मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

पाक के न्यायमूर्ति ...

जब किसी देश में कानून व्यवस्था का कबाड़ा हो जाता है तभी ऐसी घटनाएँ देखने सुनने में आती हैं जैसी कल पाक से सुनाई दी। २६/११ के केस से जुड़े जज बाकर अली राणा ने अपने को इस काम के लिए असमर्थ बताया है और व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए लाहौर उच्च न्यायालय से अपने को इस केस से अलग करने की प्रार्थना की है। अब सवाल यह है की आतंक के खिलाफ अमेरिका का सबसे बड़ा सहयोगी इतना मजबूर हो गया है कि वह अपने कानून के रखवालों और पालन कराने वालों की हिफाज़त भी नहीं कर सकता है ? यह सही है कि राणा ने कहा है कि उन पर समाज और कुछ लोगों का दबाव बन रहा है कि वे इस केस से ख़ुद को अलग कर लें। पाक सरकार चाहे जितने ढिंढोरे पीट ले पर वास्तव में अब लगता है कि उसकी सत्ता भी केवल इस्लामाबाद तक ही सीमित रह गई है। आखिरी मुग़ल शासक शाह आलम के बारे में कहा जाता था शहंशाह आलम दिल्ली से पालम। आज के समय में करजई की सरकार काबुल में, गिलानी की इस्लामाबाद में और इराक की केवल बगदाद तक सिमट कर रह गई है। क्यों नहीं कोई समझना चाहता कि आख़िर ये आतंकी किस जेहाद की बात करते हैं ? आज भी पाक में उन्हें किस दम पर जन समर्थन मिल रहा है ? ज़रूर सरकारें जनता तक पहुँचने में असफल साबित हो रही हैं जिसका फायदा आतंकी संगठन उठाते जा रहे हैं। जब तक पूरी तरह से जनता के साथ सरकारें नहीं खड़ी हो पाएंगीं तब तक बाहर से जा कर काम करने वाली कोई भी ताकत किसी भी देश में सुधार नहीं ला सकती हैं। आज भी समय है कि सरकारें जन समस्याओं पर ध्यान देना शुरू करें। असंतोष को हवा देना बहुत आसान होता है इसलिए इस पर सहानुभूति पूर्वक विचार करना चाहिए जिससे अगली आने वाली पीढियों को एक शांत पाक मिले जो तरक्की करना चाहता हो जहाँ पर विद्वेष की बातें कम हों और जो अपने पड़ोसी भारत के साथ चल सके न कि हर बात में उससे अपनी तुलना करने वाला हो तभी इस क्षेत्र में शान्ति आ पायेगी।

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