तेलंगाना के बारे में केन्द्र सरकार के बयान के बाद से देश में हर क्षेत्र में अलग राज्य बनने की मांग ने अचानक ही ज़ोर पकड़ लिया है। जैसा की सभी को पता है कि यह मामला विकास आदि से कम तथा राजनीति से ज़्यादा जुडा है बस इस कारण ही उत्तर प्रदेश में मायावती भी अपनी गोटियाँ लगाने में लगी हुई हैं। किसी नेता की अक्षमता की सज़ा पूरे प्रदेश को कैसे दी जा सकती है ? आज के नेता केवल राजधानियों में बैठकर ही शासन करना चाहते हैं जीत जाने के बाद उनको इस बात से कोई मतलब नहीं रह जाता है कि जनता किस हाल में जी रही है। मैं यहाँ पर केवल अपने गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश की ही बात करना चाहता हूँ। २००७ में जनता ने प्रदेश में व्याप्त अराजकता से निपटने के लिए जिस तरह से माया को पूरा समर्थन किया था उसका उसे कोई लाभ नहीं मिला। जब उत्तर प्रदेश में हर दूसरा विधायक बसपा का है तो फिर वे किस तरह से विकास कि अनदेखी कर सकते हैं ? काम करने के लिए जिले में एक ही विधायक कर सकता है और निकम्मे लोगों के लिए तो कुछ भी सम्भव नहीं है। माया के लाखों प्रयासों के बाद भी उत्तर प्रदेश से बाहर उनके हाथी की चल सुस्त ही रही है जिसके चलते अन्य राज्यों में सरकार बनने के उनके सपने अभी तो दूर की कौड़ी ही लगते हैं। उत्तर प्रदेश का ४ हिस्सों में बंटवारा ? किसी से पूछा भी है ? संसाधन कहाँ से आयेंगें ? जब उत्तराखंड बना तभी गलती की गई थी यदि सही विकास करना था तो उत्तर प्रदेश को दो भागों में बाँटना चाहिए था जिससे प्रशासनिक आसानी भी होती और पहाड़ी राज्य को मैदान से संसाधन भी मिलते रहते। अब हरित प्रदेश, बुंदेलखंड, पूर्वांचल बनाकर क्या हासिल किया जा सकता है ? यह किसी को भी नहीं पता है ? कल को इनको लगने लगेगा कि देश बहुत बड़ा है इस पर शासन करना मुश्किल हो रहा है तो क्या इसके भी टुकडे किए जायेंगें ? अगर नेताओं में क्षमता नहीं है तो निवेदन है कि आप लोग इन बंटवारों में फंसने के बजाय कुर्सी ही छोड़ दें जिससे देश इस तरह की समस्याओं से बचा रह सके। वरना कहीं ऐसा न हो कि अगले चुनाव में जनता आप लोगों को कहीं का न छोड़े.
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मायावती की भूमिका इस प्रदेश में पगलिया की तरह है तो पागलो की हरकत कर रही है। मायावती की पार्टी भी बहुत बड़ी हो गई है एक विभाजन इसका भी होना चाहिये।
जवाब देंहटाएंअगर नेताओं में क्षमता नहीं है तो निवेदन है कि आप लोग इन बंटवारों में फंसने के बजाय कुर्सी ही छोड़ दें जिससे देश इस तरह की समस्याओं से बचा रह सके। वरना कहीं ऐसा न हो कि अगले चुनाव में जनता आप लोगों को कहीं का न छोड़े.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही!
और अधिक प्रदेशों की मांग ...यानि और अधिक नेता ...यानि देश पर और अधिक आर्थिक बोझ ...और अधिक टुकड़े ...किस दिशा में बढ़ रहे हैं हम ...बहुत दुर्भाग्यपूर्ण ....!!
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