झारखण्ड की जनता ने फिर से एक बार त्रिशंकु विधान सभा बनाकर जोड़ तोड़ को हवा दे दी है. वैसे तो देखा जाये तो शिबू सोरेन पर भी भ्रष्टाचार के कम मामले नहीं चल रहे हैं फिर भी जनता में उनकी पैठ अभी तक इतनी बनी हुई है कि वे विधान सभा में एक हैसियत हमेशा ही रखते रहे हैं. वैसे तो लोकतंत्र में जनता का फैसला ही सबसे बड़ा होता है फिर भी झारखण्ड के मामले में जनता बुरी तरह से अपने अपने क्षेत्र के नेताओं में बंटी हुई है. कोई भी फैसला लेना अब वहां पर बहुत कठिन हो चूका है. ऐसी स्थिति में संविधान सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन को मौका देने की बात कहता है पर वहां पर जिस तरह का माहौल है कोई भी सरकार आसानी से नहीं चल पायेगी. अब समय आ गया है कि संविधान में ऐसी भी व्यवस्था कर दी जाये कि त्रिशंकु विधान सभा होने पर सबसे बड़े दल का मुख्यमंत्री हो और अन्य दलों को उनकी संख्या के हिसाब से मंत्रिमंडल में स्थान दे दिया जाये और सभी जनता पर एक और चुनाव का बोझ डालने के स्थान पर फिर से एक साथ होकर कुछ समय तक सेवा कर सकें. एक वर्ष बाद इस पर जनमत भी कराया जा सकता है कि जनता को अगर यह व्यवस्था पसंद आ रही हो तो उसे अगले दो वर्षों तक फिर से चलने दिया जाये, वरना विधान सभा को भंग कर नए जनादेश के लिए जाना ही सबसे अच्छा विकल्प रहेगा. देश पर और चुनावों का बोझ न आये इस बात को समझते हुए अब ऐसे प्रयास भी किये जाने चाहिए.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
और क्या उम्मीद थी भाई???
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