मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

बाँट दो अन्न गरीबों में...

सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए आदेश दिया है कि उसे भण्डारण की कमी और अव्यवस्था के कारण अनाज को सड़ाने के स्थान पर इसे ज़रुरत मंद लोगों तक निशुल्क पहुँचाने की व्यवस्था करनी होगी. माननीय न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी स्थिति में अनाज की इस तरह की बर्बादी को सही नहीं ठहराया जा सकता है. न्यायमूर्ति द्वय दलबार भंडारी और दीपक वर्मा की बेंच ने इस मामले की सुनवाई में यह भी कहा कि सरकार को अनाज के भण्डारण की भी उचित व्यवस्था शीघ्र ही करनी चाहिए. हर राज्य में बड़े गोदाम हो और हर जिले और तहसील में भी इस तरह के गोदाम बनाये जाएँ जिससे ज़रूरतमंदों के लिए इस अनाज को मुफ्त में दिया जा सके. कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार को गरीबी रेखा और अन्त्योदय योजना के अतिरिक्त अन्य लोगों को भी अनाज देने के अपने फैसले पर भी विचार करना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि इससे कहीं न कहीं पर गरीबों का हक भी मारा जाये. इस पर सरकार ने कोर्ट में शपथ पत्र देकर कहा कि उसने इस योजना को गरीबों के हितों को सुरक्षित रखने के बाद ही शुरू किया था.
     कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि सार्वजानिक वितरण प्रणाली की दुकाने पूरे महीने खोली जाएँ जिससे आवश्यकता होने पर कभी भी ये लोग अनाज ले सकें. यह उचित ही है कि इस मसले पर कोर्ट ने बहुत अहम् फैसला बहुत समय से दे दिया है और सरकार को स्पष्ट दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं अब यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह किस तरह से इस पूरी योजना को अमल में लाने का काम करती है. आज देश में अनाज की इतनी कमी नहीं है जितनी कमी भ्रष्टाचार के कारण दिखाई देती है. यह भी सही है कि सरकार हर काम खुद तो नहीं कर सकती है पर भ्रष्ट हो चुके तंत्र को सुधारने की दिशा में कोई बड़ी पहल भी सरकार की तरफ से नहीं दिखाई देती है ? यह सही है कि देश में अब सार्वजानिक वितरण प्रणाली का संजाल बिछ चुका है पर अब ज़रुरत इस बात की है कि इस पूरे तंत्र को लोगों की आवश्यकताओं के अनुसार सही तरह से खुद ही चलने लायक बना दिया जाये जिससे इस तरह की समस्याएं सामने न आती रहें ?
        आज भी सरकार द्वारा दिया जाने वाला अनाज और केरोसिन तेल सही व्यक्ति तक नहीं पहुँच पाता है जिसका बड़ा कारण भ्रष्टाचार ही है ? केंद्र सरकार योजना तो बना सकती है पर उसको सही तरह से क्रियान्वित करने का ज़िम्मा राज्य सरकारों पर आ जाता है बस यहीं से खींच-तान और आरोप-प्रत्यारोप के साथ एक दूसरे पर लांछन लगाने का काम शुरू हो जाता है ? आज आवश्यकता है कि सीमित साधनों में उपलब्ध हर वस्तु को ज़रुरत मंदों तक सही समय से पहुँचाया जाये तभी किसी भी योजना की सार्थकता समझी जा सकती है वर्ना योजनाओं की बढ़ती भीड़ में पुरानी योजनाओं की गति भी लावारिस बच्चों जैसी हो जाती है जिससे सहानुभूति तो सभी दिखाते हैं पर कोई भी उसे अपनाना नहीं चाहता है ?      

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