भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी का यह कहना कि आडवानी पार्टी से ऊपर हैं फिर से पार्टी के अन्दर कलह को प्रारंभ कर सकता है. लोकसभा चुनावों की हार के बाद से पार्टी का मनोबल बहुत टूट चुका था जिससे आहत होकर ही संघ ने अपने विश्वास पात्र नितिन को यह पद सौंपने की तयारी की थी. यह सही है कि भाजपा में आज भी अटल आडवानी के कद का कोई नेता नहीं हो पाया है पर जिन्ना विवाद के बाद से आडवानी पार्टी में ही नहीं वरन अन्य जगहों पर भी आलोचना के पात्र बन गए थे. इन सभी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए ही नितिन गडकरी जैसे कम प्रसिद्द नेता का कद इतना बड़ा करने का प्रयास किया गया. आज वास्तव में इस तरह के चिंतन आदि के स्थान पर भाजपा को ठीक से सोचने की तरफ जाना चाहिए. कोई भी काम ऐसा नहीं होता जो किया न जा सके, क्या कोई यह कभी सोच सकता था कि बुरी तरह से मानसिक रूप से टूटी हुई कांग्रेस इतनी जल्दी आगे आ जाएगी ? लोग उस पार्टी के नेताओं का उपहास ही करते रहे और उन्होंने अपने कामों से जनता के मन में ऐसी जगह बना ली कि बहुत दिनों बाद केंद्र में किसी सरकार ने वापसी की. आज भाजपा को भी इस तरह की राजनीति को पीछे छोड़ कर आगे की तरफ देखना चाहिए कुछ धरातल पर करने का प्रयास भी करना चाहिए. उसकी कई सरकारें बहुत अच्छा काम कर रही हैं उनको अपना मानक बनाकर राष्ट्रीय स्तर पर फिर से मजबूती से अपने पैरों को ज़माने का प्रयास करना चाहिए. बहुत हो चुका चिंतन और बहुत हो चुका मनन. जनता की नब्ज़ टटोलने के लिए अब इसके बड़े नेताओं को दिल्ली और अन्य राज्यों की राजधानियों को छोड़कर जनता के बीच जाना ही होगा और तब तक अच्छा ही रहेगा कि किसी भी नेता का महिमा मंडन न किया जाये क्योंकि जो उनसे आहत हैं वे अपना गुस्सा निकलने से बाज़ नहीं आयेंगें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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