कल कश्मीर घाटी बारामूला जिले के पट्टन कस्बे में सुरक्षा बलों ने जितनी बड़ी मात्रा में एक सेब के बाग से हथियारों का ज़खीरा पकड़ा है उससे यह तो पता चलता ही है कि पाक की सरकार आतंकियों के खिलाफ चाहे कुछ भी करने का दावा करती रहे पर वास्तव में वह कुछ भी नहीं कर रही है. सीमा पार से इस तरह से इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक बिना पाक सेना की मदद के नहीं आ सकते हैं अब बात बनाने के लिए वे चाहे जो भी कहते रहें पर इस तरह की घटनाएँ घाटी में चल रही सेना वापसी और सुरक्षा बलों में कटौती पर भारत सरकार को पुनर्विचार के लिए मजबूर कर रही हैं. पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से घाटी का माहौल सुधरा था उससे सबक लेते हुए सरकार ने सेना और अर्ध सैनिक बलों में कटौती का प्रयास किया है और वहां की सुरक्षा धीरे धीरे जम्मू-कश्मीर पुलिस को सौंपने पर विचार किया जा रहा था. वहां के मुख्य मंत्री भी इस बात का दावा हमेशा ही करते रहते हैं कि घाटी में माहौल सुधार रहा है जबकि इस तरह की छुट पुट आतंकी घटनाएँ लगातार होने से अब यह तय होता जा रहा है कि आतंकियों पर किसी बात का प्रभाव नहीं है.
केंद्र सरकार ने जिस तरह से सीमा पर सख्ती करके और घाटी में व्यापक अभियान चलाकर आतंक पर लगाम लगाने का प्रयास किया था अब उसका सही असर दिखाई देने लगा था जिससे उत्साहित होकर सरकार भी सेना को वापस बैरक में भेजने के बारे में सोचने लगी थी. हम सभी जानते हैं कि पाक अफगान में आतंकियों पर बहुत दबाव है और इस स्थिति में वे सरकारी ढिलाई का फायदा उठाते हुए भारत के जंगलों में अपने को मज़बूत करने के लिए बराबर प्रयास रत हैं पर सुरक्षा बलों के चौकन्ने होने से वे कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं हैं. फिलहाल भारत सरकार पर इस बात का दबाव तो बन ही गया है कि फिलहाल घाटी में किसी भी तरह कि सैनिक कटौती की बात अब नहीं की जाये क्योंकि अब ऐसे किसी भी प्रयास से वहां चल रही सुरक्षा सम्बन्धी सख्ती को झटका ही लगेगा जो किसी भी हालत में वहां के लोगों के लिए अच्छा नहीं होगा. बेहतर हो कि स्थानीय निवासियों को इन आतंकियों को खदेड़ना चाहिए और उनको शरण नहीं देनी चाहिए. क्योंकि इन आतंकियों से सबसे ज्यादा उन पर ही असर आने वाला है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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