मकबूल फ़िदा हुसैन ने क़तर की नागरिकता क्या ले ली कुछ लोगों के पेट में दर्द होने लगा. देश में बहुत सारे हुसैन जैसे पैदा हुए और पता नहीं कहाँ चले गए. उनको केवल एक चित्रकार मानना ग़लत है क्योंकि उनके लिए सही शब्द विकृत मानसिकता वाला चित्रकार अधिक उपयुक्त है. इन साहब के जाने से भारत की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. भारत में ज्ञान और सभ्यता भी गंगा जमुना की तरह बहते रहते हैं जहाँ पर किसी की धार्मिक भावनाओं को किसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ओट में छिपकर चोट पहुँचाने वालों के लिए वास्तव में कोई स्थान नहीं है. इस देश में देवी देवताओं का सम्मान किया जाता है पर हुसैन जैसों को यह नहीं पता कि अच्छा कलाकार वही होता है जिसमें भावनाएं होती हैं. फिर हुसैन ने किस तरह की भावनाएं दिखायीं ? जिस देश में रह रहे थे उसकी ही आत्मा पर चोट करने से नहीं चूके ?
जब हुसैन ने अपनी अभिव्यक्ति में हिन्दू देवी देवताओं को नग्न अवस्था में दिखाया तो उन्होंने हिन्दू वादियों को खुद ही उन पर हमला करने का मौका भी तो दिया ? उनकी यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ने जाने कितनों के मन को आहत किया ? कभी उन्होंने यह सोचने का प्रयास किया ? जिस तरह से इस मुद्दे को धर्मों से जोड़ा जा रहा है वे धर्म को जानते ही नहीं हैं. इस्लाम में साफ तौर पर किसी धर्म को बुरा कहने पर मनाही है. कहा तो यह गया है कि "तुम तुम्हारे दीन पर हम हमारे दीन पर" . क्या हुसैन का साथ देने वालों को यह पता है ? कुछ वाघा बार्डर पर मोमबत्तियां सुलगाने वालों को ऐसा लग रहा है जैसा भारत का कितना बड़ा नुकसान हो गया है ? मुझे साफ पता है कि अगर भारत में ही इस्लाम के अनुयायियों से पूछा जाये कि क्या हुसैन अपनी हरकतों के बाद भारत में रहने का हक रखते हैं तो ज़्यादातर उनके विरोध में हो जायेंगें.
यहाँ पर सवाल किसी के विरोध का नहीं है बल्कि उसकी मानसिकता का है क्या हुसैन को विषय नहीं मिल रहे थे जो उन्होंने पूजित देवताओं का नग्न चित्रण किया ? कला अपनी जगह है पर किसी की भावनाओं को भड़काना कैसी अभिव्यक्ति है ? मुझे तो शक है कि हुसैन ने कभी इस्लाम की मान्यताओं का पालन दिल से किया भी होगा ? दुनिया में आज इस्लाम पर वैसे ही आतंक का ठप्पा लगाने वालों कि कमी नहीं है फिर हुसैन जैसे लोग शांत समाज में भी हलचल पैदा कर केवल इस्लाम को ही नुकसान पहुंचाते हैं क्योंकि उनकी इन हरकतों से हिन्दू वादियों को उनका और इस्लाम का विरोध करने का एक और अवसर बैठे बिठाये मिल जाता है. अब इस मामले में गलती किसकी है हुसैन की या भारत की ? एक सलाह और कि हुसैन अब क़तर में खुले दिमाग से काम करना....... वहां भारत जैसा समाज नहीं है कहीं अपनी विकृत मानसिकता के चलते आपका कोई सही इलाज ना कर दे ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कितने सज्जन चले गये
जवाब देंहटाएंकुछ दुर्जन भी जाने दो
थोड़ी हवा आने दो ।
सुना है ...अरब देशों में कानून बहुत सख्त हैं ....वहां नहीं होगी अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता खतरे में ...??
जवाब देंहटाएंइस तरह भी चर्चा तो होता ही है ।
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