मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 16 जनवरी 2010

कसाब पर नज़र..

जैसा कि अमेरिकी जांच में सामने आता जा रहा है कि मुंबई हमलों के दौरान लश्कर ने पूरी कोशिश की थी कि किसी तरह बंधकों को छोड़ने के लिए कसाब की सौदेबाज़ी की जाये उससे इन आतंकियों के घातक मंसूबों का पता चलता है. भारत की छवि एक नर्म देश की रही है जो संकट के समय शीघ्रता से कोई भी फैसला नहीं ले पाता है, आतंकियों ने इस बात का फायदा उठाने की भरपूर कोशिश की परन्तु सारा कुछ इस तरह से जनाक्रोश में बदल चुका था कि यदि सरकार किसी तरह के समझौते के बारे में सोचना भी चाहती तो नहीं सोच पाती. जब लश्कर के आतंकियों को यह पता चला कि ताज होटल में कुछ मंत्री भी फंसे हैं तो उनको एक बार अपने मंसूबे कामयाब होते ज़रूर दिखे थे पर बिना तैयारी के भी जिस तरह से पुलिस बल और एन एस जी ने वहां पर कड़ा मोर्चा लिया उससे आकाओं के हाथ पैर फूल गए. आज भी इस बात पर अधिक ध्यान देने की ज़रुरत है  कि इन आतंकियों पर जल्दी ही कोई फैसले लिए जाएँ और इनको मुक़दमे के बहाने जेल में न रखा जाये. देश ने पता नहीं कितनी बार इन विचाराधीन कैदियों के कारण भी नीचा देखा है. कंधार कांड आज भी दिल पर बोझ की तरह ही तो है. इन सभी की तो सुरक्षा की जा सकती है पर देश भर में अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के बारे में क्या कहा जाये जो सुरक्षा में तो ज़रूर रहते हैं पर कभी भी उन पर खतरा आ सकता है. फिल हाल आतंकी मामलों में विचाराधीन कैदियों को जल्द ही सज़ा दे देनी चाहिए जिससे बहुत सारी आने वाली समस्याएं भी न उत्पन्न हो सकें. देश में इस बात पर भी पूरी सहमति होनी चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में किसी भी आतंकी को नहीं छोड़ा जायेगा क्योंकि जब तक ऐसे कड़े सन्देश नहीं दिए जायेंगें तब तक आतंकी कभी भी हमारा इस्तेमाल कर सकते हैं.  


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