मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

पिल्लई का बयान और पाक से वार्ता

देश में अलग अलग सुर में बोलने की लगता है नेताओं को आदत सी लग गयी है इस कड़ी में ताज़ा बयान विदेश मंत्री कृष्णा की तरफ़ से आया है जिसमें उन्होंने गृह सचिव जी के पिल्लई के हेडली सम्बन्धी बयान को सही तो बताया है पर उसके समय को ग़लत बताते हुए कहा है कि अगर वे पिल्लई की जगह होते तो कभी ऐसा बयान नहीं देते. लगता है कि विदेश मंत्री ने सरकार के लिए कुछ और मुसीबतें खड़ी करने का मन बना लिया है. एक तरफ़ तो वे पिल्लई के बयानों से सहमत नज़र आ रहे हैं कि उन्होंने जो भी कहा सब ठीक कहा वहीं दूसरी तरफ उनको कटघरे में खड़ा करने का प्रयास भी कृष्णा द्वारा किया जा रहा है.  यह सभी जानते हैं कि भारतीय विदेश नीति में जितनी कड़ाई से शिष्टाचार और मर्यादा का ध्यान रखा जाता है उस स्थिति में कोई भी राजनयिक किसी भी मसले पर बिना सरकार की सहमति के इतना बड़ा बयान नहीं दे सकता है ? फिर भी इस बयान के लिए पिल्लई को केवल कैसे ज़िम्मेदार माना जा सकता है ?
         क्या पिल्लई ने सही बात कह कर कोई गुनाह कर दिया है ? क्या कारण है कि उनके बयान को देश के राजनैतिक हलकों में बहुत अजीब तरह से देखा जा रहा है ? पाक से वार्ता आख़िर देश के नेता क्या अपना आत्म सम्मान गिरवी रखकर भी चालू रखना चाहते हैं ? जब पाक को इस बात की कोई परवाह नहीं है और  वार्ता के समय भी उसके द्वारा नियंत्रण रेखा पर शांति समझौते का बराबर उल्लंघन किया जाता रहा तो आख़िर पिल्लई ने ऐसा क्या कह दिया जिसके पीछे अभी भी कृष्णा को बड़ा दुःख हो रहा है ? सही बात को सही कहना भी क्या अब इतना ग़लत हो जायेगा कि कोई अधिकारी कुछ भी कहने की स्थिति में न रह जाएगा ? आज़ादी के बाद से आज तक पाक को केवल कश्मीर खाए जा रहा है  और जब वह हर जगह हर मंच पर इस मुद्दे को उठाये बिना नहीं रह पाता है तो क्या हम अपने सही सबूतों की रोशनी में सही बात भी नहीं कह सकते हैं ?
        सच बात तो यह है कि पाक को भारत के साथ किसी भी तरह की वार्ता में कोई दिलचस्पी ही नहीं है तभी वह अमेरिका के दबाव में कभी कभी बात चीत और संवाद का नाटक करता रहना चाहता है मुंबई हमले के बाद से पाक से कोई बात नहीं हुई तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा ? क्या बात करने और झुकने के लिए हम ही हैं जब पाक समान शर्तों पर संवाद कायम नहीं रख सकता तो हमारी क्या मजबूरी है ? पाक में सेना सरकार के कमज़ोर होने का पूरा फ़ायदा उठाने में लगी हुई है और यह भी संभव है कि वहां पर व्याप्त अराजकता के चलते किसी दिन कयानी फिर से सेना को पाक में राजनीति करने का अवसर प्रदान कर दें ? फिलहाल भारत को यह सीखना ही होगा कि जो सही है उसे ज़रूर कहा जाए भले ही उसके लिए चाहे कुछ भी होता रहे ? अब सही बात कहने का साहस तो हमारे नेताओं को अपने में लाना ही होगा और सही कहने वालों को इस तरह कि घटिया बयानबाज़ी करके नीचा दिखाने का प्रयास भी बंद कर देना होगा...   
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

4 टिप्‍पणियां: