मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 4 अगस्त 2010

आख़िर उमर भी चेते

दिल्ली में कश्मीर पर हुई बैठक में उमर अब्दुल्लाह ने इस बात को मान ही लिया कि घाटी में चालू हिंसा में कहीं न कहीं अलगाव वादियों का भी हाथ है अभी तक जिस केंद्रीय बल के विरुद्ध वे खुद भी बोल रहे थे आख़िर में उन्हें सरकार से और अतिरिक्त बलों की मांग करनी ही पड़ी. केंद्र ने राज्य सरकार की मांग पर तुरंत ही १९ और कम्पनियाँ घाटी भेजने का आदेश भी दे दिया है. यहाँ पर यह विचार करने लायक बात है कि इतने दिनों की हिंसा के बाद आख़िर आम कश्मीरी को क्या मिला ? अलगाव वादियों ने अपना एजेंडा आगे बढ़ाने में किस तरह से आम कश्मीरियों का इस्तेमाल किया यह बात अब जाकर नेता ही समझ पाए हैं और अभी भी आम लोगों को यह समझना बाक़ी है कि कहीं न कहीं से कोई उनके खिलाफ़ काम कर रहा है और शक की सुई भारत सरकार की तरफ उठाने की कोशिश कर रहा है.
          यात्रा के समय इस तरह का माहौल बनाकर आख़िर किसके हितों को साधा जा सकता है ? अगर कश्मीर के किसी हिस्से में किसी को कोई ज़्यादती लगती है तो उसे यात्रा का समय पार हो जाने की बाट देखनी चाहिए थी जिससे आम कश्मीरियों को इस समय जो व्यापारिक लाभ होते हैं उसमें नुकसान नहीं होता. पर पाक में बैठे आतंकियों के आकाओं को इस बात से कुछ भी नहीं लेना देना है कि आख़िर कश्मीर में उनके मुसलमान भाई किस तरह से जियेंगें ? कोई किसी की मदद तो नहीं कर सकता है और ऊपर से उनके जीने के लिए आवश्यक वस्तुओं और उनके व्यापार पर चोट किये बिना कुछ भी उन्हें हासिल भी तो नहीं हो रहा है. कश्मीर को जितनी केंद्रीय सहायता दी जाती है उतनी किसी भी अन्य राज्य को नहीं दी जाती है फिर भी वहां पर असंतोष की ज्वाला धधकाने के लिए अलगाव वादी बराबर प्रयास करते रहते हैं.
        एक बात तो पूरे देश में लागू कर ही दी जानी चाहिए कि किसी भी तरह के जनांदोलन के इस तरह से हिंसक होने पर सम्बंधित जिले के विकास कार्यों के लिए भेजा जाने वाला धन उसी अनुपात में कम कर दिया जायेगा और सरकारी संपत्ति को किसी भी तरह के नुकसान की भरपाई उनके लिए भेजे जाने वाले धन से कटौती करके ही पूरी की जाएगी. आख़िर देश की संपत्ति को इस तरह से बर्बाद करके आम नागरिकों को क्या हासिल होता है ? जब तक इस तरह के मामलों में दंडात्मक कार्यवाही  नहीं की जाएगी तब तक लोगों को इसी तरह से बरगलाने वाले अपना काम करते रहेंगें. आज बात कश्मीर की नहीं वरन इस तरह की अराजकता की है क्योंकि किसी भी स्थिति में कानून को हाथ में लेकर कोई भी काम ठीक नहीं हो सकता है. इस तरह से अगर हर जगह पर लोग कानून को अपने हाथों में लेने लगेंगें तो सुरक्षा बलों के न चाहते हुए भी कहीं न कहीं मौतों का सिलसिला भी जारी ही रहेगा.  

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