मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

मंहगाई की राजनीति..

आज जिस तरह से देश में आवश्यक चीज़ों के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं उसका असर बहुत जल्द लोगों को और परेशान करने वाला है. मंहगी होती वस्तुओं के बारे में जिस तरह से केंद्र और राज्य सरकारें अपनी ज़िम्मेदारियों को एक दूसरे की तरफ उछाल रहे हैं उससे तो बाज़ार में जमाखोरी करने वालों को और मौका मिलने वाला है. यह वह समय है जब सरकारी तंत्र को केंद्र राज्य का झगड़ा छोड़कर अपना काम ठीक से करना चाहिए और जमाखोरों के ख़िलाफ़ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए तो वे एक दूसरे पर कीचड फेंकने में लगे हुए हैं. यह बिलकुल सही है कि  उत्पादन में कमी आई है पर बिलकुल बेकार और नाकारा साबित हुए कृषि मंत्रालयों का यह देश क्या करे ? आज उत्पादन बढ़ाने पर कोई ज़ोर नहीं हैं सभी यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि इस मामले में मेरी कमीज़ उसकी कमीज़ से ज्यादा सफ़ेद है. मंत्रालयों के पास आंकड़े हैं पर उनका उपयोग नहीं किया जा रहा है. एक उदाहरण उत्तर प्रदेश का लिया जा सकता है जहाँ पिछले कुछ वर्षों से गन्ना किसानों को उनका सही मूल्य नहीं दिया गया और आज की तारीख में जब किसानों ने गन्ना बोया ही नहीं और जो हुआ उसे वे चीनी मिलों के बजाय खुले बाज़ार में बेच रहे हैं तो शकर की कड़वाहट की याद सरकारों को भी आ गयी. पहले जब कोई बताने वाला नहीं था और किसान केवल जैविक खादों का प्रयोग करता था तो उत्पादन भले ही कुछ कम रहता था पर उसमें स्वाद होता था और मनुष्यों में बीमारियाँ भी कम होती थीं. हर किसान के पास यह ज्ञान था कि उसे अपनी भूमि में क्या और कितनी मात्र में बोना है ? उसके पास भले ही मोबाइल नहीं थे जिन पर मंडी का रेट मिलता हो पर उसे यह ज़रूर पता था कि उसका परिवार साल भर में कितने अनाज पर जिंदा रह सकता है ? उसके खाने की डाल उसके खेत में ही हो जाती थी उसे चावल और गेंहूँ की कीमतों का ध्यान भी नहीं रखना पड़ता था. अब समय आ गया है कि देश के लिए जो तरीका पुराना तरीका उचित है उस पर ही खेती को प्रोत्साहन दिया जाये. आज पश्चिमी देश जैविक उत्पादों के पीछे भाग रहे हैं और हमारे यहाँ का किसान यूरिया और खाद के लिए सरकारी निकम्मेपन के कारण लाठी खाकर अस्पताल में भर्ती हो रहा है. यह है अन्धानुकरण करने का नतीजा .... अगर हम आज भी नहीं चेते तो वह समय दूर नहीं जब हम ऐसी स्थिति में होंगें कि सोचकर भी अगले २०/३० सालों तक स्थिति को सुधर नहीं पायेंगें. देश में विकास दर ११ से ऊपर है पर कृषि विकास कि दर कितने पर चल रही है क्या कोई बताने की हिम्मत भी रखता है ?   


मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. आपका लेखन आपके सरोकारों का दर्पण.... प्रणाम....
    sahiasha.wordpress.com पर पधारें.

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