मार्च से शुरू हुए लॉक डाउन के साथ ही देश में एक अलग तरह की उठापटक दिखाई दे रही है आज जब पूरे देश को मिलकर इस महामारी के सामने खड़े होने की आवश्यकता है तो देश के राजनैतिक दल और उनके शीर्ष नेता एक दुसरे पर आरोप लगाने में व्यस्त दिखाई दे रहे हैं. ऐसा नहीं है कि केंद्र ने इस बारे में नीतियां नहीं बनायी और राज्यों ने उन पर अमल नहीं किया पर केंद्र और राज्यों में सत्ता तथा विपक्ष से जनता ऐसे कठिन समय में जिस गंभीरता की आशा कर रही थी उसमें देश के सभी राजनैतिक दल और नेता पूरी तरह से फेल दिखायी दे रहे हैं. देश की जनता अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा इन नेताओं के साथ अधिकारियों पर खर्च करती है उसके बाद भी कठिन समय में सबसे अधिक जनता को ही सहना पड़ता है.
पहले जोन निर्धारण को लेकर अव्यवहारिक तरीके से केंद्र का दखल रहा जिससे कई ऐसे जिले भी केवल एक मरीज होने के बाद भी ऐसे माना गया जैसे पूरे ज़िले में ही कोरोना फ़ैल गया हो इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह हुआ कि हमारे मेडिकल, पुलिस और अन्य आवश्यक सेवाओं से जुड़े विभागों पर अनावश्यक रूप से दबाव बना जबकि उनको केवल कुछ स्थानों पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर अपने स्टाफ को लम्बे समय तक काम करने के लिए तैयार करने की आवश्यकता थी. आज इस क्षेत्र के सभी लोग कोरोना की लड़ाई में थके से लगते हैं जबकि देश में संक्रमण बढ़ने के साथ अब अधिक सतर्कता की आवश्यकता है. केंद्र राज्य में वार्तालाप शून्य होने के कारण आज देश के आर्थिक प्रगति में सबसे बड़ा योगदान देने वाला मजदूर सड़कों पर है और अभी भी उनको मिलने वाली सहायता उनकी संख्या के हिसाब से बहुत कम ही है.
लॉक डाउन जिस तरह से राज्यों को विश्वास में लिए बिना किया गया आज उसका खामियाज़ा पूरा देश भुगत रहा है. यदि मार्च में संक्रमण के स्तर के कम रहते ही मजदूरों और अन्य कामों से अपने घरों से बाहर निकले लोगों को वापस जाने के लिए कुछ समय दिया जाता तो आज राज्यों क्या जनपदों और तहसीलों तक संक्रमण रोकने की जो लड़ाई लड़ी जा रही है उससे लॉक डाउन में ही निपट लिया गया होता और संक्रमण को अच्छी तरह से रोकने में मजबूती से रोका भी जा सकता था. आज रेलवे की जो हालत है वह भी ख़राब समन्वय का ही नतीजा है और आज से शुरू होने वाली हवाई यात्रा को भी जिस तरह से एक नियम में नहीं बांधा जा सका है उससे इन यात्रियों के लिए समस्याएं और बढ़ने ही वाली हैं. आज के युग में भी समन्वय की इतनी कमी आखिर क्यों है क्या राज्य अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं या केंद्र सरकार खुद ही सब कुछ करने में विश्वास रखती है ? राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों के साथ सीधी बैठक कर क्या पीएम मोदी राज्यों की सत्ता को किनारे करने की कोशिशें नहीं कर रहे हैं ?अब समय है कि केंद्र को अपने स्तर से विश्वास बहाली के लिए काम शुरू करना चाहिए जिससे आपस में लड़ने के स्थान पर कोरोना से प्रभावी लड़ाई लड़ी जा सके.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
पहले जोन निर्धारण को लेकर अव्यवहारिक तरीके से केंद्र का दखल रहा जिससे कई ऐसे जिले भी केवल एक मरीज होने के बाद भी ऐसे माना गया जैसे पूरे ज़िले में ही कोरोना फ़ैल गया हो इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह हुआ कि हमारे मेडिकल, पुलिस और अन्य आवश्यक सेवाओं से जुड़े विभागों पर अनावश्यक रूप से दबाव बना जबकि उनको केवल कुछ स्थानों पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर अपने स्टाफ को लम्बे समय तक काम करने के लिए तैयार करने की आवश्यकता थी. आज इस क्षेत्र के सभी लोग कोरोना की लड़ाई में थके से लगते हैं जबकि देश में संक्रमण बढ़ने के साथ अब अधिक सतर्कता की आवश्यकता है. केंद्र राज्य में वार्तालाप शून्य होने के कारण आज देश के आर्थिक प्रगति में सबसे बड़ा योगदान देने वाला मजदूर सड़कों पर है और अभी भी उनको मिलने वाली सहायता उनकी संख्या के हिसाब से बहुत कम ही है.
लॉक डाउन जिस तरह से राज्यों को विश्वास में लिए बिना किया गया आज उसका खामियाज़ा पूरा देश भुगत रहा है. यदि मार्च में संक्रमण के स्तर के कम रहते ही मजदूरों और अन्य कामों से अपने घरों से बाहर निकले लोगों को वापस जाने के लिए कुछ समय दिया जाता तो आज राज्यों क्या जनपदों और तहसीलों तक संक्रमण रोकने की जो लड़ाई लड़ी जा रही है उससे लॉक डाउन में ही निपट लिया गया होता और संक्रमण को अच्छी तरह से रोकने में मजबूती से रोका भी जा सकता था. आज रेलवे की जो हालत है वह भी ख़राब समन्वय का ही नतीजा है और आज से शुरू होने वाली हवाई यात्रा को भी जिस तरह से एक नियम में नहीं बांधा जा सका है उससे इन यात्रियों के लिए समस्याएं और बढ़ने ही वाली हैं. आज के युग में भी समन्वय की इतनी कमी आखिर क्यों है क्या राज्य अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं या केंद्र सरकार खुद ही सब कुछ करने में विश्वास रखती है ? राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों के साथ सीधी बैठक कर क्या पीएम मोदी राज्यों की सत्ता को किनारे करने की कोशिशें नहीं कर रहे हैं ?अब समय है कि केंद्र को अपने स्तर से विश्वास बहाली के लिए काम शुरू करना चाहिए जिससे आपस में लड़ने के स्थान पर कोरोना से प्रभावी लड़ाई लड़ी जा सके.
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