्बल भी मिल जायेगा। जिस तरह से सीएम कमलनाथ ने जनता से जुड़े मुद्दों को लोकसभा चुनावों को देखते हुए प्राथमिकता में लिया है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि खुद सीम और कांग्रेस पार्टी इसे पीएम मोदी के बड़े खोखले बयानों के सामने काम करने की संस्कृति के रूप में प्रस्तुत करने को तैयार दिखाई देते हैं। बेशक यह राजनैतिक लाभ के लिए लिया गया निर्णय है पर इसके दूरगामी परिणाम पूरे देश पर आने वाले समय में पड़ने से इंकार भी नहीं किया जा सकता है।
स्थानीय युवकों के लिए ७०% रोज़गार देने वाले उद्योगों को सरकारी छूट देने का निर्णय सही कहा जा सकता है पर जिस तरह से सीएम कमलनाथ ने इसके लिए यूपी-बिहार के लोगों द्वारा नौकरियाँ हथियाये जाने की बात की उससे कोई भी सहमत नहीं हो सकता है क्योंकि यह क्षेत्रीय पार्टियों की स्थानीय सोच जैसी बात है और यह भी सोचा जाना चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों होता है कि स्थानीय लोगों के रोज़गार को किस तरह से बाहर से आने वाले अन्य राज्यों के लोग पा जाते हैं ? सरकार को एमपी के युवकों में कुशलता के साथ कोई भी काम करने की इच्छाशक्ति बढ़ानी होगी तभी उद्योगों के साथ राज्य के युवाओं का विकास भी हो सकता है। .शिवसेना की तरह जय महाराष्ट्र और मराठी मानुष जैसी सोच का किसी भी अन्य राज्य में समर्थन नहीं किया जा सकता क्योंकि यह संविधान की मूल भावनाओं के विपरीत जाता है। खुद उद्योगपति होने के कारण कमलनाथ इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि सभी को कुशल कामगारों की आवश्यकता होती है और जब तक कुशलता बढ़ाई नहीं जाएगी तब तक हवाई सपने देखने से कुछ भी संभव नहीं है।
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