हालिया चुनावों में जिस तरह से लम्बे समय से भाजपा के गढ़ रहे छत्तीसगढ़ में जनता ने कांग्रेस के पक्ष में प्रचंड बहुमत दिया और राजस्थान एवं एमपी में अच्छा ख़ासा समर्थन देकर भी सिर्फ सत्ता से उतार दिया है उसके बाद यदि उसके नेतृत्व द्वारा खतरे की इस घंटी को नहीं सुना गया तो २०१९ की उनकी चुनावी संभावनाओं पर बुरा प्रभाव पड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता है. ऐसा भी नहीं है कि ऐसा अचानक ही हुआ है क्योंकि गुजरात, गोवा, पंजाब, कर्णाटक में भाजपा के लिए राह बिलकुल भी आसान नहीं रही फिर भी उन जनादेशों की एक तरह से भाजपा नेतृत्व द्वारा पूरी अनदेखी की गयी जिसके चलते आज उसके तीन महवत्पूर्ण हिंदीभाषी राज्य विपक्षी दल कांग्रेस के हाथों में चले गए हैं। यह सही है कि अभी तक भाजपा पीएम मोदी की लोकप्रियता और अपने अध्यक्ष अमित शाह के कुशल प्रबंधन से लगातार अजेय बनी हुई थी पर अब उसकी यह छवि भी इन चुनावों से कमज़ोर हुई है कि भाजपा को कोई हरा नहीं सकता है. निश्चित तौर पर आज देश में भाजपा के पास मज़बूत संगठन तो है ही साथ में संघ के ज़मीनी समर्थन से उसके लिए जनता के साथ जुड़ने का अवसर भी रहता है जो उसकी स्थिति को अन्य दलों के मुक़ाबले मज़बूत करने का काम करता है फिर भी जनता से जुड़े सरोकारों में जिस तरह से भाजपा पिछड़ रही है वह उसके लिए सब कुछ होने के बाद भी अनुकूल परिणाम देने से दूर जाने वाला साबित हो सकता है.
निश्चित तौर पर २०१४ के बाद पेट्रोलियम क्षेत्र में होने वाले मुनाफे के दम पर मोदी सरकार का खज़ाना भरा जिससे उसके पास लोक कल्याण के लिये वो धन उपलब्ध होना शुरू हो गया जो पिछली मनमोहन सरकार में केवल सब्सिडी में ही खर्च हो जाया करता था. आज भी देश में राजनैतिक इच्छाशक्ति उस स्तर पर नहीं दिखाई देती है जिसमें वह नौकरशाही के स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार में अपना हिस्सा न मांगे और भ्रष्ट नौकरशाहों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की कोशिश शुरू करे. आज क्या केंद्र सरकार और अधिकांश राज्यों में सत्ता सँभाल रही भाजपा यह बात पूरी दृढ़ता के साथ कह सकती है कि उसके द्वारा शासित राज्यों में भ्रष्टाचार का अंत किया जा चुका है ? गौ रक्षक और हिन्दुओं के नाम पर क्या भाजपा और इसकी सरकारों ने ईमानदारी से काम किया है या इस मुद्दे से केवल धार्मिक भावनाएं भड़का कर वोट बटोरने तक ही मामले को सीमित किया जा चुका है ? यदि वास्तव में ऐसा कुछ है तो आने वाले समय में भाजपा को यूपी जैसे राज्यों में अपने इन कर्मों के चलते बड़े नुकसान के लिए मानसिक रूप से तैयार होना होगा क्योंकि आज भाजपा को विपक्षियों से उतना खतरा नहीं है जितना उसे अपने नेताओं और उनके अनावश्यक बयानों से होने वाला है.
