चित्र दैनिक भास्कर से साभार
भोपाल में अपने आई आई एफ़ एम के दीक्षांत समारोह में अपना भाषण शुरू करने से पहले केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने जिस तरह से इन अवसरों अपर पहना जाने वाला अपना चोगा उतर दिया उस बात ने निश्चित तौर पर ही हमें सोचने को मजबूर कर दिया है कि क्या आज हमारे देश में इस तरह के किसी भी दिखावे की आवश्यकता है ? उन्होंने इस परंपरा को "मध्यकालीन बर्बर औपनिवेशिक अवशेष" करार दिया. यह हो सकता है कि उनकी व्यक्तिगत सोच हो पर जब उन्होंने ऐसा कहते हुए अपना चोगा उतरा तो वहां पर समारोह में आये सभी लोगों ने ज़ोरदार तालियों से उनकी इस बात का समर्थन किया. अब सवाल यह उठता है कि क्या आज हमें अपने ही देश में इस तरह की कोई दिखावे वाली बात करने की आवश्यकता है भी कि नहीं ? कहाँ जाता है कि जयराम रमेश समय की नब्ज़ पकड़ते हैं ऐसा करके उन्होंने एक तरह से देश में इसके होने या न होने पर बहस तो शुरू करा ही दी है क्योंकि अब आगे से जो इसको पहनेगा वह इस परंपरा के समर्थन में दिखाई देगा और जो नहीं पहनना चाहेगा वह इसके विरोध में हो जायेगा.
बात यहाँ पर इतनी छोटी है पर देश के सम्मान से जुड़ी बहुत सी बातों पर आज तक किसी का ध्यान ही नहीं गया है. अब समय है कि बड़े स्तर से ही सही पर इसकी शुरुआत की जानी चाहिए. देश ने बहुत दिनों तक गुलामी सही है बस इसी लिए शायद देश के लोग हर परंपरा को आत्मसात कर लेते हैं. यहाँ पर इस बात को भारतीय सहिष्णुता के साथ भी जोड़ा जाना चाहिए कि हम भारतीयों को किसी भी देश की परंपरा को अपनाने और उसे अनवरत चलाते रहने में भी कोई परेशानी नहीं होती है क्योंकि हम सदैव से ही मानते रहे हैं कि "वसुधैव कुटुम्बकम" हमारा मूल मंत्र है. दुनिया में यह एक मात्र देश है जिसने सभी से कुछ न कुछ सीखा है और आज भी सीखने और अपनाने की जो ललक यहाँ पर दिखाई देती है वह दुनिया के किसी भी हिस्से में दुर्लभ है. आज हमें दूसरों को अपनाने और सहिष्णुता के बीच की छोटी सी रेखा को पहचानना होगा क्योंकि कई बार हमारी इस उदारता का दूसरे बहुत फायदा उठा लेते हैं...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
nice
जवाब देंहटाएंजयराम रमेश ने फेंक तो दिया और पोप व पादरी का नाम लेकर टिप्पणी भी कर दी। लेकिन परिणाम क्या होंगे? क्या वे इसी प्रकार कॉमनवेल्थ गेम्स के औचित्य पर भी प्रश्न खड़ा कर सकते हैं। सुना है उद्घाटन में युवराज आ रहे हैं। भारत में ऐसे कई प्रश्न हैं जिन्हें सुलझाया जाना चाहिए। चाहे वो हमारा राष्ट्र-गान ही क्यों ना हो।
जवाब देंहटाएंआज हमें दूसरों को अपनाने और सहिष्णुता के बीच की छोटी सी रेखा को पहचानना होगा क्योंकि कई बार हमारी इस उदारता का दूसरे बहुत फायदा उठा लेते हैं..
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