पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में जिस तरह से माओवादियों ने पटरी पर गड़बड़ी कर ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को दुर्घटनाग्रस्त कराया वह बहुत ही चिंताजनक है. इस तरह के हमले करके माओवादियों ने इस बात की पूरी झलक दे दी है कि वे जब चाहें जहाँ चाहें कुछ भी कर सकते हैं. यह सही है कि इस तरह के मामलों में जांच के बाद ही कुछ सामने आ पायेगा पर जिस तरह से रेल और गृह मंत्रालय की तरफ से अलग अलग सुर अलापे जा रहे हैं उनसे तो यही लगता है कि संकट की इस घड़ी में भी ये लोग कुछ भी बोलकर पता नहीं क्या सन्देश देना चाहते हैं. इस तरह के मामलों में क्या ज़रुरत है कि कुछ कहा ही जाये सभी लोगों को स्पष्ट निर्देश दिए जाने चाहिए कि जब तक प्रारंभिक जांच के परिणाम न मिल जाएँ सभी लोग अपने मुंह बंद रखें. अब इस तरह की घटनाओं से यह बात तो साबित हो ही गयी है कि माओवादी अपनी पूरी ताकत से यह जताना चाहते हैं कि उनकी ताकत अभी भी ख़त्म नहीं हुई है.
यदि माओवादी और नक्सली समस्या के बारे में शुरुवात से ही ध्यान दिया गया होता तो यह इतना विकराल रूप नहीं धारण कर पाती. फिलहाल तो इस मसले में सरकार को ही यह तय करना होगा कि आखिर अब किस रणनीति पर काम किया जाये ? बेहतर होगा कि सारे कामों को छोड़कर सभी दलों के नेताओं को बुलाकर अविलम्ब ही इस समस्या पर विचार किया जाये. इस बैठक में किसी भी तरह की राजनीति पर पहले से ही रोक लगा दी जानी चाहिए. सभी को अपनी बात रखने का अवसर मिलना चाहिए और साथ ही यह भी इस बैठक के बारे में केवल सरकार की तरफ से आधिकारिक बयान ही जारी किया जाये. जितने लोग बैठक से बाहर निकलें उतनी तरह की बातें करते हुए न दिखें.
सुरक्षा के मामले पर सरकार के पास करने के लिए कुछ खास नहीं होता है केवल रेलवे परिसर की सुरक्षा करने से काम नहीं चलने वाला है क्योंकि आखिरकार इन गाड़ियों को वहां से निकल कर इन नक्सल प्रभीवित क्षेत्रों से होकर ही जाना पड़ेगा. केवल अधिक सचेत रहने से ही काम चल सकता है. यह सही है कि इस तरह की दुर्घटनाओं में कोई कुछ नहीं कर सकता है पर अभी तक बातें चाहे कितनी भी कर ली गयी हों पर कोई ऐसा तंत्र नहीं बन पाया है जो इस तरह की दुर्घटना होने पर विपरीत दिशा से आने वाली गाड़ियों के सञ्चालन को रोक सके क्योंकि इस मामले में हताहतों की संख्या सिर्फ इसलिए बढ़ गयी कि विपरीत दिशा से आने वाली मालगाड़ी ने इसके पटरी से उतरे डिब्बों को टक्कर मार दी. अब भी समय है कि नक्सलियों से अपने स्तर से निपटा जाये साथ ही रेलवे को अपने तंत्र के सञ्चालन के लिए कुछ ऐसा करना ही होगा जिससे पटरी पर किसी भी रुकी हुई चीज़ के बारे में उस रूट पर चल रही सभी गाड़ियों को सूचित किया जा सके. इस मामले में शायद जी पी एस कुछ मदद कर सके ? रेलवे के पास बहुत बड़े संसाधन हैं और अगर सुरक्षा के लिए उसे किसी उपग्रह की सेवाओं की ज़रुरत हो तो सरकार को यह भी इसरो के माध्यम से उसे अविलम्ब उपलब्ध करना चाहिए. यदि कुछ ऐसा हो सके कि ट्रैक पर चलने वाले हर चालक को अपने आगे पीछे १० किमी तक की गतिविधियाँ पता चलती रहें तो वे अपने विवेक का इस्तेमाल कर इस तरह की दुर्घटनाओं की तीव्रता को कम करने में अपना सहयोग तो कर ही सकते हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
sahi hai ashutosh ji....sansadhano,sena,chauksi..in sabse pehle zaroori hai sarkar ki naksaliyo ki samasya khatam karne ki iksha shakti....!!!
जवाब देंहटाएंnaveen k