एमपी में हुए चुनावों के बाद जिस तरह से वहां जीते हुए विधायकों के बारे में सूचना सामने आयी है वह वास्तव में चौंकाने वाली है क्योंकि २३० की विधान सभा में ९४ विधायकों के खिलाफ मुक़दमें दर्ज़ हैं जो लगभग ४१% होते हैं. इसमें भी ४५ के खिलाफ गंभीर किस्म के मामले दर्ज़ हैं तो ऐसी स्थिति में यह प्रश्न स्वाभाविक ही है कि क्या आने वाले दिनों में राज्य की सत्ता सँभालने वाली कमलनाथ सरकार इनके मामलों में कुछ तेज़ी लाने का प्रयास करेगी ? यह भी संभव है कि कुछ नेताओं के खिलाफ मात्र राजनैतिक दुर्भावना के तहत ही मामले दर्ज़ हों पर जिन लोगों के खिलाफ गंभीर मुक़दमे चल रहे हैं उनके लिए अब केवल एमपी सरकार ही नहीं बल्कि केंद्रीय स्तर पर भी कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है. एक राज्य के प्रयासों को पूरे देश में लागू नहीं किया जा सकता है इसके लिए सुरीम कोर्ट की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए अब ठोस और प्रभावी क़दमों के बारे में सोचना शुरू करना ही होगा.
देश की राजनीति में अपराधियों का प्रभाव बढ़ने की घटना पर विचार करना भी बहुत आवश्यक है क्योंकि एक समय अपनी लोकप्रियता में कमी आने के कारन कुछ स्थानों पर नेताओं ने स्थानीय अपराधियों के माध्यम से मतदान केंद्रों पर कब्ज़े कर चुनाव जीतना शुरू कर दिया था. कुछ समय बाद अपराधियों की समझ में यह आया कि जब इन हथकंडों से वे किसी नेता को चुनाव जितवा सकते हैं तो इनका अपने लिए उपयोग क्यों नहीं कर सकते हैं ? भारतीय राजनीति के अपराधीकरण की पृष्ठभूमि यहीं से तैयार हुई जो आज देश की विधायिका के लिए भले ही चिंता की बात न हो पर न्यायपालिका ने अपने स्तर से कई बार इस बारे में कड़े कानून बनाने के लिए निर्देशित भी किया है परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि अपराधियों से सांठगांठ के चलते आज किसी भी दल के लिए अपने दल को अपराधियों और उनके प्रभाव से मुक्त करने की इच्छाशक्ति ही नहीं बची है।
अब समय आ गया है कि किसी एक राज्य से इस परिवर्तन को शुरू किया जाये जिससे भारतीय राजनीति को आज़ादी के बाद की स्वच्छता के स्तर पर लाया जा सके. क्या स्वच्छ भारत अभियान सिर्फ भौतिक कूड़े कचरे से निपटने के लिए ही चलाया जा रहा है ? क्या अब समय नहीं आ गया है कि इस स्वच्छ भारत अभियान में हर तरफ की सफाई को शामिल किया जाये जिससे समाज को राजनीति का वह स्वरुप दिख सके जिसकी परिकल्पना भारतीय संविधान में की गयी है। नेताओं को केवल वही बातें अच्छी लगती हैं और वे केवल उन्हीं पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित रखना चाहते हैं जिनसे उन्हें तात्कालिक और दूरगामी परिणाम मिलते रहते हैं. अब समय आ गया है कि जनता भी अपने स्तर से यह देखे कि किस राजनैतिक दल ने किस श्रेणी के अपराधों में शामिल लोगों को अपने प्रत्याशी बना रखा है इससे राजनैतिक दलों पर भी समुचित दबाव बनाया जा सके और आने वाले समय में देश की राजनीति में अपराधियों के स्तर को कम करने में सफलता पायी जा सके.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
देश की राजनीति में अपराधियों का प्रभाव बढ़ने की घटना पर विचार करना भी बहुत आवश्यक है क्योंकि एक समय अपनी लोकप्रियता में कमी आने के कारन कुछ स्थानों पर नेताओं ने स्थानीय अपराधियों के माध्यम से मतदान केंद्रों पर कब्ज़े कर चुनाव जीतना शुरू कर दिया था. कुछ समय बाद अपराधियों की समझ में यह आया कि जब इन हथकंडों से वे किसी नेता को चुनाव जितवा सकते हैं तो इनका अपने लिए उपयोग क्यों नहीं कर सकते हैं ? भारतीय राजनीति के अपराधीकरण की पृष्ठभूमि यहीं से तैयार हुई जो आज देश की विधायिका के लिए भले ही चिंता की बात न हो पर न्यायपालिका ने अपने स्तर से कई बार इस बारे में कड़े कानून बनाने के लिए निर्देशित भी किया है परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि अपराधियों से सांठगांठ के चलते आज किसी भी दल के लिए अपने दल को अपराधियों और उनके प्रभाव से मुक्त करने की इच्छाशक्ति ही नहीं बची है।
अब समय आ गया है कि किसी एक राज्य से इस परिवर्तन को शुरू किया जाये जिससे भारतीय राजनीति को आज़ादी के बाद की स्वच्छता के स्तर पर लाया जा सके. क्या स्वच्छ भारत अभियान सिर्फ भौतिक कूड़े कचरे से निपटने के लिए ही चलाया जा रहा है ? क्या अब समय नहीं आ गया है कि इस स्वच्छ भारत अभियान में हर तरफ की सफाई को शामिल किया जाये जिससे समाज को राजनीति का वह स्वरुप दिख सके जिसकी परिकल्पना भारतीय संविधान में की गयी है। नेताओं को केवल वही बातें अच्छी लगती हैं और वे केवल उन्हीं पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित रखना चाहते हैं जिनसे उन्हें तात्कालिक और दूरगामी परिणाम मिलते रहते हैं. अब समय आ गया है कि जनता भी अपने स्तर से यह देखे कि किस राजनैतिक दल ने किस श्रेणी के अपराधों में शामिल लोगों को अपने प्रत्याशी बना रखा है इससे राजनैतिक दलों पर भी समुचित दबाव बनाया जा सके और आने वाले समय में देश की राजनीति में अपराधियों के स्तर को कम करने में सफलता पायी जा सके.
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