मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 9 जनवरी 2010

सरकारी संवेदना ?

देश में नेताओं के किस्से तो बहुत समय से ही भावुक और संवेदन शील लोगों के कलेजे को चीरते रहे हैं पर कल तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले में जो कुछ घटा उससे अपने मनुष्य होने पर भी घृणा आती है. अपराधियों के द्वारा घायल किये गए ४४ वर्षीय पुलिस अधिकारी वेट्रिवेल जो कि वीरप्पन को मारने वाले पुलिस दल के दल के सदस्य भी थे सड़क के किनारे मदद के लिए पड़े थे उसी समय वहां से स्वास्थ्य मंत्री और युवा मामलों के मंत्री का काफिला गुज़रा. कुछ लोगों का कहना है कि मंत्री जी ने वहां पर तमाशा देखा और अपने काफिले के साथ आगे बढ़ गए परन्तु किसी तरह की मदद करना उचित नहीं समझा. यह वीर पुलिस अधिकारी जिसने वीरप्पन को मार गिराने में तो साहस दिखा दिया था पर वह सरकारी संरक्षण में घूमते हुए वीरप्पन से हार गया.
सवाल यहाँ पर किसी पुलिस अधिकारी के घायल होने का नहीं वरन मंत्री बने लोगो के भावों का है ? जैसा कि सभी जानते हैं कि आजकल की आतंकी घटनाओं के चलते हर एक मंत्री के साथ पूरा लश्कर चलता है जिसमें चिकित्सा की भी सुविधाएँ होती हैं. सबसे ज्यादा शर्म की बात तो यह है कि एक प्रदेश का स्वस्थ्य मंत्री जा रहा हो और उसकी लापरवाही से किसी घायल कि मृत्यु हो जाये ? वे चाहते तो आराम से साथ चल रहे अधिकारियों को निर्देश दे सकते थे परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिसके चलते एक ऐसे व्यक्ति कि जान चली गयी जिसे बचाने का प्रयास तो किया ही जा सकता था. यह समझना परे है कि मंत्रीजी के साथ में स्वस्थ्य विभाग का अमला नहीं चल रहा होगा यदि उनमें से कोई भी आगे आ जाता तो एक जान बच सकती थी ? पर नेता को अपनी जान के आगे किसी की जान की चिंता रहती ही कब है ? इस घटना के बाद कानपुर के पनकी में हुई प्रयागराज एक्सप्रेस की दुर्घटना याद आ जाती है जिसमें उत्तर प्रदेश बहराइच के कांग्रेसी सांसद अपनी पत्नी के साथ सफ़र कर रहे थे. वे पहले कमांडो रह चुके हैं और उन्होंने उस का फायदा उठाते हुए बहुत सारे लोगों को फँसी हुई बोगियों से निकालने  में सहायता भी की. बस यहीं पर फर्क दिख गया एक सैनिक का जो अपने कर्त्तव्य कभी नहीं भूलता भले ही वो सेवा निवृत्त हो चुका हो पर ये नेता तो हमेशा कि तरह अपने से आगे कुछ सोच ही नहीं पाते भले ही वे उत्तर के हो या दक्षिण के ?  

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. संवेदनायें ना बिकें, राजनीति के द्वार.
    घट्नायें साक्षी बनी, नेता सब बेकार.
    नेता सब बेकार,राक्षसी तन्त्र हटाओ.
    मानव को जानो, वैसा ही तन्त्र बनाओ.
    यह साधक क्यों संविधान का गौरव गाये?
    राजनीति के द्वार, ना रही संवेदनायें.

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