निकाय चुनावों में से तृणमूल कांग्रेस ने ज़बरदस्त प्रदर्शन करते हुए वाम दलों के ३४ साल पुराने किले में आखिर कार कब्ज़ा करने की तरफ एक कदम और बढ़ा ही दिया. जिस तरह से ममता दी को अप्रत्याशित सफलता मिली उससे यूपीए में उनका क़द तो बढ़ ही गया साथ ही अन्य दलों पर उनके साथ बंगाल में गठबंधन करने की इच्छा भी सामने आ गयी. ऐसा नहीं है कि ये चुनाव वाम दलों के लिए आख़िरी साबित होने जा रहे हैं ममता के इतने अच्छे प्रदर्शन के बाद भी अभी वहां आने वाले विधान सभा चुनावों में वाम दलों से टक्कर लेने के लिए उन्हें अभी भी कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों की ज़रुरत पड़ेगी. पिछले चुनावों के पहले ममता जनता की नब्ज़ पकड़ पाने में असफल रही जिसके कारण वाम दलों ने सरकार बनाने लायक बहुमत पिछले चुनावों में भी जुटा लिया था. इस बार ३६ निकायों में तो ममता को बहुमत मिल गया है पर अन्य १७ के लिए उन्हें अभी भी कांग्रेस की ज़रुरत है.
लगता है कि अब इस बार के चुनावों से उन्होंने यह सबक सीखा लिया है तभी उन्होंने इस बात के संकेत दे दिए कि आगामी चुनावों में कांग्रेस के साथ उनका गठबंधन जारी रहेगा और उसे मज़बूत भी किया जायेगा. यह सही है कि बंगाल में तृणमूल बहुत बड़ी ताक़त है फिर भी वहां पर कांग्रेस की अनदेखी आज की परिस्थितियों में नहीं की जा सकती है. लगातार चलने वाले शासन के जो भी दुर्गुण होते हैं वे ३४ साल में बंगाल में वाम दलों ने पा लिए हैं और यदि उनके खिलाफ ममता दी की अगुवाई में कोई ठोस गठबन्धन सामने आ जाये तो वे आसानी से उनको हराया जा सकता है. ममता के पास अब जीत के बाद भी सीमित विकल्प ही रहने वाले हैं और कांग्रेस ने उनकी क़ीमत जान ली है इसलिए ही ममता दी के स्वभाव को जानते हुए उनके बारे में बहुत कम ही कहा जाता है.
अब समय आ गया है कि बंगाल और देश हित में सही गठबंधन बनाकर ममता बंगाल को सुशासन की तरफ ले जाएँ यह भी सही है कि वाम दलों से परेशान जनता कुछ काम चाहती है और ऐसे में ममता से बंगाल की आशाएं और बढ़ जाती हैं. आशाएं बढ़ने पर जिम्मेदारियां भी बहुत बढ़ती हैं पर जिस तरह से ममता दी जनता से संवाद कायम रखती हैं उससे उनके लिए कुछ भी करना असंभव नहीं लगता है. फिलहाल बंगाल में ममता के अलावा वाम दलों के सामने कोई टिक नहीं पा रहा है इसलिए जनता उन्हें ही वाम दलों के विकल्प के रूप में देखती है. सच्चाई यह भी है कि वहां की जनता ममता से बहुत खुश तो नहीं है पर उनके अलावा वहां पर कोई अन्य विकल्प भी नहीं है.
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इस बार लगता है ममता दी वामदल के झण्डे उखाड़कर ही दम लेंगी। आपने सही लिखा है कि उन्हें कांग्रेस के सहारे की जरूरत है।
जवाब देंहटाएंअब समय आ गया है कि बंगाल और देश हित में सही गठबंधन बनाकर ममता बंगाल को सुशासन की तरफ ले जाएँ यह भी सही है
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