अब जब छत्तीसगढ़ के दांतेवाडा में हुए माओवादियों के हमले की जांच की जा रही है उस समय यह सामने आ रहा है कि किस तरह की विषम परिस्थितियों में हमारे जवान वहां पर तैनात हैं. बहुत से ऐसे कैंप भी हैं जहाँ पर आने जाने का साधन ही केवल वायुमार्ग से उपलब्ध है किसी भी वारदात के समय इस जवानों को मदद पहुँचाने केलिए शायद कोई कार्य योजना नहीं है. देश के अन्दर ही माओवादियों ने बिना पुलिस की जानकारी के इतना कुछ बना लिया हो यह तो संभव नहीं लगता पर कहीं न कहीं पर नेताओं की संवेदन हीनता भी इसके लिए ज़िम्मेदार है क्योंकि यह सारा कुछ एक दिन में तो नहीं हुआ है ? किसी भी भाग में आदिवासियों पर किसने और किस तरह से इतने अत्याचार किये कि वे माओवादियों के साथ हो गए ? इसकी सीधी ज़िम्मेदारी नीति नियंताओं पर ही जाती है. अब भी समय है कि सख्ती केवल माओवादियों से की जाये और भोले भाले आदिवासियों को सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ दिलाने का प्रयास किया जाना चाहिए. केवल दिल्ली या राज्य की राजधानियों से धरातल की वास्तविक स्थिति का पता नहीं चलता है क्योंकि इन स्थानों पर क्या हो रहा है कितना पिछड़ापन है और उसके क्या कारण हैं जब तक इसकी पहचान नहीं की जाएगी किसी भी तरह के प्रयास काम नहीं आयेंगें.
जनता के बीच में रहकर विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई लड़ना बहुत कठिन होता है जिससे हमारे बल रोज़ ही जूझ रहे हैं. अब इस मामले को विकास सुरक्षा और जीने के अधिकार के रूप में देखना ही होगा क्योंकि बिना इसके कोई भी काम पूरा नहीं हो पायेगा. देश में बहुत बड़े भाग में सरकारी संवेदन हीनता के कारण हमारे जवान हमारे लोगों द्वारा ही मारे जा रहे हैं. नेता और इन बलों के अधिकारियों को अब यह तो देखना ही होगा कि जब जवानों के पास पूरी सुविधाएं होंगीं तो वे अच्छी तरह से अपने काम को कर पायेंगें. जब पानी लाने के लिए भी जान पर बाज़ी लगाने की स्थिति हो तब कोई किस तरह से अपने को सुरक्षित मान कर काम कर पायेगा ? नेता तो बहुत अच्छे सुरक्षा घेरे में चलकर सुरक्षित हो जाते हैं पर हमारे जवानों को कभी साधारण सी सुरक्षा भी नहीं मिल पाती है ? अब भी चेतने कसमे है वर्ना बहुत देर हो जाएगी...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इसकी सीधी ज़िम्मेदारी नीति नियंताओं पर ही जाती है
जवाब देंहटाएंbikul sahi hai