मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 28 जनवरी 2010

सही काम पर तरीका ग़लत

हमारे सीतापुर की सांसद कैसर जहाँ और लहरपुर के विधायक जासमीर अंसारी द्वारा २६ जनवरी को नगर में शाल का वितरण कराया गया. निश्चित तौर पर इतनी सर्दी में जिन्हें इस शालों की आवश्यकता है यदि उन्हें मिल जाएँ तो उनका बहुत बड़ा काम हो जाता है. इस बहुत पुनीत काम को करने के लिए जो तरीका चुना गया वह अपने आप में इस पूरे समारोह का मज़ाक बनाने के लिए काफ़ी था. आज तक देश में शायद ही कहीं भी इस तरह से किसी ने भी मतदाता सूची के आधार पर महिलाओं को शाल नहीं बांटे होंगें. सभी जानते हैं कि आज के समय में भी ऐसे लोग हैं जिनको दो वक़्त की रोटी समय से नहीं मिल पाती है तो उनके पास कपड़े कैसे होंगें ? पर क्या लहरपुर नगर में सभी ऐसे लोग थे जिनको शाल की आवश्यकता थी ? अब किस तरह से और किस मद से इन शालों का वितरण कराया गया यह अपने आप में सोचने का विषय है. अच्छा होता कि इस तरह से एक तरफ से रेवड़ी की तरह से शाल बांटने के स्थान पर पात्रों का सही तरीके से चयन किया जाता तो इस काम की गरिमा में चार चाँद लग जाते. यदि नेता-द्वय को यह कठिन लग रहा था तो वे गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को अपना आधार मान सकते थे. लेकिन शायद हर एक नेता को गरीबों की मदद से अधिक अपने वोटों की चिंता होती है जिसमें उलझकर इन लोगों ने भी एक तरफ से शाल वितरण कराया.
यदि यह कार्य उन्होंने अपने व्यक्तिगत पैसों से भी किया तो भी इसे उचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि भरे पेट वाले को खाना पूछने का कोई मतलब नहीं वरन जिसको खाना नसीब नहीं होता उसे खाना खिलाने से अधिक संतुष्टि मिलती है. यदि यह आयोजन किसी भी तरह से सरकारी पैसे से जुड़ा है तो खुले तौर पर यह जनता के पैसे का दुरूपयोग है क्योंकि यदि यही सामग्री गाँवों तक सही पात्र चुनकर बांटी जाती तो इससे सरकारी मंशा भी पूरी हो जाती और लोगों को वास्तव में सहायता भी मिल जाती. इस कार्यक्रम को जिस तरह से प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के जन्मदिन से भी जोड़ा गया वह अपने आप में अजीब सा लगता है क्योंकि जब सरकार की मुखिया ने खुद ही जनता के लिए अपने जन्मदिन पर इतने सारे कार्यक्रम शुरू किये हों तो इस तरह के आयोजन और खुले तौर पर अपात्रों को कुछ भी देना कहाँ तक उचित है ? पता नहीं इस तरह के बेतुके कार्यक्रमों की कितनी सही रूपरेखा स्वयं मायावती तक पहुँच पाती है ? क्योंकि उन्हें पता है कि सही तरह से मदद कैसे की जाती है और उनके नाम पर इस तरह के आयोजन पता नहीं कैसे उनकी नज़रों से बच जाते हैं ?  
 

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1 टिप्पणी:

  1. जब सरकार की मुखिया ने खुद ही जनता के लिए अपने जन्मदिन पर इतने सारे कार्यक्रम शुरू किये हों तो इस तरह के आयोजन और खुले तौर पर अपात्रों को कुछ भी देना कहाँ तक उचित है ?

    -सहमत!

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