दिल्ली सरकार ने अधिसूचना जारी कर प्लास्टिक के झोलों/थैलों पर पाबन्दी क्या लगा दी एक अच्छा काम भी अदालत में पहुँच गया। देश में क्या सारी दुनिया में कुछ पर्यावरण प्रेमी बिल्कुल शुरू से ही प्लास्टिक के उत्पादों पर रोक लगाने की बात करते रहे हैं। यह सही है कि इसका उपयोग बहुत आसान है पर जिस तरह से हम लोग इसका उपयोग करने के बाद इसे फेंकते हैं वह निश्चित ही चिंता का विषय है। अब कहने और समझाने से कोई बात बन नहीं पाती है इसलिए ही दिल्ली सरकार ने सीधे ही इस बारे में अधिसूचना जारी कर दी । बस यहीं से मौलिक अधिकार/ प्राकृतिक न्याय और भी न जाने कौन कौन से शब्द निकल कर सामने आ गए ? किसी ने कभी उन छुट्टा जानवरों के मौलिक अधिकारों की बात नहीं की जो हमारी फेंकी गई इन थैलियों को खाकर अपना दम तोड़ देते हैं ? अब क्या किया जाए मनुष्यों के तो अधिकार न्यायलय सब कुछ हैं पर वे निर्दोष जानवर क्या करें ? भले ही राष्ट्रमंडल खेलों के दबाव में ही सही दिल्ली सरकार ने जब ऐसा कड़ा कदम उठा ही लिया है तो सभी को कुछ परेशानियों को झेलते हुए इस का समर्थन करना चाहिए। क्या कोई ऐसा दिन नहीं था जब ये प्लास्टिक के बैग नहीं होते थे ? हाँ मुझे ही बहुत अच्छे से याद है कि भारत में व्यापक रूप से इनका चलन संभवतः १९८५/८६ के बाद ही शुरू हुआ है। हम क्यों घर से निकलते समय अपने साथ झोला नहीं ले जा सकते ? आख़िर हमारे घर के बड़े आज भी इन झोलों का उपयोग करते हैं ? बात यहाँ पर प्लास्टिक कंपनियों के हितों की है और उद्योगपति हमेशा अपने फायदे की बात ही सोच सकता है। अच्छा हो कि यह मामला जल्दी ही सर्वोच्च न्यायालय में निपट जाए जिससे समय रहते इस प्लास्टिक से छुटकारा मिल सके। लोग आज कर चाय तक इन प्लास्टिक की थैलियों में लाने ले जाने लगे हैं ? इनको बनाने में पता नहीं किन रसायनों का प्रयोग किया जाता है ? कौन से रंग डाले जाते हैं ? इस बात की जानकारी किसी को भी नहीं होती है ? फिर भी हम नागरिक अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए ख़ुद ही इनके प्रयोग को कम कर दें तभी कुछ हो सकेगा।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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