कोपेनहेगेन सम्मलेन से पहले तापमान वृद्धि के जो आंकड़े सामने आए हैं वे पहले वाले अनुमानों से कहीं अधिक है। पहले यह दर ३/३.५ % रहने का अनुमान लगाया जा रहा था पर अब जब वास्तविकता सामने आई है तो ये सब अंदाज़ से बहुत अधिक है। अब जब सम्मलेन शुरू होने ही जा रहा है तो सभी की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि दुनिया भर के बारे में सोचें। केवल अपने हितों के बारे में सोचने से बात नहीं बनने वाली है। आज हर देश अपने उत्सर्जन की तरफ़ देखना ही नहीं चाहता उसे तो केवल दूसरों के उत्सर्जन स्तर की चिंता ही अधिक है। यह सही है कि जब सभी के बारे में सोचा जाएगा तभी कुछ सही दिशा में किया जा सकेगा पर क्या विकसित देश इस तरह से कुछ सही दिशा में करना भी चाहते हैं ? यही प्रश्न इस सम्मलेन की दिशा तय करने में बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहा है। ब्रिटेन में किए गए एक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि जब पृथ्वी की दीर्घकालिक समस्याओं पर चर्चा की जाए तो उन वनस्पतियों पहाड़ों और द्रवों पर जमी बर्फ के बारे में भी सोचना चाहिए क्योंकि दीर्घ अवधि में ये अपने व्यवहार में परिवर्तन कर लेते है जिससे बहुत सारे अनुमान सही नहीं उतरते हैं। इसलिए दीर्घकालिक अनुमानों में हमेशा ही इस बात पर भी विचार किया जन चाहिए। कार्बन डाई आक्साइड प्राकृतिक रूप से सूर्य की ऊष्मा को अवशोषित कर लेती है पर जब कभी यह प्रक्रिया रुक जाती है या धीमी हो जाती है तो पृथ्वी का तापमान तेज़ी से बढ़ने लगता है। आशा है कि इस बार सम्मलेन में जलवायु परिवर्तन पर केवल बातें ही नहीं होंगीं परन्तु कुछ ठोस प्रगति भी दिखाई देगी।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
ये सचमुच ही बहुत महत्वपूर्ण और चिंताजनक बात है, इस पर संजीदगी से कुछ सोचा किया जाएगा मुझे तो विश्वास ही नहीं होता अब
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