मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

बसपा या सत्ता की कामयाबी ?

आज बसपा जब अपनी प्रमुख मायावती का जन्मदिन मनाने जा रही है तो उसके लिए इस जन्मदिन के खास मायने इसलिए भी हैं क्योंकि प्रदेश के इतिहास में पहली बार किसी दल ने विधान परिषद् चुनावों में इतनी बड़ी कामयाबी दर्ज की है. इन चुनावों में विपक्षी दल सरकारी गुंडागर्दी का रोना रो रहे है जबकि आंकड़े बताते हैं कि यह चुनाव पूरी तरह से उस पार्टी का होता है जो सत्ता में होती है. पहले भाजपा फिर सपा इस स्वाद को चख चुके हैं जब उन्होंने अपनी सरकार में गुंडागर्दी की थी. इस चुनाव में चूंकि आम जनता मत नहीं देती है इसलिए यह चुनाव सरकारी तंत्र और दंडात्मक दवाब तथा पैसे के लालच में ही हो जाते हैं इस बार वोटरों के लिए शराब /शबाब और कबाब की भी व्यापक व्यवस्था की गयी थी. जिस तरह से इन चुनावों का सञ्चालन किया जाता है उसमें कुछ भी असंभव नहीं है. चुनाव के समय सरकारी डंडे से इसे जीत लेना आसान होता है पर जब जनता की अदालत में मुक़दमा पेश किया जाता है उसमें ये सरकारें हमेशा से पिटती रही हैं. पहले भाजपा फिर सपा का सूपड़ा साफ़ होते हुए सभी देख ही चुके हैं. इन चुनावों में जिस तरह से प्रशासन पर दबाव डाला गया वह भी किसी से छिपा नहीं है, इस तरह के दबाव को प्रशासन के लोग तभी तक सहते हैं जब तक उन्हें सरकर का डर होता है पर जब आम चुनाव होने जा रहे होते हैं तो यही अधिकारी खुलकर सत्ता के खिलाफ होकर दूसरे दलों की मदद करके जनता का पीछा इन भ्रष्ट नेताओं से छुड़ाने में काफी मदद कर देते है. आत्म प्रवंचना में जीने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है इसके लिए बहुत आवश्यक है कि जनता की समस्याओं पर अविलम्ब ध्यान दिया जाये हो सकता है कि प्रदेश में कुछ लोगों को लाभ मिला हो पर जिस स्तर पर उन्हें लाभ मिलना चाहिए था नहीं मिल पाया है. सरकार के काम में कमी तो नहीं है पर माया जिस तरह से सारा कुछ अपने हाथ में ही रखना चाहती हैं उससे बहुत सारे मंत्रालयों में मंत्री डर के मारे काम ही नहीं करना चाहते कि कहीं वे नाराज़ न हो जाएँ ? जब सरकार के तंत्र के लोग इस तरह से काम कर रहे हों तो उसके प्रदर्शन पर असर तो आना ही है. फिर भी इन चुनावों के बहाने से जो भी किया जा रहा हो पर देश के लोकतंत्र का गला घोंटने में भ्रष्ट नेताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी. सांसदों और विधायकों तक ने मतदान केंद्र के अन्दर बैठकर दबाव से जबरन अपना आदमी भेजकर वोट डलवाने का काम किया पर पता नहीं क्यों चुनाव आयोग के मुंह पर ताला है या वह सबूतों के अभाव में कुछ भी कर पाने में सक्षम नहीं है ?    


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3 टिप्‍पणियां:

  1. इस बार तो जन्म दिन पर माहोत्सव होगा...

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  2. मायावतियों का उद्भव और विकास समाज की बीमारी का संकेत हैं. समाज की बीमारी के पीछे व्यक्ति की बेहोशी.... और उससे जुङी मेरी बेहोशी.........मैं केन्द्र में हूँ, माया को दोष कैसे दूँ?

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