भाजपा द्वारा जिस तरह से पूरे देश में पदयात्रा का आयोजन किया जीवंत लोकतंत्र में हर राजनैतिक दल को इस तरह के प्रयासों को अपनाना चाहिए जिससे वे जनता की समस्याओं को केवल अधिकारियों के चश्में से देखने के स्थान पर धरातल पर समझने की स्थिति में आ सकें। पद यात्रा के समय जनता का जो मूड दिखाई दिया है उससे स्थानीय नेता अवश्य ही भयभीत हुए होंगें क्योंकि यूपी जैसे राज्य में जहाँ विश्व की एकमात्र और सबसे बड़ी गोरक्ष पीठ के महंत आदित्यनाथ के सीएम होने के बाद गायों की स्थिति में गिरावट आयी है वह भी अमित शाह को पता चल गया होगा ? और यदि ज़िले और प्रदेश के नेतृत्व में इतनी हिम्मत नहीं बची है कि वह इस सच्चाई को ऊपर तक पहुंचा कर कोई समाधान निकाले तो आने वाले चुनावों में भाजपा के ज़मीनी संघर्ष उसकी सोच से भी बहुत बड़ा होने वाला है और पूरे प्रदेश में यह स्थिति बन सकती है कि जो भी दल भाजपा को हराने की स्थिति में होगा किसान संभवतः उसी के साथ खड़ा दिखाई देगा। २० महीने के कार्यकाल में यूपी में गायों और आवारा पशुओं से किसानों की जो दुर्दशा हुई है संभवतः २०१९ में भाजपा को बहुत भारी पड़ने वाली है क्योंकि अभी तक इस बारे में सरकार या पार्टी के स्तर पर कोई ठोस प्रशासनिक, राजनैतिक या जागरूकता का काम शुरू नहीं किया गया है जिससे आम किसान एक बार फिर उसी सम्बल से भाजपा के साथ खड़े होने को सोचे जैसा उसने २०१४ में किया था।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
निश्चित तौर पर २०१४ के बाद पेट्रोलियम क्षेत्र में होने वाले मुनाफे के दम पर मोदी सरकार का खज़ाना भरा जिससे उसके पास लोक कल्याण के लिये वो धन उपलब्ध होना शुरू हो गया जो पिछली मनमोहन सरकार में केवल सब्सिडी में ही खर्च हो जाया करता था. आज भी देश में राजनैतिक इच्छाशक्ति उस स्तर पर नहीं दिखाई देती है जिसमें वह नौकरशाही के स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार में अपना हिस्सा न मांगे और भ्रष्ट नौकरशाहों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की कोशिश शुरू करे. आज क्या केंद्र सरकार और अधिकांश राज्यों में सत्ता सँभाल रही भाजपा यह बात पूरी दृढ़ता के साथ कह सकती है कि उसके द्वारा शासित राज्यों में भ्रष्टाचार का अंत किया जा चुका है ? गौ रक्षक और हिन्दुओं के नाम पर क्या भाजपा और इसकी सरकारों ने ईमानदारी से काम किया है या इस मुद्दे से केवल धार्मिक भावनाएं भड़का कर वोट बटोरने तक ही मामले को सीमित किया जा चुका है ? यदि वास्तव में ऐसा कुछ है तो आने वाले समय में भाजपा को यूपी जैसे राज्यों में अपने इन कर्मों के चलते बड़े नुकसान के लिए मानसिक रूप से तैयार होना होगा क्योंकि आज भाजपा को विपक्षियों से उतना खतरा नहीं है जितना उसे अपने नेताओं और उनके अनावश्यक बयानों से होने वाला है.
भाजपा द्वारा जिस तरह से पूरे देश में पदयात्रा का आयोजन किया जीवंत लोकतंत्र में हर राजनैतिक दल को इस तरह के प्रयासों को अपनाना चाहिए जिससे वे जनता की समस्याओं को केवल अधिकारियों के चश्में से देखने के स्थान पर धरातल पर समझने की स्थिति में आ सकें। पद यात्रा के समय जनता का जो मूड दिखाई दिया है उससे स्थानीय नेता अवश्य ही भयभीत हुए होंगें क्योंकि यूपी जैसे राज्य में जहाँ विश्व की एकमात्र और सबसे बड़ी गोरक्ष पीठ के महंत आदित्यनाथ के सीएम होने के बाद गायों की स्थिति में गिरावट आयी है वह भी अमित शाह को पता चल गया होगा ? और यदि ज़िले और प्रदेश के नेतृत्व में इतनी हिम्मत नहीं बची है कि वह इस सच्चाई को ऊपर तक पहुंचा कर कोई समाधान निकाले तो आने वाले चुनावों में भाजपा के ज़मीनी संघर्ष उसकी सोच से भी बहुत बड़ा होने वाला है और पूरे प्रदेश में यह स्थिति बन सकती है कि जो भी दल भाजपा को हराने की स्थिति में होगा किसान संभवतः उसी के साथ खड़ा दिखाई देगा। २० महीने के कार्यकाल में यूपी में गायों और आवारा पशुओं से किसानों की जो दुर्दशा हुई है संभवतः २०१९ में भाजपा को बहुत भारी पड़ने वाली है क्योंकि अभी तक इस बारे में सरकार या पार्टी के स्तर पर कोई ठोस प्रशासनिक, राजनैतिक या जागरूकता का काम शुरू नहीं किया गया है जिससे आम किसान एक बार फिर उसी सम्बल से भाजपा के साथ खड़े होने को सोचे जैसा उसने २०१४ में किया था।
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