मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 4 जनवरी 2010

सर्दी में अलाव ?

पूरे उत्तर भारत में इस समय मौसम ने अपना रूप दिखा रखा है, ऐसा नहीं है कि यह सब पहली बार हो रहा है परन्तु विभिन्न स्तरों पर इनसे निपटने की योजनायें बनाने वाले लोगों के कारण ही हमेशा ही लोगों को परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं. जैसा कि सभी को पता है कि ऐसे में कोहरे के कारण सबसे पहले परिवहन व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ जाती हैं क्योंकि इससे निपटने का कोई पुख्ता इंतजाम अभी तक विकसित नहीं किया जा सका है. देश में सबसे ज्यादा दुर्गति रेल की होती है क्योंकि इस मौसम में उसे बहुत घाटा उठाना पड़ता है साथ ही सड़क परिवहन भी खतरनाक हो जाता है क्योंकि दुर्घटनाएं बहुत बढ़ जाती हैं. विमान सेवाओं कि बदहाली किसी से छिपी नहीं रह पाती है. यह तो केवल परिवहन के साधनों का रूप हुआ पर सबसे अधिक मार उन गरीबों पर पड़ती हैं जिनके पास रहने को घर भी नहीं होते हैं. ऐसे में सरकारी अनुदान से जलने वाले अलाव ही उनको रात भर गर्मी देते रहते हैं पर इस मामले में भी जिस तरह से स्थानीय प्रशासन को काम करना चाहिए वो कभी नहीं कर पता है. सभी को पता होता है कि इस तरह का मौसम तो आना ही है पर इससे निपटने के लिए कोई भी ठोस तैयारी दिखाई नहीं देती है. कोहरा और सर्दी बढ़ने पर अलाव जलने की औपचरिकता जिस तरह से निभाई जाती है उसे देख कर शर्म आने लगती है. गीली लकड़ियों को तेल डाल सुलगा कर कर्मचारी अपने घरों की तरफ प्रस्थान कर जाते हैं और बाद में किस तरह से अलाव जल रहा है या नहीं, कोई देखने वाला नहीं होता है. कई बार तो किसी प्रभावशाली व्यक्ति के दरवाजे पर ही अलाव जला दिए जाते हैं जहाँ पर उनसे लाभ उठाने वाला कोई नहीं होता है. इसके अतिरिक्त एक काम और भी किया जाता है जिसकी भी आवश्यकता उस समय नहीं होती जब वह किया जाता है. बहुत सारे लोग और संस्थाएं इस मौसम में कम्बल और गर्म कपड़ों का वितरण भी करती हैं पर उनके इस वितरण का समय अधिकतर जनवरी माह के अंतिम सप्ताह में होने से सर्दियां लगभग समाप्त होने लगती है और उन गरीबों के पास कपड़े रखने की व्यवस्था भी नहीं होती जिससे वे अगली सर्दी तक इन कपड़ों को संभाल कर भी नहीं रख पाते हैं. अच्छा हो कि इस सारे काम को जिस मन से किया जाता है किया जाये पर उसके समय को ठीक कर लिया जाये जिससे कपड़े पाने वाला व्यक्ति भी उनका सही ढंग से उपयोग कर सके.     


मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. सही चिन्तन!!








    ’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

    -त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

    नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

    कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

    -सादर,
    समीर लाल ’समीर’

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