मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

विधान परिषद की आवश्यकता ?

उत्तर प्रदेश में कल संपन्न हुए विधान परिषद चुनावों में जिस तरह से हमेशा की तरह सत्ता पक्ष ने नंगा नाच किया वह वास्तव में लोक तंत्र के इस स्वरुप के लिए बहुत खतरनाक है. आज तक विधान परिषद की उपयोगिता साबित नहीं की जा सकी है फिर भी पुरानी परंपरा के तहत इसे ढोया ही जा रहा है. आज तक किसी समय विधान परिषद ने किसी जनहित के मुद्दे पर बहुत अच्छा रवैया अपनाया हो जो सरकार के समर्थन या विरोध के स्थान पर जन हित से जुड़ा हुआ रहा हो ? क्या देश की वो विधान सभाएं कुछ कमज़ोर हैं जिनके पास विधान परिषद नाम का उच्च सदन नहीं है ? वैसे देखा जाये तो जब इस सदन के पास अधिकारों के नाम पर कुछ खास तो है नहीं फिर इस सदन को हारे हुए नेताओं को विधायक बनाने के खेल से ज्यादा क्या समझा जा सकता है ? इस छोटे स्तर के चुनाव ने जितना व्यापक रूप ले लिया और सत्ता पक्ष जिस तरह से इसको अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देखता है वह किसी से छिपा नहीं है. अच्छा हो की इस तरह का लोक तांत्रिक नाटक खेलने के बजाय सरकार बनाने वाले दल को या सभी दलों के २० प्रतिशत नामित सदस्यों को बिना निर्वाचन कराये ही सीधे इस सदन में नामित कर दिया जाये जिससे चुनाव आचार संहिता का फर्जी डर, विकास रुकने के बहाने, वोटर को धमकाने के रास्ते और बिना बात की दुश्मनी एक झटके में ही ख़त्म हो जाये. किसी भी चहेते को सरकार में मंत्री बनाना मुख्यमंत्री का संवैधानिक अधिकार हमेशा से रहा है और उसे ६ महीने में निर्वाचित होकर किसी सदन में आना एक संवैधानिक बाध्यता है. जब सरे आम नेता देश के संविधान और न्यायपालिका की धज्जियाँ उड़ाते घूमते हैं तो फिर इनकी दुहाई देने का कोई मतलब नहीं बनता है. ज्यादा अच्छा रहेगा कि पूरे देश में इस तथाकथित उच्च सदन को समाप्त कर जनता पर से इतने माननीयों का बोझ उतार दिया जाये जिससे जो पैसा इनको सुख सुविधा देने में खर्च हो जाता है उसका सही उपयोग किया जा सके. पर अपने नेताओं के तलवे चाटने वाले चाटुकार नेता और अन्य सुविधा भोगी लोग किस स्तर तक इन सब बातों पर ध्यान देंगें यह तय नहीं है. क्योंकि मुफ्त में मिली किसी भी चीज़ का लोभ संवरण इतना आसान नहीं होता है कि कोई ऐसे ही त्यागी बन जाये. हाँ यदि नेताओं में दम है तो आगे आयें और लोकतंत्र में सेवा के नाम पर शुरू किये गए कामों को विलासिता और ठाठ बाट के रूप में दिखाने से दूर कर सकें. फिल हाल इस मामले पर देश में जनमत संग्रह होना ही चाहिए की जनता इस तरह से नेताओं को और सुविधा देना भी चाहती है या नहीं ?        

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