मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

पाक मुसलमानों का रखवाला ?

एक देश जिसकी नींव ही इस बात पर हुई थी की उसे इस्लाम के अनुयायियों के रहने के लिए एक आदर्श स्थान के रूप में विकसित किया जायेगा पर आज जब पाक के पूरे इतिहास और उसकी हरकतों पर ध्यान दिया जाता है तो उसे पास होने लायक अंक भी नहीं मिलने वाले हैं. भारत के विरोध में वो हर बात भूल जाता है यहाँ तक कि बात बात पर जिस इस्लाम की बात करने से और उसका खोखला दिखावा करने से भी पाक कभी नहीं चूकता है वह यह भी नहीं देख सकता कि मानवीय आधार को अगर छोड़ भी दिया जाये तो अफगानिस्तान के मुसलमानों के जीवन को नरक बनाने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी है. अफगानिस्तान में तालिबान को पनपाने से लगाकर अमेरिका के आने और आज भी आतंकियों और अमेरिका दोनों के हितैषी बनने के चक्कर में कितने निर्दोष नागरिकों को अपनी जान गवानी पड़ी है इसका कोई भी हिसाब नहीं दे सकता है.
         रविवार को अमेरिकी दबाव में पाक ने अफगानिस्तान के साथ व्यापारिक समझौते को मंजूरी दे दी है पर इससे अफगानिस्तान को कोई खास फायदा नहीं होने वाला है क्योंकि जिस तरह से समझौते में भारत के हितों को चोट पहुँचाने की कोशिश की गयी है वह कहीं न कहीं अफगानिस्तान पर ही भरी पड़ने वाली हैं. इसके तहत सड़क मार्ग से व्यापर तो हो सकेगा पर अफगानिस्तान के ट्रक वाघा सीमा तक ही आ सकेंगें और वापसी में वे भारतीय माल भी नहीं ले जा सकेंगें. जब केवल एकतरफा व्यापार की अनुमति ही होगी तो कितने दिनों तक यह चल पायेगा और कितने दिनों तक व्यापारी केवल आधे मुनाफे पर काम कर पायेंगें इसमें भी संदेह है ? पाक यही चाहता है कि किसी भी स्तर पर भारत के साथ अफगानिस्तान मज़बूती से सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सके.
             इस स्थान पर यह बात भी उल्लेखनीय है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ़ भारत के संयुक्त राष्ट्र प्रतिबन्ध का समर्थन करने के कारण उसने भी भारत द्वारा विकसित किये जा रहे चाह बहार बंदरगाह के विकास के काम को रुकवा दिया है. अब यह बात किसको समझ में आ रही है और कौन इसे समझना भी चाहता है ? दुनिया जानती है कि अफगानिस्तान की अकूत सम्पदा पर देशों ने नज़र लगा रखी है आज भी पाक और ईरान इस्लाम की चाहे जितनी बातें कर लें पर अफगानिस्तान में बुरा दौर झेल रहे मुसलमानों के लिए कोई भी सहायता और समर्थन अगर उनके अहम् को संतुष्ट किये बिना होगा तो वो उनको बर्दाश्त नहीं होगा ? क्या अफ़गानिस्तान के मुसलमान कुछ अलग तरह के हैं ? या भारत विरोध में इन देशों की आखों पर बंधी पट्टी उनको कुछ देखने ही नहीं देती ? यह ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर उन्हें देना ही होगा ? कुछ लोग भारत में भी ईरान-पाक-भारत के बेहतर संबंधों की बातें करने से नहीं चूकते हैं और सरकार पर अमेरिकी दबाव की बातें करते हैं ? वे शायद यह भूल जाते हैं कि सम्बन्ध दोनों तरफ से और बराबरी से बनाये जाते हैं अगर ये दोनों देश अपने झूठे अहंकार के सामने कुछ अच्छा करना ही नहीं चाहते हैं तो कौन उनके साथ खड़ा होना चाहेगा ?
         अच्छा ही होगा अगर पाक और ईरान इस्लाम के नाम पर इकठ्ठा होने के स्थान पर भारत विरोध के नाम पर एक साथ रहें तो कम से कम धर्म को इस तरह से अपने काम के लिए इस्तेमाल कर उसके दुरूपयोग से तो बचा जा सकेगा. पर इस देशों का एजेंडा इस मामले में बिलकुल साफ़ है वे अपनी जिद के चलते किसी का भी अहित कर सकते हैं भले ही वे इस्लाम के अनुयायी ही क्यों न हों ?    

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. मुसलमानों का जितना नुक्सान पाकिस्तान ने किया शायद ही किसी और देश ने किया हो

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  2. ब्लाग जगत की एक बेहतरीन पोस्ट आज पढ़ने को मिली है......
    पाकिस्तान अपने ही बनाए जाल में एक दिन फंसेगा..
    हकीकत में मुसलमानों का भला पाकिस्तान में भी नहीं हो रहा है...

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