सर्वोच्च न्यायालय ने १९७९ के एक सामूहिक हत्याकांड के मामले में सुनवाई करते हुए सभी आरोपियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाते हुए जाति व्यवस्था पर कड़ी चोट की है। न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति ऐ के पटनायक की खंडपीठ ने जाति व्यवस्था को देश के लिए बहुत बड़ा खतरा बताते हुए इसको ख़त्म करने की बात कही है। इस मामले में उत्तर प्रदेश के एक स्थान पर हरिजनों को सबक सिखाने के लिए ठाकुरों ने गाँव में डकैती डाली फिर सात निर्दोष लोगों की हत्या कर उनके शव गंगा नदी में फ़ेंक दिए थे। इनमे से पाँच लोगों के शव भी नहीं मिल सके थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और दलित नेता जगजीवन राम के कड़े हस्तक्षेप के बाद इस मामले की रिपोर्ट दर्ज हो पाई थी। जब देश में अगड़े पिछड़े का यह भेद इस हद तक है कि केवल सबक सिखाने के लिए ही निर्दोषों की हत्या की जाए तो यह वास्तव में समाज के लिए शोचनीय है। न्यायालय तो केवल कह सकता है पर वह किसी को इस बात के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। देश में पता नहीं कितने विवाद इस जाति प्रथा के कारण ही पनपने लेगे हैं और पता नहीं कितने निर्दोषों की हत्या भी इसी कारण से होने लगी है। समाज में समरसता की बात होनी चाहिए जो पिछड़े हैं उनके उत्थान की बात होनी चाहिए। हालाँकि अब पहले से काफी बदलाव आ गया है फिर भी अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। जब सभी लोगों को समाज में ही रहना है तो कुछ ऐसा किया जाना चाहिए कि सभी लोग समान रूप से सभी अवसरों का लाभ पाते हुए आगे बढ़ सकें। कभी भी किसी पिछड़े की उन्नति से किसी अगड़े को कोई नुकसान नहीं होता है हाँ उनका व्यक्तिगत अहंकार चोट खा सकता है पर जब दुनिया में इतने बदलाव हो चुके हैं और निरंतर बदलाव आते जा रहे हैं तो इस तरह की सोच लेकर जीने वालों का क्या किया जाए ? फिर भी समानता के लिए हम सभी को प्रयास तो करने ही चाहिए।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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