कांग्रेस महासचिव राहुल गाँधी आज कल अपनी शैली के कारण चर्चा में लगातार बने हुए है. पिछले दिनों उन्होंने जिस तरह से चुप चाप उत्तर प्रदेश का दौरा किया वह उत्तर प्रदेश सरकार को अच्छा नहीं लगा. अब यहाँ पर दो बातें बिलकुल साफ़ हैं कि यदि राहुल गाँधी बिना ताम झाम के प्रदेश का दौरा करें तो माया सरकार को कोई आपत्ति नहीं पर वे किसी दलित के घर रुक जाये तो यह बात सरकार को हज़म नहीं होती. यहाँ तो कुछ ऐसा ही है कि " तुम सवर्णों को न चाहो, तो कोई बात नहीं, किसी दलित को चाहोगे, तो मुश्किल होगी" आज के समय में निश्चित ही सुरक्षा का मामला बनता है पर सरकारें जिस तरह से नेताओं को छिपा कर रखना चाहती हैं उसका भी कोई औचित्य नहीं है.सुरक्षा से जुडी बहुत सारी बातें अपने आप में ही ऐसी हैं कि जिन पर सावधानी पूर्वक विचार किये जाने की ज़रुरत है. उत्तर प्रदेश सरकार को राहुल का दलित के घर जाना, खाना और सोना पसंद नहीं है इसलिए ही वह अब केंद्र सरकार से शिकायत करने जा रही है. अगर राहुल लखनऊ आयें और एक ५ सितारा होटल में रह कर चलें जाये तो भी सरकार को इतनी ही दिक्कत होगी ? शायद नहीं क्योंकि सरकार को केवल दलितों से दूर रहने वाले नेता ही समझ में आते हैं.सरकार को उनकी सुरक्षा कि उतनी चिंता नहीं है जितनी कि उनके दलित प्रेम की... अरे अगर राहुल के कद का नेता दलितों के घर जाना चाहता है या जा रहा है तो इसे बहुजन समाज के लिए शुभ माना जाना चाहिए कि चलो अब नेताओं ने भी उनकी सुध लेनी शुरू कर दी है. पर बसपा को लगता है कि इस स्तर पर राहुल उनके लिए दलित वोट कटवा साबित हो सकते हैं. बस यहीं से घटिया आरोपों का दौर शुरू हो जाता है. उत्तर प्रदेश पुलिस के पास अब एक कर्म योद्धा जैसा पुलिस महानिदेशक है जो बिना हल्ला मचाये काम को करने में विश्वास करता है तो फिर किस बात की परेशानी है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
मेरा विरोध राहुल गांधी से इस बात को लेकर है कि वो किसी गांव के गरीब घर पर रुकते समय सिर्फ किसी दलित के घर ही क्यों रुकते हैं? क्या कोई ब्राह्मण या क्षत्रिय गरीब नहीं होता? तो क्यों न ये समझा जाये कि वो गरीब के यहां न रुक कर राजनीति करने के लिये दलित के यहां रुक रहे हैं। क्या उन्हें सिर्फ दलितों के ही वोट मिलते हैं, कोई सबर्ण वोच नहीं देता या फिर सबर्णों की राजनीति में कोई अहमियत नहीं है। गरीबों में भी भेदभाव है।
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