मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

बैंक और मुसलमान...

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की एक रिपोर्ट ने बैंकों के काम काज पर ऊँगली उठाई है और यह कहा है कि बैंकों में मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जाता है. इस तरह का भेद भाव आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा बताया गया और केरल कर्नाटक में भी इस पर ऊँगली उठाई गयी है. यहाँ पर जिस बात पर विचार किया जाना चाहिए वह यह है कि मुसलमानों की दशा सुधारने के लिए जो भी काम किये जा रहे हैं उनमें बैंकिंग को भी साथ में जोड़ा गया है कि नहीं ? सबसे बड़ी बात यह भी है कि शरिया के मुताबिक ब्याज खाना गैर इस्लामिक है तो किस तरह से मुसलमानों को यह  ज़बरदस्ती कहा जा सकता है कि आप आकर बैंक में खाता खोलें ? वैसे यह आंकलन पूरी तरह से किसी विद्वेष से प्रेरित ही लगता है क्योंकि कोई भी बैंक अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए किसी का भी नियम सम्मत खाता खोलने के लिए स्वतंत्र है और देश में बैंकिंग नियमों के चलते ऐसा कोई कानून नहीं है कि किसी धर्म विशेष के लोगों को बैंक अपनी सेवाएं नहीं देंगें.
         देश में अल्पसंख्यकों के लिए काम करने वाले इस आयोग ने यह रिपोर्ट जारी करने से पहले लगता है कि पूरी तरह से मामले की छान बीन भी नहीं की है ? देश में सबसे ज्यादा मुसलमान उत्तर प्रदेश/ बिहार/ बंगाल और कश्मीर में रहते हैं फिर भी आयोग के आंकड़ों में कुछ तो है कि इन प्रदेशों के नाम यहाँ पर नहीं हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि आंध्र प्रदेश में जिसे पीड़ित कहा जा रहा है वे बैंक के मानदंडों को पूरा नहीं कर पाए हों ? अगर ऐसा कुछ है तो कौन बैंक अपने प्रपत्रों को पूरा किये बगैर खाता खोलने के लिए राज़ी हो जायेगा ? बैंक सरकार के लिए जवाब देह हैं और उनके स्तर पर कोई भी काम अपने आप नहीं किया जा सकता है. यह संभव है कि किसी स्थान विशेष पर किसी खास कारण से किसी खास बैंक ने ऐसा कुछ किया हो जिससे मुसलमानों के साथ भेदभाव हो गया हो पर मात्र एक कारण से पूरे देश में मुसलमानों के साथ भेद भाव की बातें कहाँ तक सही हो सकती हैं ?
       क्या कारण रहा कि आंध्र में छात्रों के खाते नहीं खुल पाए पर बाकि देश में खुल गए ? क्या आयोग ने इस बात पर विचार करने का प्रयास किया ? इस सारे मामले में जहाँ एक तरफ राजनीति हावी है वही सरकारी कर्मचारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार ने रही सही कसर पूरी कर दी है. अगर देश में सरकारी तंत्र और अल्पसंख्यक संस्थाएं जागरूक हो जाएँ तो सरकार की तरफ़ से आने वाले धन को सीधे लाभार्थियों तक पहुँचाया जा सकता है ? पर देश में हर बात के लिए हल्ला मचाना आम हो चुका है और कोई भी इस मामले की तह तक नहीं जाना चाहता है. अगर किसी के खाते नहीं खुल सके तो क्या उसके लिए वास्तव में बैंक ज़िम्मेदार हैं ? अगर किसी बैंक या किसी शाखा ने केवल इसलिए खाते नहीं खोले कि लाभार्थी मुसलमान हैं तो उन सभी को अविलम्ब बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए. देश में किसी भी भेद भाव को केवल इस तरह से नहीं देखा जा सकता कि कौन अल्पसंख्यक है और कौन बहुसंख्यक ? क्या किसी सरकारी योजना के तहत आने वाले धन से अन्य छात्रों के कितने खाते नहीं खुल पाए इस बात पर कभी ध्यान दिया गया है ?
        अभी हाल में ही उत्तर प्रदेश में विधवा/ बेसहारा/ विकलांग/ वृद्ध लोगों की पेंशन में बड़ा घोटाला सामने आया था उसमें सभी लोग प्रभावित हुए थे. हमें अब इस बात पर ध्यान देना होगा कि किसी भी तरह इस भ्रष्टाचार को समाप्त किया जाये जिससे लोगों तक सही धनराशि पहुँच सके और आगे से इस तरह के भेद भाव की गुंजाईश ही न रहे.     


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2 टिप्‍पणियां:

  1. आंध्र में? लेकिन वहाँ तो कांग्रेस की सरकार है? :) :)

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  2. CHIPPU !

    WELL !!

    MERE SAATH BHI KABHI KABHI LUCKNOW MEN AISA HOTA HAI

    AUR KHAS KAR JABSE MAINE DAADHI RAKH LI HAI TAB SE AUR ZYADA !!!

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