मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

विधान सभाओं की सीमा...

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के मामले में सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने  जो व्यवस्था दी वह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस मामले में विधान सभा ने अपने अधिकारों से परे जाकर कैप्टन को निष्कासित कर उनकी सीट को रिक्त घोषित कर दिया था. पूरे मामले पर रौशनी डालते हुए पीठ ने कहा कि कार्यपालक के तौर पर उनकी किसी भी गतिविधि से विधान सभा के विशेषाधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है. इस तरह की कोई भी कार्यवाही भविष्य के लिए एक नयी परंपरा बन जाती इसलिए पीठ ने उनका निष्कासन रद्द करते हुए पूरे मामले को समाप्त कर दिया है. पीठ ने यह भी कहा कि अच्छा होता कि इस मामले में आपराधिक और सार्वजानिक धन के दुरूपयोग के मामले ही दर्ज किये जाते और कानून के तहत उन पर ठोस कार्यवाही भी की जाती. विधान सभा की कार्यवाही का समर्थन इसलिए भी नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने यह अनुच्छेद १९४(३) के तहत किया जबकि ऐसा नहीं किया जा सकता है. उनके खिलाफ मामले १२ वीं  विधान सभा के हैं जबकि कार्यवाही १३ वीं विधान सभा ने की है.
देश में जिस तरह से राजनैतिक विद्वेषों के चलते अभी नेता एक दूसरे के विरुद्ध मामले दर्ज़ कराने में लगे रहते हैं उस मामले में यह नज़ीर बहुत काम आने वाली है. यहाँ पर पीठ ने यह भी स्पष्ट किया है कि कैप्टन के खिलाफ आपराधिक मामलों में यह निर्णय लागू नहीं होने वाला है क्योंकि जो भी अनिमितताएँ उन्होंने की हैं उसके लिए उन पर सख्त कार्यवाही होनी ही चाहिए और किसी भी मामले में उनके साथ कोई रियायत नहीं की जानी चाहिए. देश से भ्रष्टाचार का खात्मा बहुत आवश्यक है पर किसी भी स्तर पर इसकी ढाल बनाकर किसी अन्य नियम की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए. अच्छा हो कि इस तरह के मामलों से निपटने के लिए त्वरित अदालतों का गठन किया जाये और जिस तरह से विधायिका में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है उसको देखते हुए ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए प्रत्येक राज्य के उच्च न्यायालय में अलग से व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि सार्वजनिक जीवन जीने वाले लोगों से समाज प्रेरणा लेता है अगर इन नेताओं के खिलाफ कुछ नहीं होता तो जनता में इसका गलत सन्देश जाता है. सार्वजनिक जीवन में अब सफाई की बहुत आवश्यकता है.     

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