मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

मुल्ला बिरादर

   तालिबान के दूसरे सबसे बड़े नेता मुल्ला बिरादर को पकड़ कर पश्चिमी फौजों ने उनके मनोबल को गिराने में सफलता ज़रूर पाई है पर जिस तरह से तालिबान में हर स्तर पर काम करने के लिए लोग मौजूद हैं उससे उन पर कोई बहुत बड़ा प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. तालिबान  के पास अभी मुल्ला उमर मौजूद है और उनके रहते संगठन पर नियंत्रण करना बहुत आसान है. इधर पिछले कुछ समय से जिस तरह से अच्छे और बुरे तालिबान की बातें की जा रही हैं उससे तो लगता है कि बिरादर के पकड़े जाने से शायद बात-चीत का माहौल भी बन सके. कहा जाता है कि बिरादर पश्चिमी देशों से बात करने के हक में भी रहा है और जब कोई इस स्तर का नेता पकड़ा जाता है तो बात चीत का माहौल भी बन सकता है.
अभी तक जिस तरह से तालिबान अपना काम करता रहा है उसी तो लगता है कि जल्दी ही किसी और को बिरादर कि जगह पर कर दिया जायेगा और साथ ही संगठन अपना मनोबल ऊंचा रखने के लिए कुछ बड़े हमले भी कर सकता है. जिसके लिए अब सुरक्षा बलों को तैयार रहना होगा. जिस तरह से तालिबान पश्चिमी देशों को इस्लाम के खिलाफ बताकर नए लोगों को जिहाद के नाम पर अपने संगठन में भर्ती कर लेते हैं वह आज भी चिंता का विषय है. ऐसा नहीं है कि उन्हें हर जगह सफलता मिल रही है फिर भी जिस तरह से वे अपना काम करते जा रहे हैं उससे इस्लामी देशों में खासकर समस्या बढती ही जा रही है. उनकी सोच के कारण आज दुनिया में इस्लामी देश ही सबसे ज्यादा असुरक्षित हो चले हैं. इन सबका असर वहां के रोज़गार आदि पर भी पड़ता है.  हताशा में लोग कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं जिस समय बच्चों को पढ़ाई कर अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए वे बंदूकें उठा कर लड़ाई के बारे में सोचने लगते हैं. जिससे उनकी प्रतिभा का सही उपयोग नहीं हो पाता है.
फिलहाल किसी भी तरह से अब यह देखना चाहिए कि इन युद्ध ग्रस्त क्षेत्रों में किस तरह से सब सुधारा जा सकता है ? वरना केवल तालिबान नेताओं कि गिरफ़्तारी से माहौल सुधरने वाला नहीं है. सभी देशों को इस समस्या से निपटने के लिए इस्लामी देशों के साथ मिलकर काम करना होगा और इस्लाम को मानने वालों को ही आगे आकर सही इस्लाम की तस्वीर पेश करनी होगी.   


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