मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

धार्मिक स्थल भी राम भरोसे....

प्रतापगढ़ में संत कृपालु आश्रम में मची भगदड़ ने एक बार फिर से हमारा ध्यान इधर की ओर खींचा है. आज के समय में जब बहुत सारे बड़े बड़े आयोजन जल्दी जल्दी किये जाने लगे हैं तो भी देश में इनकी सुरक्षा के बारे में कभी भी कोई विचार नहीं किया जाता है. इस तरह की दुर्घटनाएं मानव जनित हैं और कुछ समय देकर इनकी तीव्रता को कम तो किया ही जा सकता है अगर हम पूरी तरह से रोक नहीं सकते हैं. किसी भी स्थान पर जहाँ बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हों वहां पर सुरक्षा के मानकों की अनदेखी बिलकुल भी नहीं की जानी चाहिए. आखिर देश के नागरिक ही तो वहां पर होते हैं ? किसी राजनैतिक रैली के लिए तो प्रशासन पूरी ताकत झोंक देता है पर जब किसी धार्मिक या सामाजिक कार्यक्रम की बात आती है तो वे पूरी तरह से पल्ला झाड़ कर खड़े दिखाई देते हैं.
        अब समय आ गया है कि किसी भी कार्यक्रम के आयोजन से पहले ही आयोजकों को किसी भी अनदेखी समस्या से निपटने के लिए पूरी तरह से बता दिया जाये. वहां पर कुछ लोगों को आपात काल से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. इन प्रशिक्षित लोगों को अलग तरह की वर्दी भी दी जाये और आने वालों को साफ़ शब्दों में समझा दिया जाये कि किसी भी स्थिति में हर व्यक्ति को इन लोगों की बातें माननी ही होंगीं. आम तौर पर हम देखते है कि बड़े धार्मिक कार्यक्रमों के शुरू हो जाने पर ही आयोजक अपना काम पूरा मान लेते हैं और व्यवस्था को भीड़ के हवाले कर देते हैं. देश के हर जिले में आपदा प्रबंधन के लिए स्वयं सेवकों की भर्ती की जाये जो कि बिना किसी पैसे के केवल समाज की सेवा करने के इच्छुक हों. जिले के जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान पर पहले से ही बहुत बोझ रहता है इसलिए ये काम केवल स्वेच्छा से करने वाले संगठन आसानी से कर सकते हैं. जहाँ तक इन लोगों के खाने रहने की व्यवस्था का प्रश्न है तो आयोजक इसका प्रबंध अच्छी तरह से कर सकते हैं.
     हम लोगों कि एक बहुत बुरी आदत तो यह है कि हम बहुत जल्दी ही सब भूल जाते हैं किसी को उपहार कांड याद है ? कितने लोग चरखी दादरी के जलते हुए बच्चों को याद कर पाते हैं ? बहुत सारी ऐसी घटनाएँ दिल को झकझोर देती हैं पर हम केवल कुछ दिन बातें करके चुप हो जाते हैं क्योंकि हमारा कोई इनमे हताहत नहीं होता है . सभी को भीड़ का हिस्सा बनने के स्थान पर भीड़ का नियंत्रण करना सीखना होगा. किसी विपरीत परिस्थिति में अपने को बचाने की जुगत में व्यवस्था को बिगाड़ने के स्थान पर उसे बनाये रखना भी सीखना होगा क्योंकि बहुत बार केवल अपने बारे में ही सोचकर हम भी पूरी व्यवस्था को ध्वस्त कर देते हैं.      

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