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बुधवार, 20 मई 2020

बसों पर राजनीति

                                                          लॉक डाउन के चलते दिन में कई कई बार बदलते नियमों के कारण एक राज्य से दूसरे राज्य में अपने घर जाने वाले मजदूरों की स्थिति पर भी किस तरह की राजनीति की जा सकती है यह यूपी सरकार और कांग्रेस के बीच छिड़ी चिट्ठी वाली जंग से आसानी से समझा जा सकता है. बड़ी संख्या में मजदूरों के यूपी वापस आने और उनको लाने में तालमेल की कमी के साथ सीमित संसाधनों के चलते ये सभी प्रदेश की विभिन्न सीमाओं पर फंसे हुए हैं और लखनऊ से सरकार के स्पष्ट आदेश न होने के चलते यूपी पुलिस इन्हें बॉर्डर पर रोकने का काम कर रही है. इस परिस्थिति में कांग्रेस की तरफ से एक हज़ार बसें इन लोगों को उनके घरों तक पहुँचाने के लिए उपलब्ध कराने की बात कही गयी जिस पर यूपी सरकार ने दो दिनों में निर्णय लिया। कायदे से इस समय एक दूसरे पर आरोप लगाने के स्थान पर यूपी सरकार को कांग्रेस की तरफ से दी गयी इस पेशकश को स्वीकार कर श्रमिकों को राहत देनी चाहिए थी पर सरकार के शीर्ष स्तर से मिले निर्देशों के चलते इस मामले को सुर्खियां बना दिया गया है.
                                एक राजनैतिक दल होने के कारण यदि कांग्रेस सरकार की इस कमज़ोर स्थिति को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश में लगी दिख रही है तो उसे ऐसा करने का अधिकार भी है पर मज़बूत बहुमत वाली योगी सरकार ने कांग्रेस को लाभ मिलने की संभावनाओं को देखते हुए इसको अनावश्यक रूप से मीडिया में कवरेज देने के लिए खोल दिया। डिजिटल इंडिया के इस कथित युग में अगर इस आपदा के समय भी योगी सरकार एक आवश्यक पत्र पर दो दिनों तक निर्णय नहीं कर पाती है तो इसे क्या कहा जाये ? कांग्रेस केवल सरकार को ऐसे प्रस्ताव ही दे सकती है जिस पर श्रमिकों के हितों को देखते हुए निर्णय सरकार को ही लेना है. जिन बसों के कागज़ ठीक हैं उनको अनुमति देकर सरकार अपने काम को आसान कर सकती थी और साथ ही जिन बसों के नंबर आदि गलत और संदिग्ध होते उस पर जवाब माँगा जा सकता था पर सरकार ने खुद ही ऐसा काम शुरू कर दिया जिसकी सफाई देने में अब मुश्किल हो रही है.
                               लॉक डाउन को को देखते हुए केंद्र की तरफ से पहले ही सभी वाहनों की फिटनेस ३० जून तक बढ़ा दिया गया है हाँ बीमे पर किसी भी तरह की छूट नहीं दी जा रही है तो यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री द्वारा बसों की फिटनेस पर सवाल उठाना कितना तर्क संगत है ? यूपी सरकार के पास लगभग दस हज़ार बसों का बेड़ा है और ऐसे निर्देश जिलाधिकारियों को भी दिए जा चुके थे कि लोकसभा चुनावों के समय की दरों पर भुगतान कर निजी क्षेत्र की बसों को भी इस कार्य में लगाया जा सकता है। संकट की इस घडी में यदि कोई राजनैतिक दल किसी भी स्तर पर मदद करने के लिए सामने आ रहा है तो किसी भी दल की सरकार को अविलम्ब उसे स्वीकार कर लेना चाहिए जिससे लोगों की समस्याओं को कुछ कम किया जा सके. एक राष्ट्र की खोखली बातें करने वाला दल क्या दूसरे राज्यों से अपने गृह जनपद आने वाले लोगों की घर वापसी में भी इतना संवेदनहीन हो सकता है ? एक योगी के राज्य के मुखिया होने के बाद भी आमलोगों को इस तरह से मजबूर होना पड़ रहा है तो यह राज्य की विडंबना ही है. गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है "संत हृदय नवनीत समाना" पर यहाँ वैसा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है जिससे आम मजदूरों की समस्याओं को कम करने की कोशिशें पूरी नहीं हो पा रही हैं.    
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