उत्तर प्रदेश विधान परिषद में बिजली की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए सदस्यों को आश्वासन देते हुए ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय ने कहा कि वर्ष २०१४ तक प्रदेश में बिजली का संकट पूरी तरह से समाप्त हो जायेगा. आज जिस ऊर्जा संकट की बात पूरे विश्व में की जा रही है उससे निपटने के लिए पता नहीं प्रदेश सरकार के पास कौन सी जादुई छड़ी आ गयी है कि वह इतनी जल्दी सब कुछ सुधार लेगी. पूरे प्रदेश में अव्यवस्था का इतना बोलबाला है कि कोई भी मंत्रालय ठीक ढंग से काम ही नहीं कर पा रहा है. पिछले १० वर्षों से जो प्रदेश अपनी प्रतिबंधित मांग को भी पूरा नहीं कर पा रहा हो आखिर केवल ४००० मेगावाट का उत्पादन बढ़ाकर किस तरह से समस्या को सुलझा लेगा यह अभी भी रहस्य बना हुआ है ?
आज के समय में प्रदेश की प्रतिबंधित मांग ही लगभग १०,००० मेगावाट की है और अगले ४ वर्षों में यह बढ़कर १२/१३ हज़ार के आंकड़े को भी पार करने वाली है फिर केवल इतना थोडा सा उत्पादन बढ़ाकर किस तरह से पूरी व्यवस्था सुधारने के दावे किये जा रहे हैं ? आज के समय में आवश्यकता इस बात की है कि किस तरह से प्रतिवर्ष उत्पादन में वृद्धि की जाये जिससे आने वाले मांग और आपूर्ति के अंतर को लगातार कम करके बिजली वितरण को पटरी पर लाया जा सके. आज पूरे प्रदेश में यह हालत है कि कहीं पर भी ट्रांसफार्मर जल जाने पर अधिकारी स्थानीय निवासियों से पैसों की मांग करते हैं और यह कहकर अपने को बचाते हैं कि लखनऊ तक पैसा देना पड़ता है बिना पैसा दिए कोई भी उपकरण वहां से नहीं मिल पाते हैं. लोग पहले तो चंदा लगाकर अधिकारियों को देते हैं और बाद में अपने स्तर से जले हुए ट्रांसफार्मर को जिला मुख्यालय तक पहुँचाने और नए को वापस लाने के लिए साधन की व्यवस्था भी करते हैं ? यह हाल कहीं एक जगह का नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की जनता इस तरह की मार झेल रही है.
आज भी सरकार का ध्यान पूरी तरह से बड़ी परियोजनाओं पर है जबकि पानी आदि की उपलब्धता के अनुसार यदि हर दूसरे तीसरे जिले में छोटी परियोजनाएं लगाने का काम हाथ में लिए जाये तो शायद इस समस्या से जल्दी निजात मिल सकती है. एक तरफ बिलजी का रोना है तो वहीं एन टी पी सी का कहना है कि उसे जितनी ज़मीन बिजलीघर लगाने के लिए चाहिए वह उपलब्ध करने में राज्य सरकार दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. अब यह तो ज़ाहिर है कि दोनों में से कोई एक झूठ बोल रहा है जब इतने संवेदनशील मामले पर सरकारों और सार्वजानिक संस्थानं के बीच सामंजस्य का स्तर इतना निम्न है तो और क्या कहा जाये ? बिजली चोरी से निपटने में आज भी सरकार पूरी तरह से विफल है. बिजली विभाग आज तक यही नहीं जान पाया है कि वास्तव में किस क्षेत्र का कितना लोड है और कम क्षमता के उपकरण लगाने से इनके जलने की घटनाओं में लगातार वृद्धि होती जा रही है. कहीं ऐसा तो नहीं है कि विभाग पैसों का रोना रोकर इसमें कोई दूसरा खेल ही खेलने में लगा हुआ है ? अगर एक बार में ही सब ठीक हो जायेगा तो नयी खरीद पर जो भ्रष्टाचार पनपता है उसका क्या होगा ?
आज निगम और सरकार को अपने गिरेबान में झाँकने की ज़रुरत है क्योंकि बिना इसके अपनी समस्या दूसरों पर कब तक टाली जा सकती है ? आज भी प्रदेश के हर वितरण क्षेत्र में एक समय सारिणी बनाकर बिजली उपकरणों को लोड के अनुसार लगाये जाने का काम चरणबद्ध तरीके से अविलम्ब शुरू कर दिया जाना चाहिए क्योंकि बिना इसके अगर कभी बिजली हो भी गयी तो वह उपभोक्ताओं तक कैसे पहुंचेगी ? पूरे प्रदेश में तुरंत ही हैण्ड हेल्ड उपकरणों से बिजली के बिल बनाये जाने का काम शुरू होना चाहिए जिससे गलत मीटर रीडिंग से उपभोक्ताओं को निजात मिल सके. पर केवल विधान सभा या परिषद में बातें करना बहुत आसान है और उनको धरातल पर उतारना बहुत मुश्किल है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सही कहा आपने:
जवाब देंहटाएंविधान सभा या परिषद में बातें करना बहुत आसान है और उनको धरातल पर उतारना बहुत मुश्किल है ?
आज भी सरकार का ध्यान पूरी तरह से बड़ी परियोजनाओं पर है जबकि पानी आदि की उपलब्धता के अनुसार यदि हर दूसरे तीसरे जिले में छोटी परियोजनाएं लगाने का काम हाथ में लिए जाये तो शायद इस समस्या से जल्दी निजात मिल सकती है
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