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मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

सरकारी ज़मीन और पूजा स्थल

सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह से कल सख्ती से राज्य सरकारों से इस बात की जानकारी चाही है कि अब सरकारी ज़मीन पर कोई भी अवैध धार्मिक स्थल नहीं बन सकता है। धर्मिक स्थलों के विवादों के चलते न्यायालय ने राज्यों से यह हलफनामा देने को कहा था कि वे बताएं कि उनके यहाँ सरकारी ज़मीन पर अवैध तरीके से कोई भी धर्म स्थल अब नहीं बनाया जाएगा। इस बात की ज़िम्मेदारी भी राज्यों पर डाली गई कि वे इसका पालन भी सुनिश्चित करेंगें। पर राज्यों कि तरफ़ से अभी तक कोई उचित उत्तर नहीं दिया जा रहा है। इस बात से खिन्न होकर ही न्यायालय ने इतनी सख्ती से बात की है। यह सही है कि सरकारी ज़मीन पर पूजा स्थल बनाये जाने का कोई औचित्य ही नहीं है। क्योंकि यह बाद में कई तरह के विवादों को जन्म देने लगता है। यदि कोई बड़ी कालोनी आदि बनाई जा रही हो तो उसमें नियमानुसार धार्मिक स्थलों के निर्माण के बारे में भी समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए। हमारे देश में अवैध तरह से भूमि पर कब्ज़ा कर धार्मिक स्थलों के निर्माण की पुरानी आदत रही है। फिर भी इस तरह से विवाद वाली भूमि पर कैसे पूजा पाठ किया जाना चाहिए ? लेकिन धीरे धीरे लोग इन विवादों को भूल जाते है तथा उन्हें केवल धर्म स्थल ही याद रह जाते है। ऐसा नहीं है कि विवाद जानकर खड़े किए जाते है पर कई बार अपने हितों पर चोट दिखाई देने पर बवजह कई बार दो समुदायों के लोग एक दूसरे के सामने आ जाते है। अच्छा ही है कि न्यायालय इस बात पर बहुत सख्त है इससे आने वाले समय में बहुत सारी समस्याएं सामने ही नहीं आयेंगीं। यह हम सभी को भी समझना चाहिए कि इस तरह से अवैध तरीके से कोई भी धर्म स्थल नहीं बनाया जाए। देश में पहले से ही भूख, बेरोज़गारी आदि पता नहीं कितनी समस्याएं हैं और हम इस तरह की और समस्याएं बर्दाश्त नहीं कर सकते है। देश में एक कानून की बहुत सख्ती से ज़रूरत है जो कि कार्यपालिका/ विधायिका को न्यायपालिका के आदेशों के पालन के लिए मजबूर कर सके क्योंकि न्यायपालिका की अवहेलना आज के समय में सरकारों द्वारा बहुत बड़े पैमाने पर की जा रही है। जब न्यायपालिका की बात माननी ही नहीं है तो ये सरकारें इस व्यवस्था को ख़त्म कर थोड़े दिनों तक अपनी मनमानी ही करके देख लें ?

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