मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 23 मई 2020

भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था

                                                                        कोरोना के कारण पूरे विश्व में जिस तरह का माहौल बना हुआ है उससे निपटने के लिए सभी देश अपनी अपनी रणनीति बनाने में लगे हुए हैं. मार्च महीने में जिस तरह से देश में सम्पूर्ण लॉक डाउन किया गया वह उस समय उपलब्ध विकल्पों में सबसे अच्छा था और भारत सरकार ने भी उस पर अमल करने का प्रयास किया चूंकि उस समय उस बात पर चर्चा करना उचित नहीं था तो अब इस बात पर विचार किया जाना आवश्यक है कि हमारी नीतियों में आखिर कौन सी कमी रह गयी जिसको हम समय रहते आसानी से ठीक कर सकते थे. पीएम मोदी ने जिस तरह सिर्फ ४ घंटे की नोटिस पर लॉक डाउन की घोषणा की उससे बचा जा सकता था क्योंकि होली के बाद का माहौल था और सरकार घर गए मजदूरों को अपने घरों से अपने काम की जगहों पर जाने से रोकने का आह्वाहन कर सकती थी पर उस समय तक सरकार इसकी गंभीरता को समझ ही नहीं रही थी. साथ ही मजदूरों को अपने घरों तक पहुँचाने के लिए रेल और बसों को बंद नहीं करना चाहिए था जिसके कारण आज भी देश के एक हिस्से में काम करने वाले श्रमिक अपने घरों को लौटने के लिए संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं.
                              अब सरकार को पिछली गलतियों को सुधारते हुए सिर्फ बड़े उद्योगों के बारे में ही न सोचते हुए ग्रामीण भारत को मज़बूत करना होगा क्योंकि आज भी भारत का बड़ा हिस्सा या तो गांवों में रहता है या शहरों में काम न होने के चलते अब वापस गांवों की तरफ जा चुका है. ग्रामीण भारत में आज भी बहुत सारी समस्याएं हैं और सरकार मनरेगा को विस्तार देते हुए अधिकांश ग्रामीणों को इस तरह से काम दे सकती है. कृषि लागत को कम करने के लिए सरकार एक निश्चित संख्या में छोटे और मंझोले किसानों के लिए मनरेगा के द्वार खोल सकती है जिससे मजदूरों को आगामी फसलों के समय काम मिल सके और किसानों को भी कुछ राहत मिल सके. इसके लिए अभी से एक नियम बनाकर लाभार्थी किसानों का चयन शुरू किया जाना चाहिए या फिर भूलेखों के आधार पर उनको या मनरेगा के मजदूरों को धन स्थानांतरित करने के बारे में सोचना चाहिए। इस तरह से जब ग्रामीण भारत के पास उसके गांवों में ही काम उपलब्ध होगा तो उसकी क्रय शक्ति भी बढ़ाई जा सकेगी जो अंत में देश की आर्थिक प्रगति का चक्का फिर से घुमाने में बहुत सहायक हो सकती है.
                                बरसात शुरू होते ही कई जगहों पर मनरेगा के तहत काम करवाने असुविधा होने लगती है तो इन्हीं मजदूरों के लिए एक नीति बनाकर किसानों और मजदूरों की एक साथ मदद की जा सकती है. किसान के सामने इस समय अपनी लागत को एक सीमा में रखने की चुनौती है तो मजदूरों के सामने काम की. यदि सरकार इस तरह से कोई प्रयास करे तो देश के दो बड़े क्षेत्रों की एक साथ मदद की जा सकती है और गांवों की आर्थिक स्थिति को और बिगड़ने से संभाला भी जा सकता है. फिलहाल बरसात शुरू होने से पहले गांवों में तालाबों और मार्गों को मजबूत किये जाने के काम में तेज़ी भी लाई जा सकती है जिससे सरकार को आमलोगों तक राशन पहुँचाने के लिए अपनी पूरी मशीनरी का उपयोग करने से बचाया जा सके और साथ ही इन मजदूरों के काम करने के दिनों के लिए काम के बदले अनाज योजना को भी शुरू किया जा सकता है जिससे एक साथ कई क्षेत्रों की मदद की जा सकती है. अब समय है कि देश को समग्र रूप से सोचना ही होगा तभी इस वैश्विक संकट के साथ वैश्विक मंदी से निपटा जा सकेगा।    

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